
L19 DESK : बाल मजदूरी की रोकथाम और उन्मूलन के लिए बड़ा कदम उठाया जा रहा है। 1 से 30 जून तक चाइल्ड लेबर को लेकर रेस्क्यू ड्राइव चलाया जाएगा। यह अभियान रेलवे एरिया में किया जाएगा। यह बालश्रम रोकथाम की दिशा में सार्थक पहल होगा। यह निर्णय राष्टीय बाल अधिकार आयोग की वर्चूवल बैठक में किया गया।
इसमें पूरे देश से सीडबलूसी के मेंबर मौजूद थे। आयोग के चेयरमैन प्रियांक कानूनगो ने कहा कि सीडबलूसी के सामने जो स्टेटमेंट होगा उसी के आधार पर पुलिस प्राथमिकी दर्ज करेगी। पुलिस को अगल से बयान लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सीडब्ल्यूसी के आधार पर ही कार्रवाई की जाएगी। इस संबध में एनसीपीसीआर डीजीपी को पत्र भेजा जाएगा। साथ ही आम लोग भी चाइल्ड लेबर का रेस्क्यू कर सकता है किसी की परमिशन की जरूरत नहीं रहेगी। उसके बाद सीडब्लूसी के सामने जमा कर सकता है।
मौजूदा समय में बाल मजदूरी एक मुख्य वैश्विक समस्या है। अंतरर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ और यूनिसेफ के अनुसार वर्ष 2016 में भारत में 9.40 करोड़ बाल मजदूर थे जो साल 2022 तक बढ़कर 16 करोड़ तक पहुंच गया। संस्थाओं का मानना है कि बाल मजदूरी का मुख्य कारण गरीबी है। गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे परिवार बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने बच्चों को भी काम पर लगाते हैं।
वही पुलिस द्वारा सख्ती से कार्रवाई नहीं करना भी एक वजह है बाल मजदूरी का बढ़ना। दरअसल, पुलिस बाल मजदूरों को रेस्क्यू करती है और माता-पिता को सौंप देती है। माता-पिता दोबारा उन्हें काम पर लगा देते हैं। उनके पुनर्वास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया जाता।
झारखंड में भी एक गंभीर समस्या
राज्य में भी बाल मजदूरी एक गंभीर मानवीय समस्या बन कर खड़ी हो रही है। वैसे तो बीते 10 सालों में बाल मजदूरो की संख्या में कमी आई है लेकिन अब भी उनकी संख्या 90 हजार से अधिक है। हालांकि, 2001 की जनगणना के अनुसार राज्य में 4.7 लाख बाल मजदूर थे।
राज्य से व्यापक पैमाने पर बच्चों को मानव तस्करों द्वारा झांसे में लेकर दूसरे राज्यों में भी बेच दिया जाता है जहां ये बच्चे घरेलु नौकर, ईंट भट्टा मजदूर या फैक्ट्रियों में श्रमिक का काम करते हैं। में भी बच्चे व्यापक पैमाने पर ईंट भट्टों में जोखिम भरे परिस्थितियों में काम करते हैं। ऐसे में 1 से 30 जून के बीच चाइल्ड लेबर रेस्क्यू ड्राइव चलाने से बालश्रम के खिलाफ कामयाबी मिल सकेगी और बच्चों का पुनर्वास हो सकेगा।
