झारखंड विधानसभा चुनाव-2024 में अपना सर्वश्रेठ प्रदर्शन करते हुए आबुवा सरकार फिर एक बार सत्ता पर काबिज है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीते 28 नवंबर, 2024 को राज्य के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण भी कर चुके हैं और आज यानी 05 दिसंबर, 2024 को उनके 11 मंत्रियों ने भी शपथ ग्रहण कर लिया है. आज झारखण्ड की राजनीति में फिर से एक नया इतिहास लिखा जायेगा लेकिन साथ ही साथ एक काला अध्याय भी लिखा जायेगा.झारखण्ड की राजनीति में खासकर जेएमएम और कांग्रेस हर मंच से चिल्ला-चिल्लाकर अबुवा दिशुम – अबुवा राज का नारा देती है. अबुवा दिशुम – अबुवा राज का मतलब है अपना देश –अपनी सरकार लेकिन आपको पता है सबसे पहले यह नारा किसने दिया था. यह नारा सबसे पहले उस व्यक्ति ने दिया था जिसे पूरी दुनिया और खासकर आदिवासी समाज भगवान मानता है यानि धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा ने सबसे पहले अबुवा दिशुम – अबुवा राज का नारा दिया था. जिसे मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने झारखण्ड अलग राज्य आंदोलन का मूल नारा बनाया था.
सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी दावा कर रहे हैं कि यह अबुवा सरकार है, लेकिन आज बहुत अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि अबुवा दिशुम – अबुवा राज का नारा देकर उलगुलान करने वाले मुंडाओं को अबुवा सरकार के मंत्रिमंडल में जगह नहीं दिया गया है जबकि बाहरी नेताओं को जगह मिली है.
अगर जातीय समीकरण को साधते हुए मंत्री पद के लिए चेहरों को चुना गया है तो अल्पसंख्यक समुदाय से दो मंत्री इरफ़ान अंसारी और हफिजूल हसन हुए, ईसाई समुदाय से शिल्पी नेहा तिर्की, महतो समुदाय से योगेंद्र महतो, उरांव समुदाय से चमरा लिंडा, यादव वोटरों को साधने के लिए संजय प्रसाद यादव और अप्पर कास्ट को साधने के लिए दीपिका पाण्डेय सिंह को मंत्री बनाया गया है बस मुंडा समुदाय आम-इमली है शायद इसलिए इस समुदाय से किसी भी चेहरे को मंत्री पद के लिए नहीं चुना गया.
हेमंत सोरेन की नजर शुरू से सिर्फ और सिर्फ संथाल और कोल्हान के नेताओं पर ही मेहरबान रही है और हो भी क्यों नहीं संथाल में 18 और कोल्हान में 14 सीटे ही तो तय करती हैं कि सत्ता किसकी बनेगी लेकिन क्या इतने सीटों से ही सरकार बन जानी थी हेमंत सोरेन की?
इस बार मुंडा नेताओं ने वो करके दिखाया जो और किसी समुदाय के नेता नहीं कर पाए. विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद 5 मुंडा विधायक सदन में जीतकर पहुंचे हैं उनमें लगातार तीसरी बार तमाड़ से विकास सिंह मुंडा ने जीत दर्ज की है. सिसई विधायक जिग्गा सुसारण होरो की यह लगातार दूसरी जीत है, भूमिज मुंडा समुदाय से एकलौते पोटका विधायक संजीव सरदार की भी यह लगातार दूसरी जीत है. तोरपा विधानसभा से बीजेपी को ख़त्म करते हुए विधायक सुदीप गुड़िया ने यह सीट जेएमएम की झोली में डाला है और सबसे खास और महत्वपूर्ण जीत दिलाई है खूंटी विधायक रामसुर्य मुंडा ने पूरे 2 दशक के बाद यह सीट जेएमएम के पाले में गई है. इन सबके बावजूद मुंडा विधायकों को सीरे से गठबंधन सरकार ने या यूँ कहें तो अबुवा सरकार ने ठेंगा दिखा दिया.
कितना अजीब लग रहा है आज ये बोलना कि जिस समुदाय के नाम से झारखण्ड की राजनीति शुरू होती है उस समुदाय से एक मंत्री तक देने में अबुवा सरकार नाकाम रही. धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के नाम से राजनीति की जाती है, बिरसा के सपनों का झारखण्ड बनाने की बात होती है लेकिन उसके समुदाय से मंत्री बनाना तो छोड़ दीजिए यहां बात तक नहीं की जा रही है.
इससे अच्छा तो बीजेपी के कार्यकाल में मुंडाओं को सम्मान मिला है. बीजेपी के शासनकाल में अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. नीलकंठ सिंह मुंडा, बीजेपी की सरकार में संसदीय कार्य और ग्रामीण विकास मंत्री रह चुके हैं. 8 बार के सांसद और कद्दावर नेता कड़िया मुंडा को बीजेपी ने केंद्र में मंत्री तक बनाया है. इसके अलावा बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा की सरकार में तमाड़ से जेडीयू के टिकट पर विजयी हुए रमेश सिंह मुंडा भी एनडीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. लेकिन ये कैसी अबुवा सरकार जो मुंडा नेताओं को सम्मान तक देना नहीं जानती. क्या ऐसे पूरा होगा अबुवा दिशुम – अबुवा राज का सपना?