L19 DESK : राज्य के सरकारी स्कूलों मे तीन साल से प्रतीक्षा कर रहे 10 लाख बच्चों को इस साल भी साइकिल मिलने की संभावना लगभग ना के बराबर है। साइकिल खरीद का टेंडर तीसरी बार रद्द होने के बाद कल्याण मंत्री चंपाई सोरेन के शो-कॉज का आदिवासी कल्याण आयुक्त लोकेश मिश्र ने जो जवाब दिया है, उससे तो यही लगता है कि इस वर्ष भी छात्राओं को साइकिल मिलने की उम्मीद धरी की धरी रह जाएगी।
इस मामले पर पुछे जाने पर कल्याण आयुक्त लोकेश मिश्र ने कहा है कि छात्र-छात्राओं की साइकिल के लिए अलग-अलग टेंडर निकालने का नियम नहीं है। कई राज्यों के टेंडर का अध्ययन करने पर छात्र और छात्राओं के लिए अलग-अलग टेंडर निकालने की जानकारी नहीं मिली है। अगर ऐसा किया गया तो यह केंद्रीय सतर्कता आयोग के गाइडलाइन का उल्लंघन होगा, क्योंकि जीईएम पोर्टल पर प्रकाशित टेंडर में जनरल फाइनेंशियल रूल का पालन अनिवार्य है।
नियमों के अनुसार भी किसी एक प्रकार की वस्तुओं के टेंडर को अलग-अलग भाग में नहीं बांटा जा सकता। आदिवासी कल्याण आयुक्त ने वित्तीय विसंगतियों और विरोधाभासों पर फिर से विचार करने का आग्रह करते हुए मंत्री से मार्गदर्शन मांगा है। अगर एक महीने के अंदर मार्गदर्शन मिला और टेंडर की प्रक्रिया शुरू हुई, तो भी आठ महीने के अंदर सभी बच्चों को साइकिल मिलने की गारंटी नहीं।
टेंडर के अनुसार 10वीं के बच्चों को दो महीने में और आठवीं और नौवीं के बच्चों को छह महीने के अंदर साइकिल दे देनी थी। इसके लिए टेंडर डॉक्यूमेंट में 250 करोड़ सालाना टर्नओवर और प्रतिवर्ष साढ़े सात लाख साइकिल बनाने वाली कंपनियों को भाग लेने का नियम बनाया गया। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि चूंकि झारखंड को अभी करीब 10 लाख साइकिल की जरूरत है, ऐसे में वैसी छोटी कंपनियां जो स्वयं साल में दो या तीन लाख साइकिल का उत्पादन करती हैं, समय पर आपूर्ति नहीं कर पाएंगी।