L19 DESK : झारखंड सरकार के इंजीनियरिंग विंग के मुख्य अभियंता से लेकर अन्य अब प्रवर्तन निदेशालय की नजर पैनी हो गयी है। ग्रामीण विकास विभाग, पथ निर्माण विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, ग्रामीण कार्य विभाग, जल संसाधन विभाग, पेयजल और स्वच्छता विभाग के सभी मुख्य अभियंताओं और अभियंता प्रमुख स्तर के अधिकारियों के फोन सव्रेलेंस (निगरानी) में रखे गये हैं। इडी की तरफ से 2014 से लेकर अब तक की निविदा पर निगरानी की जा रही है। ग्रामीण कार्य विभाग के चीफ इंजीनियर वीरेंद्र राम को हिरासत में लिये जाने के बाद अब पेयजल और स्वच्छता विभाग, जल संसाधन विभाग, पथ निर्माण विभाग, ग्रामीण विकास विभाग के इंजीनियर और ठेकेदार दायरे में आ गये हैं। प्रारंभिक जांच में शिकायतों के सही पाये जाने पर इडी इन सभी विभागों के अभियंताओं और ठेकेदारों पर कार्रवाई करेगी।
इडी की नजर में मुख्य अभियंता स्तर के दर्जनों अधिकारी शामिल हैं। इसमें जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंताओं का सिंडिकेट, जिसके लीडर वीरेंद्र राम थे।वे सभी शामिल हैं। जल संसाधन विभाग में सुवर्णरेखा परियोजना के प्रबंध निदेशक रहे सभी अधिकारी और मुख्य अभियंता शामिल हैं। इसके अलावा विभाग के अभियंता प्रमुख हेमंत कुमार, वीरा राम, नागेश मिश्रा, मुख्य अभियंता अशोक कुमार सरीखे अधिकारी भी शामिल हैं। इस सिंडिकेट की वजह से सोमा कंस्ट्रक्शन केस का मामला अब भी विचाराधीन है। सोमा कंस्ट्रक्शन की तकनीकी बिड जल संसाधन विभाग की निविदा समिति ने इसलिए नहीं खोली, क्योंकि सोमा कंस्ट्रक्शन 970 करोड़ की लागत से सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना का मुख्य कैनाल बना सकता था। सरकार में उस समय जल संसाधन सचिव सुखदेव सिंह थे। उन्होंने कोर्ट में यह हलफनामा दिलवा दिया था कि ग्रामीण डैम के विरोध में हैं। जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी। अब इस योजना की लागत 14 सौ करोड़ के पार हो गयी है। झारखंड मुक्ति मोरचा की सरकार का यह फैसला है।
इडी की नजर में पेयजल और स्वच्छता विभाग के अभियंता प्रमुख भी शामिल हैं। इसमें तत्कालीन अभियंता प्रमुख श्वेताभ कुमार, रमेश कुमार, वर्तमान अभियंता प्रमुख रघुनंदन शर्मा के नाम सामने आ रहे हैं। रघुनंदन शर्मा को अभियंता प्रमुख बनाये जाने पर ही सवाल खड़ा हो गया है। रघुनंदन शर्मा पर वित्तीय अनियमितता के गंभीर आरोप हैं। महालेखाकार और विभाग संयुक्त जांच में शर्मा को जमशेदपुर और आदित्यपुर प्रमंडल में निर्मल भारत अभियान के तहत 50 लाख 83 हजार और आदित्यपुर प्रमंडल में 66 लाख 16 हजार की कपटपूर्ण अवैध निकासी का सू्त्रधार एवं संरक्षक बताया गया था। इस मामले में एजी और विभाग के संयुक्त जांच दल ने शर्मा पर एफआइआर करने की सिफारिश की थी।
मामला निर्मल भारत अभियान के तहत जमशेदपुर प्रमंडल में बैंक ऑफ इंडिया के खाता से 10 नवंबर 2012 से 26 दिसंबर 2013 तक 50 लाख 83 हजार के गबन और धोखाधड़ी का है। जिला जल स्वच्छता मिशन के खाते से पेयजल एवं स्वच्छता प्रमंडल, जमशेदपुर एवं आदित्यपुर में क्रमशः दिनांक 10 नवंबर 2012 से 26 दिसंबर 2013 तक तथा 31 अगस्त 2013 से 26 दिसंबर 2013 तक धोखाधड़ी कर अवैध रूप से एवं कपटपूर्ण तरीके से 5744000 की राशि की निकासी कर गबन किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गबन का खेल जमशेदपुर प्रमंडल में रघुनंदन शर्मा के प्रभार ग्रहण के बाद 10 नवंबर 2012 से शुरू होकर स्थानांतरण के कारण प्रभार सौंपने के 1 दिन पूर्व यानी 26 दिसंबर 2013 तक चला है।
वहीं ईडी ने पश्चिम सिंहभूम और धनबाद जिलों में पेयजल विभाग एवं स्वच्छता विभाग के 250 करोड़ से अधिक की हेराफेरी की जांच शुरू कर दी है।
इंजीनियर इन चीफ सेवानिवृत्त श्वेताभ कुमार के कार्यकाल में पश्चिम सिंहभूम और धनबाद जिलों में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की योजनाओं में 250 करोड़ से अधिक का घालमेल किया गया था। पेयजल विभाग ने इसकी जांच करायी थी। जिसमें कई घोटाले के मामले सामने आये थे। उस समय विभागीय इंजीनियरों पर कार्रवाई हुई। मगर दोषी संवेदकों पर कार्रवाई नहीं हुई। जबकि विभागीय जांच के बाद संवेदक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और तीन वर्ष के अंदर संवेदक को आवंटित सभी योजनाओं की जांच करने से संबंधित पत्र जारी हुआ था। पत्र जारी होने के इतने दिनों के बाद भी करोड़ों का वारा- न्यारा करने वाले संवेदक मेसर्स आनंद सिंह, चाईबासा के खिलाफ कोई कार्रवाई अबतक नहीं हुई है।
पश्चिम सिंहभूम जिला की 94 करोड़ की तांतनगर जलापूर्ति योजना में 17 करोड़ का घोटाला हुआ । योजना में कार्य से 30 करोड़ रुपए ज्यादे का भुगतान भी किया गया है । श्रीराम ईपीसी कंपनी को 94 करोड़ की तांतनगर जलापूर्ति योजना का काम मिला था। काम लेने के बाद कंपनी ने नियमों को दरकिनार कर करोड़ों रुपये का काम मेसर्स आनंद सिंह को सबलेट कर दिया था। इसकी जांच भी हुई थी। जांच समिति ने श्रीराम ईपीसी को दोषी पाते हुए कंपनी को एक साल के लिए डिबार कर दिया था। मगर मेसर्स आनंद सिंह पर कार्रवाई नहीं की गयी।
पेयजल विभाग के सीडीओ से जारी पत्र में दिनांक 24-01-2017 से 26.09.2019 तक मेसर्स आनंद सिंह को आवंटित कार्यों की जांच करने से संबंधित पत्र 04 जून 2020 को जारी हुआ था। इसकी पत्र संख्या 9-CDO-23/17-236, 04.06.2020 है। मगर उस पत्र को दबा दिया गया। चाईबासा पेयजल प्रमंडल को पेयजल मुख्यालय से जारी पत्र मिला ही नहीं।
ईडी ने शिकायत के बाद जांच की तो पता चला कि पश्चिम सिंहभूम जिले में पेजयल आपूर्ति विभाग की ओर से तैयार की गई 113 जलमीनार निर्माण योजनाओं की जांच होनी थी। जिनमें करोड़ों की अनियमितता की शिकायत की गयी है। इसके बाद भी जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया । धनबाद में भी करोड़ों की जलापूर्ति योजनाओं में हुई वित्तीय अनियमितताओं की जांच ईडी ने शुरू की, तो पता चला कि अभियंता प्रमुख रहे श्वेताभ कुमार ने अपने करीबी संवेदक अभय कुमार सिन्हा को करोड़ों का काम नियमों को दरकिनार कर आवंटित किया। इसमें रांची अंचल में जलापूर्ति योजनाओं का रख-रखाव भी शामिल है। इसकी शिकायत पर विभागीय जांच हुई। जिसमें कई योजनाओं में गड़बड़ी मिली, मगर श्वेताभ कुमार ने जांच को रुकवा दिया।
इसकी शिकायत पेयजल मंत्री मिथलेश ठाकुर के पास भी पहुंची थी। मंत्री ने विभाग के तत्कालीन इंजीनियर इन चीफ श्वेताभ कुमार का पावर सीज कर दिया था। तत्कालीन विभागीय सचिव प्रशांत कुमार ने श्वेताभ कुमार को पत्र जारी करते हुए उनके कार्यों की विस्तृत समीक्षा की बात कही थी। सचिव ने कहा था कि सप्ताह में की गयी निविदा निस्तारण प्रक्रिया से संबंधित विहित प्रपत्र में प्रतिवेदन के साथ निर्धारित दिन एवं समय पर उपस्थित होना सुनिश्चित करेंगे। ताकि साप्ताहिक प्रतिवेदन की समीक्षा की जा सके। कमोबेश राज्य में तीन हजार करोड़ से अधिक की सड़कों के निर्माण संबंधी निविदा में भी काफी घालमेल हुआ है। विधानसभा के सदस्य अपने-अपने इलाकों में सड़क निर्माण को लेकर पथ निर्माण और ग्राम्य अभियंत्रण पर काफी दवाब बनाया था। वीरेंद्र राम प्रकरण पर सभी पथों की निविदा निकाली गयी। इसके बाद सभी निविदा को रद्द कर दिया गया। एक अप्रैल को फिर ग्रामीण विकास विभाग के मुख्य अभियंता के कार्यालय से 100 करोड़ से अधिक की निविदा आमंत्रित की गयी है।