झारखंड में पिछले करीब एक दशक से स्थानीय नीति, नियोजन नीति जैसे मुख्य मुद्दों को किसी ने अपने कांधे पर ढोया है, तो उनमें से एक प्रमुख नाम कमलेश राम का भी है, जिन्हें इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा अपना प्रत्याशी बनाने जा रही है। ये लगभग तय माना जा रहा है कि कमलेश राम भाजपा की टिकट पर अबकी बार कांके विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। आज या कल तक में किसी भी वक्त भाजपा अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर देगी, खबर बनाये जाने तक तो ऐसी कोई अपडेट नहीं आयी है। लेकिन यहां बड़ा सवाल ये है कि आखिर भाजपा एक सीनियर सीटिंग विधायक का टिकट काटकर कमलेश राम पर दांव क्यों खेलने जा रही है ? कौन हैं ये कमलेश राम ? तो आइये जानते हैं। जोहार आप देख रहे हैं लोकतंत्र 19 और मैं हूं आपके साथ अंशु।
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद बाबूलाल मरांडी की सरकार आयी, और इसने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू कर दिया, हालांकि, इस बड़े फैसले के बाद राज्य के अलग अलग जगहों पर दंगे फसाद शुरु हो जाते हैं। पूरा झारखंड लहू लुहान होने लगता है, जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने बाबूलाल मरांडी की सरकार द्वारा लागू की गयी 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को रद्द कर दिया। मतलब झारखंड को एक अलग राज्य की पहचान मिलने के बावजूद अब तक यहां का कोई स्थानीय नीति नहीं था। इसके बाद सरकारें आयीं और गयीं, लेकिन किसी ने भी स्थानीय नीति को तवज्जो दिया ही नहीं। वे सभी इस पर बात करने से भी बचते रहे। हैरानी की बात ये थी कि विपक्षी दलों, अधिकारों की बात करने वाले संगठनों ने भी इस पर चुप्पी साध रखी थी। हक अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले झारखंड में क्रांति की लौ सालों तक बुझी रही, लेकिन करीब एक दशक के बाद कमलेश राम की एंट्री हुई। उन्होंने उस बुझे हुए लौ को फिर से जलाने का काम किया। ये कमलेश राम ही थे, जिन्होंने झारखंड में एक बार फिर से खतियान आंदोलन को आवाज दी, भाषा कला संस्कृति के संरक्षण की बात की। इसके साथ साथ नियोजन नीति जैसे बेजुबान पड़ चुके मुद्दों को जबान देने का काम किया। सालों तक छात्र राजनीति करने वाले कमलेश राम ने एक समय में हुकमरानों की खटिया खड़ी कर दी थी। इस बीच उन्होंने आदिवासी मूलवासी छात्र मोर्चा नामक संगठन को खड़ा किया। राज्य की नीतियों के साथ साथ कमलेश राम जनता के मुद्दों को लेकर भी हमेशा से मुखर रहे हैं। आमजन की समस्याओं को लेकर उन्होंने सड़क से लेकर सरकारी दफ्तरों तक के चक्कर काटे, जरूरत पड़ने पर प्रदर्शन भी करते रहे हैं। इन सब वजहों से उन्हें जेल भी जाना पड़ा है।
कमलेश राम कांके विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। यही वजह है कि उन्होंने हमेशा से इसी इलाके से चुनाव लड़ा। पहली बार उन्होंने 29 साल की उम्र में निर्दलीय ही चुनावी मैदान में शिरकत की थी। तब उन्हें मात्र 1279 वोट्स प्राप्त हुए थे। इसके बाद साल 2019 में वह बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम की टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। तब उन्होंने 10 हजार 338 वोट्स अर्जित किये थे। इससे समझा जा सकता है कि उनका खुद का कैडर वोट 10 से 15 हजार के करीब है। हालांकि, बाबूलाल मरांडी ने साल 2020 में जेवीएम का विलय भाजपा में कर दिया। इसी के साथ कमलेश राम भी भाजपा से जुड़ गये। बीजेपी में आने के बाद से वह लगातार पार्टी के सांगठनिक कार्यों में लगे रहे। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने बढ़ चढ़कर अपनी सक्रियता का प्रदर्शन किया था। भाजपा में वह अनुसूचित जाति के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं।
अब सवाल ये है कि कांके विधानसभा सीट पर समरी लाल जैसे सीनियर नेता का टिकट काटकर भाजपा आखिर एक युवा नेता को प्रत्याशी क्यों बनाने जा रही है ? दरअसल, पिछले बार का चुनाव तो सीनीयर नेता ने अच्छे खासे वोटों के अंतर से जीत लिया था, लेकिन बताया जाता है कि बाद में समरी लाल की जाति को लेकर विवाद उठने लगा। अब क्योंकि कांके विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिये रिजर्व्ड है, इस वजह से यहां पर जाति को लेकर पेंच फंसने की संभावना बनी रहती है। खैर, तब समरी लाल की जाति वाला मामला कोर्ट जा पहुंचा। इस वजह से कुछ बीजेपी नेताओं का मानना है कि कांके जैसे शहरी क्षेत्र में उम्मीदवार चयन के मामले में पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए, ताकि बाद में किसी भी तरह की परेशनियों का सामना न करना पड़े। यही वजह मानी जा रही है कि कमलेश राम को कांके विधानसभा से उम्मीदवार बनाया जा सकता है, इसकी पूरी संभावना है। अब संभावनाओं पर हम बात इसलिये कर रहे हैं, क्योंकि अभी तक उम्मीदवारों का ऐलान आधिकारिक रूप से हुआ नहीं है। खैर, कमलेश राम को टिकट देने की एक दूसरी वजह ये भी है कि वह पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी के बहुत करीबी माने जाते हैं। और तो और कांके जैसी विधानसभा सीट पर भाजपा युवा नेता पर इसलिये भी आसानी से दांव लगा रही है, क्योंकि यहां साल 1990 के चुनाव के समय से ही लगातार पार्टी को जीत मिलती रही है। इसलिये कांके विधानसभा भाजपा की सबसे सेफ सीट मानी जाती है।
कौन हैं कमलेश राम! जिसको कांके में कमल खिलाने जिम्मेदारी
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