L19/Ranchi : राज्य के वरिष्ठ आइएएस अधिकारी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रधान सचिव रहे राजीव अरुण एक्का पर अब प्रवर्तन निदेशालय (इडी) की गाज गिरनी लाजिमी है। इडी को आइएएस राजीव अरुण एक्का, ब्रोकर विशाल चौधरी और रिश्तेदार निशित केशरी की मिलीभगत से करोड़ों रुपये का वारा-नायारा करने, टेंडर में गड़बड़ी करने के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। राजीव अरुण एक्का ने टेंडर में गड़बड़ी कर विशाल चौधरी के साथ मिल कर बाजार से तीन गुना से भी अधिक कीमत पर सामान खरीदी। सामग्री के बाज़ार मूल्य और आपूर्ति किये गये मूल्य के अंतर का 50 प्रतिशत रिश्वत के तौर पर लिया।
विशाल चौधरी ने अपनी एफजीएस कंस्ट्रक्शन कंपनी में निशीथ केसरी को निदेशक बनाया। मुनाफे की राशि नीशित केशरी, जो नीशित केशरी कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के ऑनर हैं के हिस्से को राजीव अरुण एक्का के पारिवारिक सदस्यों के खाते में जमा कराया। ब्रोकर विशाल ने अपनी काली कमाई के चार करोड़ रुपये से पुनदाग में 59 डिसमिल जमीन खरीदी भवन बनाने के लिए निशित को (एनकेपीसीएल) डेवलपर बना कर उसे 60 प्रतिशत हिस्सा दिया। इतना ही नहींविशाल चौधरी ने अपने सहयोगियों के माध्यम से निशीथ केसरी को नकद 1.36 करोड़ रुपये दिलवाये।
राजीव अरुण एक्का ने विशाल चौधरी के माध्यम से आइएएस अधिकारी मनोज कुमार व अन्य की पोस्टिंग के लिए करोड़ों रुपये लिये। विशाल ने राजीव अरुण एक्का के साथ मिल कर नाजायज कमाई का हिसाब किताब रखा। पैसे के लेन-देन औऱ लायजनिंग के कार्य में विशाल चौधरी ने आइएएस राजीव अरुण एक्का के लिए आर सर, आरएइ और अपनी पत्नी श्वेता सिंह चौधरी के लिए एसएससी जैसे कोर्ड वर्ड का इस्तेमाल किया।
पैसों के लेन-देन में लाख रुपये के लिए “फाइल” और करोड़ के लिए “ फोल्डर” जैसे कोड वर्ड का इस्तेमाल किये जाने के सबूत इडी को मिले हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने पीएमएलए की धारा 66(2) के तहत राजीव अरुण एक्का व अन्य के सिलसिले में राज्य सरकार के साथ साझा की गयी सूचना में इन तथ्यों का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में आइएएस राजीव अरुण एक्का अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया है।
पत्नी, बेटी के वेतन के रूप में दिखायी काली कमाई
ईडी की ओर से सरकार को भेजे गये पत्र में कहा गया है कि पूजा सिंघल मामले की जांच के दौरान जानकारी मिली कि विशाल चौधरी राज्य के वरीय अधिकारियों के लिए रिश्वत की वसूली करता है। इस सूचना पर विशाल चौधरी, नीशित केशरी, प्रेम प्रकाश के कार्यालय और घर पर छापामारी की गयी। इस दौरान गड़बड़ी से संबंधित दस्तावेज और डिजिटल डिवाइस ज़ब्त किये गये। डिजिटल डिवाइस के डाटा से इस बात की जानकारी मिली कि विशाल चौधरी अपने सहयोगियों और मुख्यमंत्री के तत्कालीन प्रधान सचिव के साथ मिल कर अवैध गतिविधियों को अंजाम देता था। इन अवैध गतिविधियों से होनेवाली आमदनी का एक हिस्सा आइएएस राजीव अरुण एक्का को मिलता था।
नाजायज तरीके से कमायी गयी इस राशि की मनी लाउंड्रिंग कर एक्का की पत्नी और बेटी के बैंक खातों में जमा किया गया। इडी ने जांच में यह पाया कि राजीव अरुण एक्का की काली कमाई को उनकी पत्नी डॉक्टर सुप्रिया मिंज और बेटी सराहना एक्का के खातों में वेतन के रूप में दिखाया गया है। मनी लाउंड्रिंग के इस काम को चार्टर्ड एकाउंटेंट गौरव गुंजन द्वारा अंजाम दिया जाता था।
सुप्रिया मिंज को दिल्ली की डरमा प्यूरिटिज नामक क्लिनिक में कंसल्टेंट के रूप में दिखा कर वेतन के रूप में एक लाख रुपये प्रति माह की दर से भुगतान किया गया है। हालांकि सुप्रिया मिंज कभी दिल्ली स्थित क्लिनिक में नहीं गयी हैं, पर हर शुक्रवार को राजीव अरुण एक्का दिल्ली जाते थे। इस अस्पताल और विशाल चौधरी दोनों का ही सीए गौरव गुंजन ही है। इसी तरह राजीव अरुण एक्का की बेटी सराहना एक्का को भी एक कंपनी में काम करते हुए दिखा कर काली कमाई को वेतन के रूप में दिखाया गया है।
इडी ने मामले की जांच के दौरान वित्तीय वर्ष 2016-17 से वित्तीय वर्ष 2021-22 तक की अवधि में सुप्रिया मिंज और सराहना के बैंक खातों और आयकर रिटर्न का मिलान किया किया है। इसमें दोनों के ही खातों में भारी नक़द जमा होने और रिटर्न में घोषित आमदनी से ज़्यादा बैंक खाते में जमा होने की पुष्टि हुई है। बेटी ने तो पांच वर्ष तक आयकर रिटर्न ही दाखिल नहीं किया था। पत्नी के खाते में इस अवधि में कुल 1.66 करोड़ रुपये जमा हुए थे।
इसमें से 19.59 लाख रुपये नक़द जमा किये गये थे, लेकिन इस अवधि में उन्होंने अपने आयकर रिटर्न में सिर्फ़ 63.08 लाख रुपये की आमदनी का उल्लेख किया था। इडी ने तथ्यों के सबूत के तौर पर सरकार को बैंक खातों का ब्योरा और रांची में विशाल के कर्मचारियों द्वारा राजीव अरुण एक्का के पारिवारिक सदस्यों के खातों में नकद राशि जमा करने का सीसीटीवी फ़ुटेज भी भेजा है।
कर्मचारियों से नकद राशि जमा करवाता था विशाल चौधरी
इडी ने बाज़ार से तीन गुना से ज़्यादा क़ीमत पर सामान ख़रीदने का विस्तृत ब्योरा भी सरकार को भेजा है। इसमें यह दिखाया गया है कि टेंडर के माध्यम से कुल 42 प्रकार की सामग्रियां ख़रीदी गयी। सरकार से इसके लिए 1.15 करोड़ रुपये का भुगतान लिया गया। जांच में पाया गया कि बाज़ार में इस सभी सामग्रियों की क़ीमत सिर्फ़ 30.60 लाख रुपये है। सामग्रियों की खरीद में जीएसटी, ढुलाई सहित अन्य प्रकार के ख़र्चों को काट कर 45.67 लाख रुपये बचे।
इसमें से 50 फीसदी राशि आइएएस राजीव अरुण एक्का और शेष राशि विशाल की पत्नी श्वेता सिंह चौधरी ने ले लिया। इन लोगों ने अधिक मूल्य पर सामान ख़रीद के बंटवारे का फ़ार्मूला तय कर रखा था. इसके तहत कुल रक़म में से 40%, 10%, 10% की दर से विशाल और उसकी कंपनियों को मिलता था. इसके बाद बाक़ी बची हुई रकम में से राजीव अरुण एक्का और श्वेता सिंह चौधरी के बीच 50-50 प्रतिशत बंटता था।
नीलोफर और अन्य कर्मियों के माध्यम से बैंक खाते में जमा होती थी राशि
जांच में यह भी पाया गया कि विशाल चौधरी अपने कर्मचारियों जैसे नीलोफर आरा, एम अनवर सहित अन्य के खातों में नक़द राशि जमा करवाता था और बाद में उनके खातों से अपने खातों में ट्रांसफ़र करवाता था। इडी ने जांच में पाया कि विशाल चौधरी ने पुनदाग में सेल डीड संख्या 6402/5794 और सेल डीड संख्या 6404/5795 के सहारे 21 अगस्त 2021 को चार करोड़ की लागत पर कुल 1.18 एकड़ ज़मीन ख़रीदी।
इस ज़मीन पर भवन बनाने के लिए एनकेपीसीएल को डेवलपर बनाया. कंपनी निशित केसरी की है। नीशित आइएएस राजीव अरुण एक्का का रिश्तेदार है। विशाल ने इस काम में नीशित को 60 प्रतिशत हिस्सा दिया। इडी ने श्वेता चौधरी के मोबाईल से मिली तस्वीरों की जांच में पाया कि विशाल चौधरी के एक कर्मचारी ने नीशित को 1.36 करोड़ रुपये नक़द दिये। इसके बाद नीशित ने लाउंड्रिंग कर इसे विशाल चौधरी के खाते में ट्रांसफर कर दिया।
लाख के लिए फाइल और करोड़ के लिए फोल्डर का होता था इस्तेमाल
विशाल चौधरी और उसकी पत्नी के मोबाइल से मिले आंकड़ों से इस बात की भी जानकारी मिली है कि अधिकारियों के ट्रांसफ़र पोस्टिंग के लिए भी पैसों की वसूली की जाती थी। इस बात की पुष्टि के लिए इजी वाट्सएप चैट भी सरकार के साथ साझा किया है। इसमें ट्रांसफ़र पोस्टिंग के लिए हुए लेन देन में लाख रुपये के लिए ‘फाइल’ और करोड़ के लिए ‘फ़ोल्डर’ शब्द का प्रयोग किया गया है। चैट में आइएएस मनोज कुमार को ज़ैप आइटी में सीइओ की पोस्टिंग के लिए 50 लाख व कामेश्वर सिंह को आदिवासी कल्याण आयुक्त बनाने के लिए एक करोड़ के लेन देन का उल्लेख है।