RANCHI : जज साहब, माई लॉर्ड,
आज कोई अदालत नहीं लगी थी,
फिर भी एक अफसर की पेशी हो गई।
न कोई वकील था,
न बहस,
न सफई का मौका।
फैसला पहले ही सुना दिया गया – लाइन हाजिर।
अपराध क्या था?
कानून को किताब से निकालकर
सड़क पर लागू कर देना।
एक जवान ने ड्यूटी निभाई,
एक अधिकारी ने उसका साथ दिया.
बस यहीं से
मामला नियम का नहीं,
पहचान का हो गया।
शायद आपको कुछ समझ में नहीं आ रहा होगा, लेकिन हमारी जिम्मेदारी है कि हम आपको पूरा मामला समझाएं.
बात ऐसी है कि राजधानी रांची के कोतवाली थाना क्षेत्र अंतर्गत शहीद चौक पर रविवार देर रात यह पूरा घटनाक्रम घटा. बताया जाता है कि एक माई लॉर्ड यानि जज साहब यानि इस धरती के दूसरे जीवित भगवान क्योंकि पहला जीवित भगवान तो डॉक्टर साहब लोग है के बॉडीगार्ड की स्कूटी को रोकना कोतवाली थानेदार को भारी पड़ गया. विवाद इतना बढ़ा कि महज एक घंटे के भीतर थानेदार को लाईन हाजिर कर दिया गया.
मिली जानकारी के अनुसार, कोतवाली थाना प्रभारी आदिकांत महतो रविवार देर रात अपने वरिष्ठ अधिकारी के निर्देश पर शहीद चौक के पास वाहन चेकिंग कर रहे थे. इसी दौरान एक स्कूटी सवार जवान को जांच के लिए रोका गया. जांच के दौरान उक्त जवान ने खुद को एक वीवीआईपी का बॉडीगार्ड बताया.
बताया जा रहा है कि जांच के दौरान मौजूद थानेदार और जवान के बीच बहस हो गई. आरोप है कि जवान ने थानेदार को धमकाते हुए कुछ ही मिनटों में ट्रांसफर कराने की बात कही. विवाद बढ़ने के बाद जवान ने सड़क पर ही अपनी स्कूटी छोड़ दी और वीवीआईपी को फोन कर पूरे मामले की जानकारी दी.
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मामले की सूचना मिलते ही पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. रांची के तमाम वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सक्रिय हो गए. सिटी एसपी स्वयं मौके पर पहुंचे और बॉडीगार्ड से बातचीत कर स्थिति को संभालने का प्रयास किया, लेकिन वह सुनने को तैयार नहीं था.
वीवीआईपी के बॉडीगार्ड के तेवर देखकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी असहज नजर आए. इसके कुछ ही देर बाद, बिना किसी विभागीय जांच के, थाना प्रभारी आदिकांत महतो को देर रात ही लाइन हाजिर करा दिया गया. वर्तमान में कोतवाली थाने में किसी नए थानेदार की पोस्टिंग नहीं की गई है.
जानकारी के मुताबिक, वीवीआईपी कोई और नहीं बल्कि हाईकोर्ट के माई लॉर्ड हैं – जज साहब थे. माई लॉर्ड को अपने बॉडीगार्ड को रोका जाना नागवार गुजरा. ईश्वर समान माने जाने वाले पद का ईगो आहत हो गया, और फिर यह सब हुआ.
न वजह पूछी गई,
न पक्ष मांगा गया,
और सीधे लाइन हाजिर कर दिया गया.
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अब सवाल यह है कि जब कानून सबके लिए बराबर है, तो फिर माई लॉर्ड के बॉडीगार्ड के लिए अलग नियम क्यों? प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, माई लॉर्ड के बॉडीगार्ड ने थानेदार से बदतमीजी की थी और बार-बार ट्रांसफर कराने की धमकी दे रहा था. आखिरकार, उसने यह कर ही दिखाया.
अब आप ही बताइए, माई लॉर्ड – एक तरफ पुलिस जवान रात-दिन चेकिंग अभियान चलाते हैं, और दूसरी तरफ जब किसी वीवीआईपी, उनके परिजनों या अंगरक्षकों को रोका जाता है,
तो आरोप लगाकर कार्रवाई कर दी जाती है.
ऐसे में निष्पक्ष कानून व्यवस्था बनाए रखना पुलिस के लिए लगातार कठिन होता जाएगा.
अंत में, जज साहब, माई लॉर्ड, इतना ही निवेदन है –
कानून को पहचान से बड़ा रहने दीजिए.
(यह लेखक के निजी विचार हैं.)
