Gumla : आदिवासी संस्कृति, नृत्य और परंपरा ही उसकी सबसे बड़ी पहचान होती है। यही भाव झारखंड के गुमला ज़िले के कोटाम गाँव में आयोजित ‘आदिवासी संस्कृति जतरा’ के दौरान देखने को मिला। इस भव्य आयोजन में झारखंड सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्री चमरा लिंडा ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया और हजारों की भीड़ को संबोधित किया।
मंत्री लिंडा ने कहा हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हमारी असली ताकत है। नृत्य, संगीत और परंपराएं आदिवासी जीवन की आत्मा है।
उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे अपनी जड़ों से जुड़ें और अपने रीति रिवाज़, भाषा और परंपरा को संजोएं। जतरा में बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने पारंपरिक परिधानों में हिस्सा लिया। कार्यक्रम में मांदर, ढोल, नगाड़ा और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज ने माहौल को जीवंत कर दिया। साथ ही, स्थानीय हस्तशिल्प, व्यंजन और कला का भी सुंदर प्रदर्शन किया गया, जिससे आदिवासी जीवनशैली की विविधता सामने आई।
चमरा लिंडा ने आगे कहा “भारत के संविधान से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में जब आदिवासी पहचान की बात होती है, तो हमारा सामूहिक नृत्य और संगीत ही हमें अलग बनाता है। मांदर, ढोल, नगाड़ा और नृत्य के माध्यम से जो शारीरिक व्यायाम होता है, वह किसी योग से कम नहीं है।
उन्होंने जतरा को आदिवासी समुदाय की एकता, जागरूकता और आत्मसम्मान का प्रतीक बताते हुए कहा कि ऐसे आयोजन नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं।
कोटाम का यह जतरा अब सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका है, जो आदिवासियों की अस्मिता और अधिकारों की बुलंद आवाज़ है।