l19/DESK : जयराम महतो की भाषा को सभ्य समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता है, उनके भाषणों में अक्सर मारने, काटने की ही बात होती है, जो समाज में अराजकता को बढ़ावा देता है। जयराम महतो विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदारों से फॉर्म के नाम पर 5100 रुपये की वसूली कर रहे हैं, इससे गरीब और शोषित समाज के लोग भी अछूते नहीं है, और यह बिल्कुल गलत है। जेबीकेएसएस से जुड़े और जयराम महतो के आस पास रहने वाले निजी लोग पार्टी के बाकि नेताओं को भाषण देने से रोकते हैं, जयराम महतो अपनी पार्टी संगठन में नाबालिग बच्चों को जोड़ रहे हैं।
ये तमाम शिकायतें खुद जयराम महतो के आंदोलन के साथी, जेबीकेएसएस के उपाध्यक्ष और हजारीबाग लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी रहे संजय मेहता ने एक पत्र के माध्यम से की है। जेबीकेएसएस के अध्यक्ष जयराम महतो के नाम पर लिखे इस लेटर पर बकायदा उनका सिग्नेचर भी है, उनके इस तल्ख लहजे से साफ है कि पार्टी के अंदर आंतरिक कलह उत्पन्न हो रही है। संगठन से जुड़े पुराने नेताओं, कार्यकर्ताओं की बढ़ती नाराजगी से अब लगता है कि जेबीकेएसएस टूटने की कगार पर है। इन लोगों की अकसर एक शिकायत रही है कि जयराम महतो केवल अपना चेहरा चमकाना चाहते हैं, केवल अपना ही प्रचार प्रसार करते हैं। इस बात को संजय मेहता ने भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी पत्र के जरिये जाहिर किया है। उनका ये वायरल लेटर जेबीकेएसएस के कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहा है। पहले तो आपको ये लेटर गौर से देखने की जरूरत है, जिसमें संजय मेहता ने 17 प्वाइंट्स में अपने शिकवे गीले जाहिर किये हैं।
हालांकि, हम ये सारे 17 प्वाइंट्स को तो आपको एक एक करके पढ़ कर नहीं बता सकते, लेकिन इसमें जो मुख्य बातें हैं, वह जरूर आपसे साझा किये चलते हैं. संजय मेहता का कहना है कि जेबीकेएसएस जिस उद्देश्य और विचारधारा के साथ बनी थी, अब उससे भटक रही है। जेबीकेएसएस गरीबों शोषितों का संगठन है, लेकिन उन्हें समान अवसर नहीं मिल रहा है। उनसे भी विधानसभा चुनाव में जेबीकेएसएस से टिकट की दावेदारी के लिये फॉर्म के नाम पर 5100 रुपये की वसूली की जा रही है। पार्टी में एससी और एसटी के लिये भी सीटें आरक्षित की जानी चाहिये। आरक्षित वर्ग के लोगों को नामांकन के समय चुनाव आयोग भी जमानत राशि में छूट देती है। लेकिन जयराम महतो सभी वर्गों के लोगों से 5100 रुपये सीटों की दावेदारी के नाम पर ले रहे हैं, जो कि न्यायोचित नहीं है. ऊपर से फॉर्म केवल ऑफलाइन अवेलेबल है, जिसके वजह से राज्य के दूर दराज के हिस्से से आने वाले कार्यकर्ताओं को धनबाद के तोपचांची में स्थित पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में आना पड़ेगा। ऐसे में उन्हें केवल फार्म खरीदने में ही नहीं, बल्कि आने जाने, रहने खाने, जैसी चीजों पर भी पैसा लगाना पड़ेगा। संजय मेहता ने सुझाव दिया है कि फार्म को निःशुल्क यानि फ्री कर दिया जाये, और सभी जिलों में इसे उपलब्ध कराया जाये।
आगे के प्वाइंट्स में संजय मेहता ने कहा है कि बुद्धिजीवि वर्ग के लोग अक्सर जयराम महतो की भाषणों को लेकर शिकायतें करते रहते हैं। उनका कहना है कि हमेशा मारने काटने की बात करना सभ्य समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता है, अराजकता से किसी समस्या का हल नहीं होगा। उनका सुझाव है कि अपने भाषणों में विषयों, मुद्दों, जन समस्याओं, नीतियों को प्राथमिकता दी जाये। संगठन के मुद्दे, विचारधारा, और उद्देश्य भी आम जनमानस के बीच स्पष्ट नहीं है, जिस पर काम करने की जरूरत है।
संजय मेहता का कहना है कि संगठन के कई जमीनी नेता कार्यकर्ता भी अकसर नाराजगी जताते रहते हैं कि संगठन में पुराने क्रांतिकारी और मेहनती गरीब साथी, जिन्होंने संगठन की बुनियाद में अपना योगदान दिया है, उन्हें प्राथमिकता नहीं दी जा रही है।
संगठन में गरीबों, शोषितों, पीड़ितों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने, और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ संवाद स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया है। उनकी शिकायतें रहती हैं कि वे जयराम महतो से सीधे सीधे न तो बात कर पाते हैं, न मिल सकते हैं। जयराम महतो के आस पास रहने वाले लोग ये नहीं चाहते कि अन्य लोग उनसे मिल सकें, जबकि राजनीति में लोगों को सुनना समझना बहुत जरूरी है।
आगे भी संजय मेहता ने कुछ बहुत महत्वपूर्ण बातें कहीं हैं। उन्होंने कहा है कि बुद्धिजीवी वर्ग जैसे टीचर प्रोफेसर जेबीकेएसएस से जुड़ने की इच्छा रखते हैं, लेकिन क्योंकि संगठन व्यक्ति केंद्रित होकर रह गया है, इसलिये वे इससे जुड़ नहीं पा रहे हैं। बुद्धिजीवी वर्ग के साथ साथ अन्य कार्यकर्ताओं की शिकायत ये भी है कि संगठन में वे अपनी बातों को नहीं रख पा रहे हैं। संगठन जब कोई निर्णय लेता है, तो उसमें उनके विचारों को शामिल नहीं किया जाता। संगठन के कुछ लोग बस आपस में फैसला लेकर उसे बाकि कार्यकर्ताओं के ऊपर थोप देते हैं।
संगठन विस्तार के दौरान भी जो केंद्रीय कमिटी, जिला कमिटी बनायी गयी उसमें पुराने और संघर्षशील साथियों को या तो शामिल नहीं किया गया, या फिर उनके नामों को बहुत नीचे स्थान मिला। जेबीकेएसएस में जयराम महतो ने नाबालिग बच्चों को भी जोड़ लिया है, जिन्हें दूर रखने का सुझाव दिया गया है।संजय मेहता की एक शिकायत ये भी है कि कई बार जयराम महतो के इर्द गिर्द घिरे रहने वाले निजी लोगों ने उनका अनादर किया, उन्हें भाषण देने से भी रोका गया। ये लोग जयराम महतो के अलावा, किसी और को चेहरा बनते देखना नहीं चाहते। देखा जाये तो अप्रत्यक्ष रूप से ये निशाना जयराम महतो के ही ऊपर किया गया है। इसके आगे के प्वाइंट्स में उन्होंने कहा है कि संगठन में वित्तीय व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की जरूरत है, मतलब कि पैसा कहां से आ रहा है, कहां जा रहा है, कहां कितना खर्च हो रहा है, इसका पता जनता को होना चाहिये।
उन्होंने ये भी शिकायत की है कि जब जयराम महतो किसी क्षेत्र में जाते हैं, तो वहां के जो जमीनी नेता कार्यकर्ता हैं, उन्हें सभा की तैयारियों में लगा देते हैं, जबकि उन नेताओं कार्यकर्ताओं के क्षेत्र में उन्हें ही प्रतिनिधित्व देने की जरूरत है, ऐसा न होने पर फील्ड में मनमुटाव पैदा हो रहा है।आखिर में संजय मेहता ने जयराम महतो को नसीहत देते हुए कहा है कि वह अपने आस पास बौद्धिक एवं शिक्षित लोगों को रखें, जो उन्हें बेहतर सलाह दे सकें, क्योंकि जो लोग फिलहाल उनके साथ हैं, वे उनकी तरक्की से जलते हैं।
संजय मेहता की इस नाराजगी के बाद अब जयराम महतो को विधानसभा चुनाव के दौरान काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, अब वह अपनी पार्टी संगठन के नेताओं कार्यकर्ताओं को कैसे जोड़कर रखेंगे ये तो उनके लिये एक बड़ी चुनौती है।