L19 DESK : झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी आज यानि 15 जुलाई को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिये शपथ लिया और भाजपा कार्लेयालय में पूजा की।
राजनीती जीवन का सफ़र
आपको बता दें यह पहली बार नहीं है जब बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष का पद भार सौंपा गया है। इससे पहले भी जब वे साल 1994 में भाजपा में मंत्री पद पर थे, तब भी उन्हें वनांचल भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया गया था। मगर क्या आपको पता है, बाबूलाल मरांडी ने भाजपा से इस्तीफा देकर अपनी खुद की पार्टी – झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का गठन किया था। मगर वह फिर से भाजपा में शामिल हो गये।
आज हम उनके कुछ अनछुए पहलुओं पर बात करेंगे। बाबूलाल मरांडी का जन्म 11 जनवरी 1958 को गिरिडीह जिले के कोदाईबांक नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम छोटे लाल मराण्डी तथा माता का नाम श्रीमती मीना मुर्मू है। बाबूलाल मरांडी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गांव से प्राप्त करने के बाद गिरिडीह कॉलेज में दाखिला लिया। यहां से इन्होंने इंटरमीडिएट और ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। अपनी आगे की पढ़ाई के लिये उन्होंने रांची विवि में भूगोल से पोस्ट ग्रेजुएशन के लिये दाखिला लिया।
अपने पीजी की पढ़ाई के दौरान ही बाबूलाल मरांडी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गये। और उन्हें झारखंड क्षेत्र के विश्व हिंदू परिषद (VHP) का संगठन सचिव बनाया गया। इसके बाद साल 1983 में वह दुमका से सन्थाल परगना डिवीजन में काम करने लगे। इस दौरान साल 1989 में इनकी शादी शान्ति देवी से हुई। अपनी शादी के दो सालों के बाद यानी साल 1991 में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा के टिकट पर दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, मगर उन्हें जीत हासिल नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने एक बार फिर से साल 1996 में चुनाव लड़ा, मगर वह इस बार शिबू सोरेन से 5000 वोटों से हार गये।
फिर आता है साल 1998 जब भाजपा ने उन्हें विधानसभा चुनाव के दौरान झारखण्ड भाजपा का अध्यक्ष बनाया। पार्टी ने उनके नेतृत्व में झारखण्ड क्षेत्र की 14 लोकसभा सीटों में से 12 पर कब्जा किया। इस जीत ने एनडीए की सरकार में बिहार के 4 सांसदों को कैबिनेट में जगह दी। इनमें से एक बाबूलाल मरांडी थे। इसके बाद आता है वह दौर जब लंबे संघर्षों के बाद आखिरकार 15 नवंबर, 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य का गठन हुआ। और इसी के साथ बाबूलाल मरांडी एनडीए के नेतृत्व में राज्य के पहले मुख्यमंत्री चुने गये।
अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कई अहम कदम उठाये। जैसे – छात्राओं के लिए साइकिल की व्यवस्था, ग्राम शिक्षा समिति बनाकर स्थानीय विद्यालयों में पारा शिक्षकों की बहाली, आदिवासी छात्र छात्राओं के लिए प्लेन पायलट की प्रशिक्षण, सभी गाँवों, पंचायतों और प्रखण्डों में आवश्यकतानुसार विद्यालयों का निर्माण, राज्य में सड़कें, बिजली और पानी की उचित व्यवस्था के लिए अन्य योजनाओं की शुरुआत की। हालांकि उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया। पार्टी के अंदरूनी कलह के कारण उनका कार्यकाल 15 नवंबर, 2000 को शुरू होकर 17 मार्च, 2003 को खत्म हो गया। इस तरह झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री सिर्फ दो साल और 123 दिन शासन चला पाए।
भाजपा ने 18 मार्च 2003 को सत्ता की चाभी अर्जुन मुंडा को सौंपी। शेष कार्यकाल मुंडा ने संभाला। इधर, साल 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कोडरमा सीट से चुनाव लड़कर जीत हासिल की। वहीं, साल 2005 में विधानसभा के चुनाव में भाजपा सत्ता से बाहर हो गई। इसके बाद बाबूलाल मरांडी ने साल 2006 में कोडरमा सीट सहित भाजपा की सदस्यता से भी इस्तीफा देकर ‘झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक)’ नाम से नई राजनीतिक दल की स्थापना की। उनके साथ भाजपा के कई विधायक और नेता भी चले गये। कुछ लंबे समय तक साथ चले और कई लौट गये। विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़े। 2009 में विधानसभा की अधिकतम सीटें जीतीं।
इसी बीच बाबूलाल मरांडी को एक बड़ा झटका लगा जब उन्होंने अपने बेटे को खो दिया। बात 26 अक्टूबर, 2007 की रात की है, जब भाकपा माओवादियों ने गिरिडीह के चिलखारी फुटबाल मैदान में 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसमें झारखंड के बाबूलाल मरांडी का पुत्र अनुप मरांडी भी शामिल था। चिलखारी में फुटबॉल टूर्नामेंट के फाइनल के दिन आदिवासी यात्रा कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में बाबूलाल मरांडी के छोटे भाई नुनूलाल मरांडी थे. यात्रा कार्यक्रम के दौरान सोरेन ओपेरा के कलाकारों का कार्यक्रम जारी था। इस दौरान माओवादियों का एक दस्ता कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर मंच को कब्जे में ले लिया।
कोई कुछ समझ पाता इससे पहले पुलिसिया वर्दी में माओवादियों ने मंच पर चढ़कर नुनूलाल मरांडी को सामने आने की चेतावनी दी और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. अगली पंक्ति में बैठे अनूप मरांडी, सुरेश हांसदा, अजय सिन्हा, आयोजक मनोज किस्कू सहित 20 लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि, बाबूलाल मरांडी ने इस घटना के बाद अपनी राजनैतिक कामकाज को बरकरार रखा। और झारखंड विकास मोर्चा से 2006, 2009 और 2014 में सांसद बने। 2020 तक वह अपने दल को लेकर सूबे में चुनावी राजनीति करते रहे। मगर साल 2020 में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में रांची की बड़ी सभा में बाबूलाल मरांडी ने झाविमो का भाजपा में विलय कर दिया।
इसी के साथ भाजपा ने उन्हें झारखंड विधानसभा में विधायक दल का नेता चुना। बाबूलाल मरांडी का एक दिलचस्प किस्सा रहा है। बाबूलाल मरांडी जब शिक्षक थे तब एक बार उन्हें शिक्षा विभाग में काम पड़ गया। जब वह काम कराने विभाग के कार्यालय में गए तो वहां के बड़े बाबू ने काम के एवज में उनसे रिश्वत देने की मांग की। इस बात को लेकर दोनों में काफी कहासुनी हुई और इसके बाद गुस्साए बाबूलाल ने शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।