L19/DESK : झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) सरकार की एक महत्वपूर्ण इकाई है। इसके जरिये राजपत्रित पदों के लिए नियुक्ति की प्रक्रियाएं पूरी की जाती है। जेपीएससी की तरफ से विश्वविद्यालयों में बैकलोग सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति, नियमित नियुक्ति की प्रक्रिया पर पिछले छह माह से विराम लगा दिया गया है। जेपीएससी की तरफ से जारी कैलेंडर के हिसाब से अब तक सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पूरा कर देना था, पर किन कारणों से यह स्थगित रखा गया है, यह जेपीएससी की अध्यक्ष आइएएस नीलिमा केरकेट्टा, सदस्य अजीता भट्टाचार्य और अन्य ही दे सकते हैं।
बताते चलें कि सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति को लेकर गुमला की डॉ एंजेला स्वर्णदीपिका कुजूर ने फरवरी 2023 में एक रिट याचिका दायर की थी, क्योंकि एक मार्च को पोलिटिकल साइंस विषय की नियुक्ति प्रक्रिया का साक्षात्कार होना था। इससे पहले बांग्ला, ऊर्दू और अन्य स्थानीय भाषाओं के सहायक प्रोफेसरों के पद पर नियुक्ति की औपचारिकताएं होनी थीं। डॉ एंजेला ने याचिका में कहा था कि उन्होंने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में पीएचडी की है। इसलिए उन्हें पोलिटिकल साइंस की हो रही बहाली में मान्यता दी जाये।
अपनी याचिका में एंजेला ने मुख्य सचिव, झारखंड सरकार के उच्च और तकनीकी शिक्षा सचिव, जेपीएससी के सचिव, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सचिव, रांची विश्वविद्यालय के कुल सचिव, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय और कोल्हान विश्वविद्यालय के कुल सचिवों को पार्टी बनाया था। जस्टिस आनंदा सेन की अदालत ने रिट पीटिशन को एलाउ किया था। पर जेपीएससी के अधिकारियों ने सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति प्रक्रिया पर ब्रेक लगाते हुए सभी सफल अभ्यर्थियों की किस्मत पर ताला मार दिया है।
सफल अभ्यर्थियों को किसी तरह की कोई सूचना भी नहीं दी जाती है कि कब साक्षात्कार की प्रक्रिया पूरी होगी। सरकार के उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग भी इस विषय में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है। कोर्ट में यह दलील दी गयी कि याचिकाकर्ता पीजी में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन विषय रखा था। जो पोलिटिकल साइंस सब्जेक्ट का एक हिस्सा है। ऐसे में पोलिटिकल साइंस अथवा लोक प्रशासन दोनों ही एक ही विषय हैं।