L19 DESK : उत्तराखंड नन बैंकिंग वित्तीय कंपनी गोल्डेन फारेस्ट प्राइवेट लिमिटेड (जीएफपीएल) के निवेशकों को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद कुल जमा राशि का कुछ हिस्सा दिया जाने लगा है। झारखंड की राजधानी रांची में भी इस कंपनी के तत्कालीन शाखा प्रबंधक की तरफ से सैकड़ों ग्राहकों से 90 और 2000 से लेकर 2005 तक की अवधी में अच्छे मुनाफे का लालच देकर काफी पैसे लिये गये थे। जानकारी के अनुसार झारखंड की राजधानी रांची, धनबाद, जमशेदपुर, बोकारो तथा अन्य शहरों में सेवानिवृत होनेवाले कर्मियों ने इस कंपनी के लुभावने वायदों को देख कर अपनी गाढ़ी पूंजी लगा दी थी। इसके बाद कंपनी दिवालिया हो गयी और सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंच गया। कंपनी के निवेशकों के एक फोरम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 2004 में याचिका दर्ज होने के समय कंपनी के झारखंड समेत देश भर के सभी कार्यालयों को बंद कर दिया गया था।
रांची के अनिंद्य बनर्जी पर भी निवेशकों ने कई थानों में मामला दर्ज कराया था। 23 साल के बाद कंपनी में डूबी उनकी रकम लौटने की उम्मीद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जगी है। आयकर विभाग मसूरी के क्लिफ एस्टेट में 500 बीघा गोल्डन फॉरेस्ट की जमीन की नीलामी कर दी है। गोल्डन फॉरेस्ट कंपनी ने वर्ष 1997 में सेबी(सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) के नियमों का उल्लंघन करते हुए जमीनों की खरीद फरोख्त की। जिसमें हजारों निवेशकों ने पैसा लगाया था। देहरादून, डोईवाला, विकासनगर, मसूरी, और ऋ षिकेश समेत प्रदेश के अन्य जिलों में भी गोल्डन फॉरेस्ट ने जमीन खरीदी। सेबी ने शिकंजा कसा तो कंपनी कारोबार छोड़ कर चली गई। इससे प्रदेश के हजारों निवेशकों का पैसा डूब गया। सेबी ने कंपनी के क्रियाकलापों पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ कंपनी ने बांबे हाईकोर्ट में अपील की। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया।
आरक्षित मूल्य करीब 23 करोड़ रुपये
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद कंपनी को डिसॉल्व कर दिया था। कंपनी से जुड़े सभी एकाधिकार जस्टिस आरएन अग्रवाल की अध्यक्षता में बनी समिति को सौंप दिए थे। इस समिति ने आयकर विभाग के साथ मिलकर कंपनी की संपत्तियों की नीलामी शुरू की है। आयकर विभाग की कर वसूली अधिकारी मीना बिष्ट की ओर से नीलामी की सूचना जारी कर दी गई है। गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 14 जनवरी को अहम फैसला सुनाया है। इसके तहत उत्तराखंड सरकार या प्रदेश के अधीनस्थ न्यायालय इन जमीनों के मामले में कोई भी फैसला नहीं ले सकेंगे। अभी तक गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों को उत्तराखंड सरकार विभिन्न विभागों को आवंटित करती आ रही थी। वहीं, इन जमीनों के कई मामले अधीनस्थ न्यायालयों में भी लंबित हैं।