L19/Ranchi : रांची महा धर्मप्रांत के बिशप तेलेस्फोर पी टोप्पो का धर्म विधि संस्कार रांची के संत मारिया गिरिजाघर में 11 अक्तूबर को होगा। बुधवार को मांडर स्थित लिवंस हॉस्पिटल में निधन हो गया था। 84 वर्षीय कार्डिनल के निधन के बाद हजारीबाग के बिशप आंनद जोजो की अगुवाई में गुरुवार को मांडर हॉस्पिटल में धर्म विधि का आयोजन किया गया और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना किया गया। शांति सभा में मांडर विधायक नेहा शिल्पी तिर्की, पल्ली पुरोहित निलम तिड़ु, प्रशन तिर्की समेत धर्म बहने शामिल हुए। कार्डिनल का शव मांडर स्थित लिवंस हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो को 9 अक्टूबर तक मोर्चरी में रखा जाएगा।
यह जानकारी बिशप हाउस ने दी है। 10 अक्टूबर को कार्डिनल के अंतिम दर्शन के लिए रांची के संतमरिया महागिरजा चर्च में लाया जाएगा. 11 अक्टूबर को रांची के लोयला मैदान में कार्डिलन का धर्म विधि संस्कार किया जाएगा. इस दौरान लगभग तीन बजे तक लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकेंगे। राज्यभर के लगभग 10 बिशप और 400 से अधिक पल्ली पुरोहित व फादर की अगुवाई में संत मरिया महागिरजा घर में दफनाया जाएगा।
कार्डिनल के दफन विधि में रोम के राजदूत के भी आने की संभावना है। क्योंकि ये एशिया के एकमात्र आदिवासी बिशप थे। इनके अंतिम दर्शन के लिए मुंबई, दिल्ली, बेंग्लुरू के कार्डिनल समेत देश विदेश के कलिसिया व धर्म बहनों के शामिल होने की खबर है। 21 अक्टूबर 2003 को संत पिता के धर्माध्यक्ष तेलेस्फोर पी. टोप्पो को कॉलेज ऑफ कार्डिनल में शामिल किया गया। कैथोलिक कलिसिया के ऐसे सम्मानीय पद से नवाजे जाने वाले वे प्रथम एवं पूरी एशिया के पहले आदिवासी बिशप थे। जनवरी 2004 में दो साल के लिए कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीसीबीआई) के अध्यक्ष चुने गए। कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो का जन्म 15 अक्टूबर 1939 में गुमला के चैनपुर के सुदूरवर्ती झाड़गांव गुमला में हुआ था। उनके पिता एंब्रोस टोप्पो व माता सोफिया खलखो थी।
उनके 10 भाई-बहन थे। बेल्जियम के पुरोहित के जीवन से प्रेरित होकर उन्होंने संत अल्बर्ट सेमिनरी में दाखिला लिया। संत जेवियर कॉलेज रांची से अंग्रेजी में स्नातक की डिग्री हासिल की। रांची यूनिवर्सिटी से इतिहास में एमए की पढ़ाई पूरी की। दर्शनशास्त्र की पढ़ाई संत अल्बर्ट कॉलेज रांची में जारी रखा, दर्शनशास्त्र की पढ़ाई करने के लिए उन्हें पोनटिफिकल अर्बन यूनिवर्सिटी रोम भेजा गया। 8 मई 1969 को बिशप फ्रांसिसकुस के द्वारा स्वीट्जरलैंड के बसेल में एक पुरोहित अभिषेक किये गए। वे एक युवा पुऱोहित के रूप में भारत वापस लौटे और संत जोसेफ स्कूल तोरपा में पढ़ाने के लिए नियुक्त हुये।
इसके साथ ही विद्यालय के कार्यवाहक प्राचार्य बने। 1976 में लीवनंस बुलाहट केंद्र तोरपा की स्थापना की और वे पहले अन्वेषक एवं निर्देशक बने। इसके बाद महाधर्माध्यक्ष पीयुष केरकेट्टा एसजे आर्चबिशप हाउस रांची के सेक्रेटरी बनाये गये। 8 जून 1978 को कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो को दुमका के बिशप के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने प्रभु का मार्ग तैयार करो को आदर्श वाक्य चुना।