L19/Dhanbad : निरसा परिसर में आइआइटी, एनआइटी, राज्य विश्वविद्यालयों, सीएसआइआर प्रयोगशालाओं, प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियों और स्टार्टअप फाउंडेशन जैसे अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ संयुक्त रूप से एक हाइड्रोजन वैली इनोवेशन क्लस्टर (एचवीआइसी) स्थापित कर नई तकनीक विकसित की जाएगी। ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य की एनर्जी के तौर पर देखा जा रहा है। यह लक्ष्य की ओर ले जाएगी।
भारत 2047 तक ऊर्जा इंडिपेंडेंट यानि ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन जाएगा। इसके साथ ही 2070 तक नेट जीरो हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। इसे पूरा करने के लिए आइआइटी आइएसएम जैसे संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आइआइटी आइएसएम ने शुरुआत कर दी है।
सेंटर आफ हाइड्रोजन एंड कार्बन कैप्चर स्टोरेज एंड यूटिलाइजेशन टेक्नोलाजीज (सीएचसीसीयूएसटी) आइआइटी आइएसएम में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के समक्ष विचारों का आदान-प्रदान हुआ। निरसा परिसर में स्थापित होने वाला हाइड्रोजन वैली इनोवेशन क्लस्टर स्थापित होने वाला पूर्वी भारत का पहला केंद्र होगा।
झारखंड में बायोमास से हाइड्रोजन बनाने की है क्षमता। तकनीकी सत्र में सीएसआइआर-आइआइसीटी हैदराबाद के डा.उज्ज्वल पाल ने पानी से हाइड्रोजन पैदा करने के फोटोकैटलिटिक और इलेक्ट्रोकैटलिटिक तरीकों पर अपने शोध को साझा किया। आइआइटी कानपुर से प्रो. शांतनु डे, आइआइटी धनबाद से प्रो अरुण कुमार सामंत और विवार्ता ग्रीनटेक साल्यूशंस के निदेशक आपरेशंस रंजू गोपाल बर्मन ने बायोमास से हाइड्रोजन उत्पन्न करने के तरीके और झारखंड में इसकी विशाल क्षमता को प्रस्तुत किया है।
यह भी बताया कि हाइड्रोजन भंडारण और वितरण हमेशा एक बड़ी चुनौती रही है। हाइड्रोजन के उपयोग के पहलू को आइआइटी आइएसएम धनबाद के प्रो. सिद्धार्थ सेनगुप्ता और प्रो. गणेश चंद्र नायक और टाटा स्टील के कोल एंड कोक मेकिंग रिसर्च ग्रुप एवं पर्यावरण अनुसंधान समूह के प्रमुख डा.प्रतीक स्वरूप दास ने विस्तार से जानकारी दी है।