L19 DESK : क्या आपको मालूम है राज्यों मे शराब के उत्पाद और बिक्री राज्य सरकार के कमाई का एक बड़ा जरिया है। स्टेट GST के बाद सबसे ज्यादा राजस्व शराब के उत्पाद और बिक्री से ही आता है। इसे बेचने और बनाने पर टैक्स वसूलकर राज्यों की अर्थव्वस्था चलती है। ये बात रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट बताती है। यही वजह है कि कोई भी राज्य सरकार शराब को के दायरे से बाहर रखना चाहती है, क्योंकि एक बार शराब जीएसटी के दायरे में आ गयी, फिर इसमें केंद्र सरकार का भी हिस्सा हो जायेगा। राज्यों की कमाई घट जायेगी।
दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि तीन साल में शराब के कारण राज्यों में 40 प्रतिशत तक आमदनी में बढ़ोतरी हुई। मप्र, राजस्थान यूपी जैसे बड़े राज्यों की टैक्स से होने वाली कमाई में शराब की हिस्सेदारी 15 से 22 प्रतिशत तक है। यूपी पंजाब और बंगाल की सरकारें पेट्रोल और डीजल पर लगे टैक्स से ज्यादा शराब से कमाई कर रही है। यूपी में शराब पर टैक्स से राज्य सरकार 58 हजार करोड़ जुटाती है, जबकि पेट्रोल और डीजल पर वैट से करीब 40 हजार करोड़ कमा लेती हैं।
इसका सीधा मतलब ये है कि शराब के उत्पाद और बिक्री इन जगहों पर पेट्रोल और डीजल के मुकाबले अधिक है। इस मामले में महाराष्ट्र की स्थिति कुछ अलग है। यहां शराब पर टैक्स से 25 हजार करोड़ रुपये, जबकि पेट्रोल, डीजल पर वैट से 55 हजार करोड़ रु तक कमाई होती है। मप्र और राजस्थान में भी स्थित कुछ ऐसी ही है। जहां शराब की कमाई पेट्रोल व डीजल के मुकाबले कम है।
वहीं, झारखंड की बात करें तो शराब पर टैक्स से राज्य सरकार 2300 करोड़ के करीब की कमाई करती है। यानि खुद के टैक्स से हुई कमाई में से 7.65 प्रतिशत हिस्सा शराब का है। इसका असर जीडीपी पर भी दिखायी देता है। शराब से राज्य की जीडीपी में 0.55 प्रतिशत तक हिस्सा है। यानि राज्यों को अपने संसाधनों से मिले टैक्स की कमाई का 13.28 प्रतिशत हिस्सा शराब से आता है। ये हाल तब है जब गुजरात औऱ बिहार में शराब पूरी तरह से बैन है। यानि रिपोर्ट ये बताती है कि राज्यों में खुद के टैक्स से कमाये पैसों में एक बड़ा हिस्सा शराब का है। शराब के वजह से राज्य सरकारों के पास पैसे आ पा रहे हैं जिससे वे राज्य के विकास के लिये इस्तमाल कर सकते हैं। इसका असर जीडीपी में भी दिखायी देता है।
जीडीपी यानि कि ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट। मतलब किसी देश या राज्य की अर्थव्यवस्था को मापने का पैमाना। अगर किसी देश या राज्य का जीडीपी अधिक है, यानि कि उस देश या राज्य की आर्थिक स्थिति अच्छी है। गरीबी कम या निम्न है। वहीं किसी देश की जीडीपी कम होने का मतलब है वहां गरीबी होना। शराब से आने वाले टैक्स की एक बड़ी हिस्सेदारी राज्यों के जीडीपी में है। उदाहरण के लिये यूपी जहां शराब से आनेवाले टैक्स की जीडीपी में 2.37 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी है। यानि इन राज्यों में आर्थिक स्थिति ठीक होने में एक बड़ा कारण शराब का उत्पाद और बिक्री है।
मगर क्या वाकई में शराब के कारण देश में सुधार लाया जा सकता है? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 मे भारत में शराब पीने के काऱण 2.64 लाख से ज्यादा लोग मौत का शिकार हो गये। इसके अलावा, शराब का ज्यादा सेवन करने से मानसिक रूप से भी दुष्प्रभाव पड़ता है। प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है। साथ ही हिंसा को बढ़ावा देने में भी शराब या नशीले पदार्थों का बड़ा रोल होता है। ऐसे में अगर शराब के कारण राज्यों को आमदनी हो भी जाती है, तो क्या ये जनहित में है? क्या ऐसे में कोई देश या राज्य विकास की ओर आगे बढ़ पायेगा? हमारे सामने बिहार एक बड़ा उदाहरण है। बिहार में शराबबंदी के कारण करीब 35 हजार करोड़ तक के राजस्व का नुकसान हुआ है, मगर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अच्छे बदलाव हुए हैं।