L19 DESK : झारखण्ड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष जॉन पीटर बागे ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि मनरेगा कर्मियों के प्रति सरकार का रुक सही नहीं है। विगत 1 मई से तीन दिनों की पदयात्रा के बाद सरकार ने मनरेगा कर्मियों के हित में कोई कदम उठाने के बजाय पत्र जारी कर तीन दिनों का मानदेय कटौती करने का आदेश जारी किया है, जिससे सरकार का असली चेहरा और नियत बिल्कुल साफ हो गया है।
उल्लेखनीय है कि विगत 18 अप्रैल को संघ की ओर से पदयात्रा की सूचना सरकार को दी गई थी तथा अनुरोध किया गया था कि सरकार की ओर से वार्ता का पहल कर मनरेगा कर्मियों के समस्याओं का समाधान किया जाए। लेकिन, सरकार की ओर से किसी तरह का कोई पहल नहीं किया गया यदि पहल किया जाता तो पदयात्रा को स्थगित किया जा सकता था। पदयात्रा के उपरांत सरकार ने अपना निर्दयी रुक दिखाया है तथा पदयात्रा में शामिल मनरेगा कर्मियों का मानदेय कटौती करने का आदेश जारी किया है।
सरकार का कहना है कि जीवन बीमा तथा स्वास्थ्य बीमा इत्यादि मांग सरकार स्तर पर विचाराधीन है तथा मनरेगा कर्मियों का आंदोलन किसी भी तरह से सही नहीं है। ज्ञात हो कि सरकार का गठन होने के बाद संविदा कर्मियों को स्थाई करने हेतु विकास आयुक्त की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया गया था तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कमेटी का रिपोर्ट सार्वजनिक तौर पर साझा नहीं किया गया। इतने अल्प मानदेय में परिवार का भरण पोषण करना संभव नहीं है।
सरकार की ओर से किसी भी तरह का सर्विस बेनिफिट नहीं दिए जाने के कारण दुर्घटना में मृत्यु होने अथवा अपंग होने पर किसी तरह का कोई लाभ नहीं मिलता है, बल्कि परिवार के सदस्य भुखमरी के कगार पर आ जाते हैं। महिला कर्मियों को मातृत्व अवकाश नहीं देना l सेवा शर्त नियमावली के अभाव में छोटी-छोटी गलतियों पर भी बर्खास्त कर दिया जाता है।
फिलहाल मनरेगा कर्मियों को प्राप्त अपीलीय प्रावधान को भी मजाक बना दिया गया है। प्रमंडलीय आयुक्त द्वारा निर्दोष करार दिए जाने के बावजूद उनके आदेश का उल्लंघन कर जिला उपायुक्त मनरेगा कर्मियों का योगदान नहीं करा रहे हैं। मनरेगा कर्मियों का भयंकर आर्थिक, सामाजिक व मानसिक शोषण किया जा रहा है। उसके बावजूद पद यात्रा करने पर बर्बरता पूर्ण तरीके से सरकार द्वारा तुगलकी फरमान जारी करना मनरेगा कर्मियों को अनिश्चितकालीन हड़ताल की ओर धकेल रहा है।
सरकार को आगे आकर समस्याओं के समाधान पर विचार करना चाहिए था लेकिन सरकार ऐसा नहीं चाहती है। नए नए हथकंडा अपनाया जाना निश्चित रूप से विभागीय अधिकारियों के दिवालियापन का घातक है l
- अखिर चार वर्षों से उच्च स्तरीय कमिटी मनरेगा कर्मियों के भविष्य सुरक्षित करने के लिए क्यों फैसला नहीं ले सकीं??
- जब सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में न्यायादेश पारित कर 10 वर्षों से अधिक समय तक संविदा की नौकरी को स्थाई करने का निर्देश दिया गया तो अभी तक मनरेगा कर्मियों को स्थाई क्यों नहीं किया गया??
- मनरेगा नियुक्ति नियमावली 2007 में मनरेगा कर्मियों को एक वर्ष के लिए रखा जाना था तो 16 वर्षों तक लगातार कार्य कराने के बाद उन्हें उसी नियमावली के कंडीका 11(च)का हवाला देकर स्थाईकरण को टालना कहाँ तक जायज है ?
- 400 रुपया प्रतिदिन का मजदूरी मनरेगा कर्मियों को देना। इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार का लाभ नहीं देना, ये शोषण नहीं है तो क्या है l
सरकार बनने के बाद सैकड़ों बार माननीय मुख्यमंत्री से वार्ता के लिए अनुरोध किया गया लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय से एक बार भी वार्ता के लिए समय नहीं दिया गया। सरकार हमारी आंदोलन का भ्रूण हत्या करना चाहती है, उसने हमारे आंदोलन को दबाने के लिए दमनकारी नीति अपनाया है।
लेकिन मनरेगा कर्मी डरेंगे नहीं बल्कि डटेंगे और डटकर सरकार के हर जुल्म-सितम का सामना करेंगे। पूरे राज्य के मनरेगा कर्मियों में भयंकर आक्रोश है जिसका सामना सरकार नहीं कर पाएगी। समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो निश्चित रूप से मनरेगा कर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे।
प्रदेश अध्यक्ष ने प्रेस वार्ता के माध्यम से पुनः सरकार से अपील किया है की समस्याओं के समाधान के लिए यदि सरकार पहल करती है तो आंदोलन को स्थगित किया जा सकता है अन्यथा इस आंदोलन की जवाबदेही सरकार की ही होगी।