L19/Pakur : झारखंड का बेहद पिछड़ा जिला पाकुड़, जिसके अंतर्गत तीन विधानसभा क्षेत्र का दायरा है। पाकुड़ के तीनों विधानसभा में अभी सत्तारूढ़ झामुमो, काँग्रेस, राजद गठबंधन के विधायक हैं, तीनों विधानसभा क्षेत्र का अपना अलग अलग समीकरण है। लेकिन पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र का समीकरण थोड़ा पेचीदा है, क्योंकि यहाँ, मुस्लिम जनाधार ही निर्णय करता है कि उनका विधायक किसे चुना जाए। पाकुड़ विधानसभा में हमेशा से काँग्रेस का दबदबा सबसे ज्यादा रहा है, उसके बाद झामुमो का और फिर भाजपा का। इस विधानसभा में भाजपा चुनाव जीतने के लिए कई दफा टक्कर देने की कोशिश कर रही है लेकिन सफलता हाथ नहीं लग रही। इस विधानसभा में मुस्लिम वोटबैंक सबसे ज्यादा है, उसके बाद सदानों की (केवट, तेली, नाई, ब्राह्मण- गोस्वामी, कुम्हार, सोनार, ग्वाला, कुर्मी, धोबी आदि) इस क्षेत्र में सदान समुदाय के लोग खुद को झारखंड के मुलवासी कहते हैं और अधिकतर सदानों की भाषा खोरठा है, सदानों की जातियाँ अलग अलग रहने के बावजूद, संस्कृति और भाषा एक जैसी है, जिस कारण इनका वोट भी एकमुश्त ही जाता है।
चुनावी दावों के अनुसार सदानों के ज्यादातर मतदाता भाजपा या आजसु समर्थक दिखते हैं। उसके बाद इस विधानसभा में संथाल समुदाय के लोग निर्णायक रूप में हैं, और फिर बची जातियाँ हैं जो खेल में अहम् भूमिका निभाने के स्थिति में नहीं रहते। भाजपा को सदानों का वोट एकमुश्त मिलता रहा है, वहीं काँग्रेस यहाँ पिछले दो बार से लगातार आलमगीर आलम के नेतृत्व में चुनाव जीत रही है। जिनके बारे में कहा जाता है, भाजपा को हराने के लिए मुसलमान वर्ग काँग्रेस के पक्ष में वोट करते हैं, इसलिए पिछले कई बार से भाजपा यहाँ से चुनाव हार रही है। लेकिन इस बार भाजपा और आजसु के तरफ से अलग दांव खेला जा रहा है, इस बार झामुमो से 2009 के चुनाव में विधायक रहे अखिल अख्तर को आजसु से प्रत्यासी बनाने का दांव खेला जा सकता है और भाजपा उसको समर्थन दे सकती है। यही स्थिति राजमहल विधानसभा का भी हो सकता है। इस विधानसभा के समीकरण के कारण भाजपा जानती है कि वो कभी यहाँ से अपने दम पर जीत नहीं सकते। इसलिए आजसु अखिल अख्तर पर भरोसा कर सकती है, क्योंकि यहाँ अगर एनडीए गठबंधन जीत हासिल करना चाहती है तो मुस्लिम वोटबैंक को अपने पक्ष में करना होगा। और भाजपा आजसु के साथ आने के बाद यह हो सकता है अगर अखिल अख्तर पर गठबंधन भरोसा कर ल
2014 के विधानसभा चुनाव में काँग्रेस के आलमगीर आलम ने 83,338 वोट लाकर झामुमो के अखिल अख्तर को 18,066 वोटों से हरा दिया था, उस चुनाव में काँग्रेस, झामुमो और भाजपा ने अलग अलग चुनाव लड़ा था। भाजपा प्रत्यासी रंजीत कुमार तिवारी 64,479 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। वहीं 2019 के चुनाव में झामुमो काँग्रेस और राजद साथ मिलकर चुनाव लड़े थे और भाजपा- आजसु अलग अलग चुनाव लडी थी, जिस कारण एनडीए गठबंधन को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। यूपीए गठबंधन ने काँग्रेस के आलमगीर आलम को ही अपना प्रत्यासी बनाया, वहीं भाजपा के बेनी प्रसाद गुप्ता मैदान में उतरे, तो फिर आजसु के अखिल अख्तर भी ताल ठोक दिये। इस चुनाव में काँग्रेस के आलमगीर आलम ने चुनाव जीत लिया, वहीं भाजपा दूसरे स्थान पर रही, जबकि अखिल अख्तर आजसु से चुनाव लड़ते हुए 39,444 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे।
लेकिन इस बार चुनावी गणित बदल सकता है, क्योंकि भाजपा शायद यहाँ चुनाव ना लड़े और आजसु को पूरी जिम्मेवारी दी जाए।
क्योंकि इस विधानसभा में अगर अखिल अख्तर को एनडीए गठबंधन का प्रत्यासी बनाया जाता है, तो आजसु और भाजपा के वोटबैंक के साथ मुस्लिम वोट भी पक्ष में आ सकता है। क्योंकि इस क्षेत्र में अखिल अख्तर की अपनी अलग ही लोकप्रियता है, खासकर मुसलमान इलाकों में। और आजसु इसी कारण लगातार वहाँ कैंप और सभा आयोजित कर रही है, और अब इलाके के कई इलाकों में दबी जुबान चर्चा हो रही है कि आलमगीर आलम के लिए संकट की सूचना आ चुकी है। अखिल अख्तर भी खुद मोर्चा संभालने में लगे हुए हैं, आजसु सुप्रीमो सुदेश महतो खुद झारखंड के सदान वर्ग से आते हैं जिस कारण इसका फायदा भी अखिल अख्तर को मिल सकता है, वहीं मुसलमानों में भी अखिल के पक्ष में गोलबंदी होनी शुरू हो गयी है। झामुमो यहाँ बहुत प्रभावी अभी तक नहीं दिख रही, हालाँकि इनका भी अपना जनाधार है। कॉंग्रेस को नुकसान, सरकार के काम करने के तरीके से हो सकता है क्योंकि लोग नाराज दिखते हैं कई लोग तो कहते दिख जाते हैं, हेमंत सरकार ने अपने वादों को पुरा नहीं किया इसलिए इस बार मुश्किल हो सकता है। वहीं भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाकर पाकुड़ विधानसभा में आलमगीर आलम के लिए मुश्किल खड़ा कर रही है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पाकुड़ विधानसभा का समीकरण पूरी तरह बदलने के स्थिति में दिख रहा है।