Ranchi : रांची जिला अंतर्गत हेंदेबीली पंचायत के एक आदिवासी युवक धीरज बेदिया को परिवार के बिना जानकारी के ओरमांझी थाना ले जाने वाले मामले में अब एक नया मोड़ आया है।अब इस मामले को संज्ञान में लेते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने रांची के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) को नोटिस जारी किया है।
मामला आसो देवी की शिकायत से जुड़ा है, जिसने आरोप लगाया है कि ओरमांझी थाना के सिपाहियों ने उनके बेटे धीरज बेदिया को बिना किसी सूचना या कानूनी प्रक्रिया के जबरन उठा लिया था। आसो देवी, जो स्वर्गीय भगवान दास की पत्नी हैं उन्होंने 19 मई को NCST में अपनी शिकायत दर्ज की थी। उन्होंने अपने शिकायत पत्र में स्पष्ट किया है कि 17 तारीख शनिवार संध्या करीब 5:00 बजे, पुलिस की वर्दी में 4-5 लोग उनके बेटे धीरज बेदिया को उनके घर के बाहर से मारपीट करते हुए जबरन गाड़ी में बैठाकर ले गए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि जब यह घटना हुई, तब वह वहाँ मौजूद नहीं थीं। उन्हें इस घटना की जानकारी धीरज बेदिया की पत्नी अनु देवी ने दी।
करीब 12 घंटे बाद परिजनों को सूचना मिली कि धीरज बेदिया को ओरमांझी थाना में रखा गया है। आसो देवी ने इस बात की पुष्टि की है कि ओरमांझी पुलिस ने उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया है तथा पुलिस द्वारा धीरज बेदिया को बिना सूचना के गिरफ्तार करना आदिवासी समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
NCST ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए रांची के SSP को नोटिस जारी किया है। जारी नोटिस में लिखा हुआ है कि आयोग ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 338A के तहत अपनी जांच शुरू की है। यह अनुच्छेद आयोग को सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्रदान करता है, जिसके तहत वह इस मामले की जांच कर सकता है। नोटिस में SSP रांची, जिनका कार्यालय धुर्वा, रांची में स्थित है उनसे घटना की पूरी जानकारी मांगी गई है। आयोग ने जवाब देने के लिए 7 दिन का समय दिया है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि यदि तय समय में जवाब नहीं मिला तो वह समन जारी कर SSP को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए बाध्य कर सकता है।
यह पहला मौका नहीं है जब रांची पुलिस पर ऐसे आरोप लगे हैं। वर्ष 2021 में भी एक 15 वर्षीय लड़की को पुलिस द्वारा घर से उठाने का मामला सामने आया था, जिसमें NCST ने तत्कालीन DGP और SSP को नोटिस भेजा था। उस मामले में लड़की के पिता ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने बिना कारण उनकी बेटी की गिरफ्तारी की है। इसके अतिरिक्त, 2019 में गुमला में चार आदिवासियों की मॉब लिंचिंग के मामले में भी NCST ने पुलिस से जवाब मांगा था।
इन घटनाओं से सवाल उठता है कि क्या पुलिस अनुसूचित जनजाति समुदाय के प्रति अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभा रही है?