

L19/Giridih : सपरिवार सखुआ बीज चुन कर अपनी जीविका चला रहे हैं, युवक ने अपनी आप बीती सुनाया। ग्रामीण परिवेश में प्रकृति ही जीवन का मूल आधार है, प्रकृति हमे सभी दृष्टिकोण से भरण पोषण और संरक्षण प्रदान करती है। जीवन में जब संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं तब ग्राम्य जीवन शैली से जीवन को जीने की प्रेरणा मिलती है जिसमें हम बाकी दुनिया की तरह भौतिक सुख तो हासिल नही कर सकते हैं लेकिन किसी तरह जिन्दा रहने का अवसर तलाश लेते हैं! यह आपबीती पीरटांड़ प्रखण्ड के अर्जुन हेम्ब्रम की है।
अर्जुन हेम्ब्रम ने कहा कि मेरा भी सपना था बाकी दुनिया के साथ सभ्य तरीके से जीवन जीने का, जिसके लिए मैं भारत के सर्वाधिक नक्सलवाद से ग्रसित गिरिडीह जिले के पीरटांड़ प्रखण्ड से कुछ नया करने का सपना लिए तमाम कठिनाइयों को झेलते हुए MA B.ed करके एक शिक्षक के रूप में समाज को बदलने का जज्बा से भरा था। मेरी पढ़ाई से आसपास के लोगो में भी प्रेरणा जगी और लगातार मुझसे कई छात्र और उनके अभिभावक सलाह लेकर अपने बच्चों को भी इस तरह बनाने के लिए दिलों जान से मेहनत कर रहे हैं। उम्मीद अवसर मे बदलता हुआ तब दिखा जब टीजीटी 2016 परीक्षा परिणाम घोषित हुआ और मेरा टीचर भर्ती के लिए 2019 में काउंसलिंग हुआ।
मेरे रिजल्ट से खुश होकर मेरी दोनों बेटियों के खुशी सातवे आसमान पर था बेटियों ने भी ठान लिया कि हम भी बुलंदियों को छुएंगे और एक एक कर दोनो बेटी ने lockdown के समय कड़ी मेहनत कर नवोदय विद्यालय परीक्षा बिना किसी कोचिंग के पास कर अध्ययन कर रही हैं इस दौरान मेरी एक बेटी नवोदय विद्यालय में ही कोरोना पॉजिटिव पाई गई सबकुछ जानते हुए भी मैंने बेटी का हौसला बढ़ाया और ठीक हो गई कि, हमे बहुत आगे जाना है। मेरी पत्नी इसलिए पढ़ाई छोड़ी कि परिवार को आगे बढ़ाने के लिए एक सदस्य को त्याग करना होगा । सहिया की नौकरी परिवार के लिए त्याग दी। एजुकेशन में आगे जाना कुछ विकृत मानसिकता वालों को अच्छा नहीं लगा इसलिए मेरे परिवार को आगे जाने से रोकने के लिए सभी हथकंडे अपनाए गए फिर भी हमने पूरे हौसला के साथ संघर्ष किया।
हमारी नौकरी में पानी फेरने की शुरुवात नियोजन नीति के भेंट चढ़ गया जब पहली बार सोनी कुमारी ने झारखण्ड उच्च न्यायालय में याचिका दायर की उसके बाद लगातार मुकदमा चला जिसमें हम जैसे अनेक साथी को काफी नुकसान हुआ हजारों रूपये केश लड़ने मे बरबाद हो गया , 7 साल अदालती लड़ाई के बाद दिसम्बर 2022 में अन्तिम फैसला आया जिसमें अदालत ने राज्यस्तरीय मेधा सूची जारी करने का आदेश झारखण्ड सरकार को दिए तब जाकर 3469 माध्यमिक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया शुरू हुआ । जब नियुक्ति विज्ञापन जारी हुआ था उसमें 13 जिला अधिसूचित किया गया था जबकि 11 जिला गैर अधिसूचित। मै भी गैर अधिसूचित जिला गिरिडीह से ही आवेदन किया था लेकिन दुःख इस बात से है कि मेरा अन्तिम रूप से चयन नही हुआ।
सवाल यह उठता है कि, अपने राज्य में अनेक बाहरी राज्य के अभ्यर्थी नौकरी पा रहे हैं और इस राज्य के मेरे जैसे अनेक आदिवासी मूलवासी अभ्यर्थी को नौकरी नही मिल पाना घोर निराशा पैदा करता है। आखिर हमारी क्या गलती है हमने ग्रेजुएशन किया, बी एड किया, पी जी किया, टी ई टी 2016 पास किया, टीजीटी 2016 पीटी मेन निकाला काउंसिलिंग हुई फिर राजस्तरीय मेरिट में भी स्थान नही मिला जबकि बाहरियों को नियुक्ति मिलना क्या संकेत है? मुझसे से भी उच्च अंक वाले एसटी छात्रों का भी चयन नही हुआ। मुझे जवाब चाहिए राज्य सरकार?
क्या उच्च शिक्षा सिर्फ डिग्री का दुकान है आदिवासी मूलवासी के लिए?
क्या मुख्य धारा की बात पूंजीपति बाहरी लोगों को खुश करने के लिए सरकारें करती हैं?
जिस मुकाम के लिए अपना कीमती समय जाया किया वो सरकार और उसकी एजेंसी हमें वापस कर सकती है?
झारखण्ड के तमाम नियुक्ति आयोग को “बाहरी नियुक्ति आयोग झारखण्ड” कहना चाहिए?
क्या झारखंडी छात्रों को पढ़ाई छोड़कर अब आंदोलन, केश लड़ने में ही कुर्बान हो जाना चाहिए?
राज्य सरकार राज्य को बाहरियों से भर कर उनकी सुख सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ही घोषणा पत्र जारी करे, स्थानियों को समझाने के लिए तो पारा मिलिट्री है ही, अगली बार नेतागण सोच समझकर चुनाव प्रचार में आयें। पानी सिर से ऊपर चला गया है! झारखंडी छात्रों को तो सरकार सूअर, मुर्गी, बकरी, और पकोड़ा, हंडिया योजना से लाभान्वित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है नौकरी तो दूसरे राज्य के मेधावी होनहार विद्यार्थी के लिए है।
बिहार सरकार अपने राज्य में एक लाख से भी ज्यादा शिक्षक भर्ती करने वाली है क्या झारखण्ड सरकार बिहार में झारखण्ड के स्टूडेंट को कुछ सीटें दिला सकती हैं? अन्त में यही सवाल है कि, सरकार हम जैसे अभ्यर्थी के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए क्या करने वाली है? सरकार को इसपर विचार करना ही होगा अन्यथा हम क्या करें इसका जवाब चाहिए।
क्या हम सुवर पालें, मुर्गी पालन करें, दारू बेचें, या फिर इस सड़ा गला सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए काम करें..
सरकार जवाब दो, बहरियों को दामाद बनाना बंद करो।
