अगर झारखंड में आप सहायक पुलिस के पद पर नियुक्त होना चाहते हैं तो ये जान लीजिये कि झारखंड सरकार पहले तो आपको नक्सल प्रभावित जिलों में नियुक्ति देगी, 10 हजार रुपये मानदेय के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बहाल किया जायेगा, किसी तरह का कोई भत्ता नहीं दिया जायेगा, सहायक पुलिस के नाम पर झारखंड पुलिस की तर्ज पर सारे काम आपसे निकलवाये जायेंगे और फिर कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाने पर आपको सेवा मुक्त कर दिया जायेगा। स्थायीकरण की बात बोलकर ठेंगा दिखा दिया जायेगा। मुबारक हो, युवावस्था में ही अब आप रिटायर हो चुके हैं, और आपको किसी तरह की कोई सरकारी सुविधा भी नहीं मिल रही है।
अब हम आपको पुलिस की नौकरी करने से डिमोटिवेट तो नहीं कर रहे हैं, पर हमारी सरकार का रुख राज्य के युवाओं के तरफ तो कुछ ऐसा ही दिखाई पड़ता है। फिलहाल हम बात कर रहे हैं झारखंड के सहायक पुलिसकर्मियों की। राज्य के सहायक पुलिसकर्मी एक बार फिर से आंदोलन पर उतर आये हैं। क्योंकि, उन्हें दिये जाने वाले आश्वासन का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा है। सरकारें आय़ीं, सरकारें गयीं, लेकिन सहायक पुलिसकर्मी वहीं के वहीं हैं। अब सहायक पुलिसकर्मियों की मांगों को समझने के लिये आपको सिलसिलेवार ढंग से जानना जरूरी है कि इनकी बहाली क्यों हुई थी, फिर ये आंदोलन पर क्यों उतर आये, इतने सालों तक सरकार से उन्हें क्या आश्वासन मिला, और अब एक बार फिर से उन्हें आंदोलन करने की जरूरत क्यों पड़ रही है ?
तो कहानी शुरु होती है साल 2016 से। राज्य में सरकार थी रघुवर दास की। सरकार सोंच रही थी कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों पर कैसे लगाम कसा जाये। युवा मुख्यधारा छोड़कर नक्सली न बन जाये, इसके लिये रघुवर कार्यकाल में 2500 सीटों पर सहायक पुलिस के पद पर वैकेंसी निकाली गयी थी। इनका मुख्य रुप से काम था कि नक्सलियों के गतिविधियों पर नजर रखना और उसकी सूचना जिला मुख्यालय तक पहुंचाना। इस वजह से नक्सल प्रभावित 12 जिलों को चिह्नित किया जाना था, और इन्हीं जिलों के स्थानीय अभ्यर्थियों को अपने गृह जिले में सेवा देने के लिये रखा जाना था। इन 12 जिलों में पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, चतरा, लातेहार, गुमला, पलामू, गढ़वा, दुमका, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा और गिरिडीह शामिल था। इसके बाद आता है साल 2017, फरवरी का महीना था, जब इन सीटों पर अभ्यर्थियों की नियुक्ति हुई। इसके लिये कुछ अहम शर्तें रखी गयी। 27 फरवरी को गृह विभाग की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था। इसके सेवाशर्तों के अनुसार, सहायक पुलिसकर्मीयों की सेवा 2 साल के लिये अनुबंध यानि कॉन्ट्रैक्ट पर तय की गयी। इसके लिये उनका मानदेय 10 हजार रुपये प्रति माह तय किया गया था। इसके अलावा किसी तरह के कोई भत्ते का भी प्रावधान नहीं किया गया था। सहायक पुलिस कर्मियों की सेवा संतोषजनक होने पर SSP और ASP की अनुशंसा पर एक साल के लिये इनकी सेवा में विस्तार को मंजूरी दी जा सकती थी। मंजूरी देने का काम DIG का था। सेवा में ज्यादा से ज्यादा 3 सालों तक का विस्तार किया जा सकता था। लेकिन किसी भी परिस्थिति में कॉन्ट्रैक्ट पर सेवा की कुल अवधि 5 साल से अधिक नहीं हो सकती थी। हालांकि, इसमें यह प्रावधान भी किया गया था कि दो वर्ष के बाद इन्हें प्रदर्शन के आधार पर झारखंड पुलिस में स्थायी कर दिया जाएगा। इस बात की घोषणा पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में भी की थी। लेकिन जैसे ही साल 2019 में इनके 2 सालों का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हुआ, वैसे ही सहायक पुलिसकर्मियों की सेवा खत्म की जाने लगी, जिसके विरोध में ये सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे। तब सरकार ने इन्हें आश्वासन दिया और इनकी सेवा में एक साल का विस्तार किया। 2020 में जब एक साल का सेवा विस्तार भी खत्म हो गया, तब उन्हें फिर से ड्यूटी से हटाया जाने लगा। तब सहायक पुलिसकर्मी स्थायीकरण की मांग को लेकर रांची के मोरहाबादी मैदान में सरकार के खिलाफ आंदोलन पर उतर आय़े। सहायक पुलिसकर्मियों का कहना था कि उन्हें वेतन के नाम पर हर महीने केवल 10 हजार रुपये मिलते हैं, जबकि ड्यूटी झारखंड पुलिस की तरह ही ली जाती है. ट्रैफिक से लेकर विधि-व्यवस्था संभालने के कार्यों में भी लगाया जाता है, त्योहार में जिला मुख्यालय में उनकी प्रतिनियुक्ति की जाती है। कभी-कभार नक्सल प्रभावित क्षेत्र या इमरजेंसी ड्यूटी भी करनी पड़ती है। और इसके लिये उन्हें किसी तरह का भत्ता नहीं मिलता है। बैरक में रहने की सुविधा तो मिलती है, लेकिन वहां भी एक टाइम के खान पान का 50 रुपये देना पड़ता है। बीमार पड़ गए तो खुद के पैसे से इलाज कराना पड़ता है। कोरोना पैकेज में भी उन्हें शामिल नहीं किया गया है।
अब तक तख्तापलट हो चुका था। राज्य में हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली झामुमो कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार बनी। 12 सितंबर 2020 से लेकर 12 दिनों के आंदोलन के बाद आखिरकार 24 सितंबर 2020 को सहायक पुलिसकर्मियों का आंदोलन समाप्त हुआ, जब तत्कालीन मंत्री मिथिलेश ठाकुर के आवास पर इस संबंध में वार्ता हुई। इस वार्ता में सहायक पुलिसकर्मियों की सेवा को 2 साल के विस्तार का आश्वासन दिया गया।
फिर आया साल 2022, जब इन सहायक पुलिसकर्मियों के 2 साल के सेवा विस्तार के समापन का समय आया। 11 अगस्त 2022 को दुमका, सिमडेगा और पूर्वी सिंहभूम जिले से सहायक पुलिसकर्मियों को सेवामुक्त करने का निर्देश जारी किया गया। दुमका पुलिस के द्वारा जारी आदेश के अनुसार, 27 फरवरी 2017 को FOCUS AREA DEVELOPMENT PLAN में शामिल क्षेत्रों में से राज्य के 12 जिलों के लिये contract पर 2500 सहायक पुलिसकर्मियों की नियुक्ति हुई थी। इन सभी को 1-1 साल करके 3 सालों के सेवा का विस्तार दिया गया था, लेकिन पिछले साल 8 अगस्त 2022 को इनकी सेवा समाप्त हो गयी। अब इन्हें सेवा से मुक्त किया जाता है। ऐसे में सहायक पुलिसकर्मियों के बीच निराशा का माहौल था। क्योंकि कई लोगों के सामने रोजगार की समस्या खड़ी हो गयी। कई ऐसे सहायक पुलिस कर्मी भी थे, जिनकी उम्र बढ़ चुकी थी, वे लोग दूसरी नौकरियों में हाथ नहीं आजमा सकते थे। कई लोगों के सामने पारिवारिक जीवन की कठिनाई सामने आ गयी। इन सहायक पुलिसकर्मियों ने सरकार से सेवा में स्थायी रूप से भर्ती या अन्य सेवाओं में रोजगार दिलाने के लिए गुहार लगायी। इसे लेकर फिर आंदोलन हुआ, पैदल यात्रा कर सहायक पुलिस कर्मी राजधानी राँची पहुँचे। तब आंदोलनरत सहायक पुलिसकर्मियों के कड़े रुख को देखते हुए हेमंत सोरेन की सरकार ने पुलिस मुख्यालय को आदेश देते हुए कहा कि जिन सहायक पुलिसकर्मियों ने 5 साल की सेवा पूरी कर ली है, उन्हें औऱ 1 साल की सेवा विस्तार प्रदान की जाये। उस समय हेमंत सोरेन ने खुद धरना स्थल पर जाकर सहायक पुलिसकर्मियों से मुलाकात की, औऱ उन्हें भरोसा दिलाया कि उनके रोजगार के विकल्पों पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। सरकार इस पर भी विमर्श कर रही है कि कैसे साल दर साल बढ़ाये जा रहे एक्सटेंशन को रोका जाये, और उन्हें स्थायी करे। उनकी बातों से खुश होकर सहायक पुलिसकर्मियों ने अपना आंदोलन खत्म किया और मुख्यमंत्री का आभार जताते हुए गुलदस्ता, फूल और पौधा देकर शुक्रिया अदा दिया। कहानी फिर आगे बढ़ी, और रूकी 9 अगस्त 2023 की तारीख पर, जब एक बार फिर से सहायक पुलिसकर्मियों के एक साल का सेवा विस्तार खत्म होने का समय आय़ा। एक बार फिर से सहायक पुलिसकर्मियों में आक्रोश पनपा। क्योंकि सरकार ने अपना वादा जो पूरा नहीं किया। आश्वासन के नाम पर ठेंगा और सेवा विस्तार के नाम पर उन्हें लॉलीपॉप थमा दिया गया था। एक बार फिर से सहायक पुलिसकर्मियों ने विरोध प्रदर्शन का ऐलान कर दिया। लेकिन हेमंत सरकार ने आंदोलन शुरु होने से पहले ही उन्हें फुसला लिया। एक बार फिर से उनके 2 सालों के सेवा विस्तार की घोषणा की गयी। ये घोषणा खुद हेमंत सोरेन ने 18 अगस्त को बकायदा चाईबासा में खुले मंच से किया था। लेकिन दूसरी तरफ कई जिलों ने आदेश जारी करते हुए सहायक पुलिसकर्मियों को ‘सेवा मुक्ति’ का लेटर थमा दिया। ऐसे में उनके बीच कन्फ्यूजन की स्थिति बनी रही। उन्हें समझ नहीं आय़ा कि किसकी बातों पर यकीन करें। अपने मुख्यमंत्री की जिन्होंने 2 सालों के सेवा विस्तार की घोषणा की, या फिर अपने जिले के पुलिस अधिकारियों की, जो उन्हें रिटायरमेंट का लेटर थमा रहे थे। अब जाकर वापस से इन सहायक पुलिसकर्मयों को मजबूरन आंदोलन का रुख अपनाना पड़ रहा है। इनका कहना है कि 2017 से अब तक उन्हें सेवा देने के नाम पर हर महीने मात्र 10 हजार रुपया ही मिलता आया है। 10 हजार रुपये में अब परिवार चलाना संभव नहीं है. हर साल सेवा विस्तार के लिए साहबों की ओर टकटकी निगाहों से देखना पड़ता है. सात साल से काम कर रहे सहायक पुलिसकर्मी अपने अनुबंध की नौकरी को स्थायी की मांग कर रहे हैं. इनकी मांग है कि पुलिस सेवा के खाली पदों पर उनका समायोजन हो, क्योंकि राज्य में पुलिस जवानों की घोर कमी है. अब देखना होगा कि इस बार सरकार का रुख सहायक पुलिसकर्मियों की तरफ कैसा होगा। विधानसभा चुनाव शुरु होने में अब मात्र 4 महीने ही शेष हैं, ऐसे में झारखंड के युवाओं का मिजाज क्या होगा ये देखना दिलचस्प होगा। वैसे आपका इस पर क्या विचार है, ये हमें कमेंट कर के जरूर बतायें।
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