L19 DESK : झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने बोकारो स्टील लिमिटेड (BSL) पर बड़ी कार्रवाई करने का फैसला कर लिया है. राज्य सरकार अब BSL से 245.43 एकड़ जमीन वापस लेगी. BSL के द्वारा अगर सरकार के आदेश पर अमल नहीं किया जाता है तो सरकार कानूनी कार्रवाई तक करने की फिराफ में है. बीएसएल को दी गयी वन भूमि और उसकी खरीद-बिक्री के मुद्दे पर विभागीय सचिव की अध्यक्षता में नवंबर 2024 में उच्चस्तरीय बैठक भी हुई थी. उस बैठक में क्या फैसला हुआ था और सरकार अब BSL से जमीन क्यों वापस लेना चाहती है.
BSL यानी बोकारो स्टील लिमिटेड को वन भूमि की जमीन इसलिए दी गई थी ताकि उस जमीन का इस्तेमाल कंपनी के द्वारा की जाए लेकिन राज्य सरकार ने पाया कि कंपनी 245.43 एकड़ वन भूमि जमीन का इस्तेमाल ही नहीं कर रही है. जिसके बाद सरकार ने इसे BSL से वापस लेने का फैसला लिया है. जमीन वापसी की सूचना, राज्य सरकार की ओर से BSL प्रबंधन को दे दी गई है. सरकार, चेतावनी वाले लहजे में BSL प्रबंधन को आदेश पर जल्द से जल्द अमल करने की बात भी कह चुकी है. वहीं, सरकार ने यह भी कहा है कि अगर आदेश पर पहल नहीं होती है तो BSL पर कानूनी कार्रवाई तक की जाएगी. इसके अलावा राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि वन भूमि पर स्टील सिटी के अधिकारियों की लापरवाही की वजह से वन भूमि में अवैध कब्जा हुआ है.
बहरहाल, बीएसएल को दी गयी वन भूमि और उसकी खरीद-बिक्री के मुद्दे पर विभागीय सचिव की अध्यक्षता में नवंबर 2024 में उच्चस्तरीय बैठक हुई. बैठक में यह पाया गया कि हजारीबाग वन प्रमंडल ने सात गांवों की 671.09 एकड़ और बोकारो वन प्रमंडल ने 11 गांवों की 870.38 एकड़ वन भूमि बीएसएल को हस्तांतरित किया था. बीएसएल ने साल 1976 में पत्र लिख कर 10 गांवों की 864.21 एकड़ वन भूमि को अपने कब्जे में लेने की जानकारी दी थी. इसके 20 साल बाद यानी 1996 में बीएसएल ने सरकार को पत्र लिख और तेतुलिया की 95.65 एकड़ और सतनपुर की 149.78 एकड़ जमीन वापस करने की इच्छा जतायी. लेकिन उस समय किसी कारण इस्तेमाल नहीं की जाने वाली वन भूमि सरकार को वापस नहीं की जा सकी.
वहीं, मामले की समीक्षा के बाद 1 नवंबर, 2024 को उच्चस्तरीय बैठक हुई, जिसमें बीएसएल द्वारा इस्तेमाल नहीं की गई वन भूमि को वापस लेने का फैसला किया गया. सरकार के स्तर पर किये गये इस फैसले पर अमल करने के लिए बीएसएल और वन प्रमंडल के अधिकारियों की एक संयुक्त समिति बनाने का फैसला किया गया, ताकि सर्वे कर इस्तेमाल नहीं की गई वन भूमि को चिह्नित कर सीमांकन करने और पिलर लगाने का काम किया जा सके. झारखंड सरकार द्वारा जमीन वापस लेने के सिलसिले में किये गये फैसले के बाद बोकारो वन प्रमंडल की ओर से दिसंबर 2024 में बैठक बुलाई गई थी. लेकिन, बीएसएल की ओर से इस बैठक में कोई शामिल नहीं हुआ. इसके अगले महीने यानी जनवरी 2025 में बीएसएल की ओर से एक पत्र भेजा गया.
बीएसएल की ओर से उस प्रस्तावित डीड ऑफ कन्वेंस के आधार पर अपना दावा किया गया, जिस पर अब तक हस्ताक्षर ही नहीं हुआ है. बीएसएल के इस रवैये को देखते हुए झारखंड सरकार के स्तर पर वन भूमि वापसी के लिए कड़ा निर्णय लेते हुए कहा गया कि अगर BSL सरकार के आदेश का पालन नहीं करती है तो उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी. खैर, BSL के जवाब और राज्य सरकार के रवैये से ययह तो साफ है कि एक बार फिर दोनों आमने-सामने की लड़ाई के लिए तैयार हैं.