L19/Ranchi : जिले के नामकुम में चल रहे आदिवासी अधिकार मंच के चतुर्थ राज्य सम्मेलन के दुसरे दिन विभिन्न जिलों से आए आदिवासी प्रतिनिधियों ने अपने अनुभवों को साझा किया। जिसमें यह बात स्पष्ट रूप से उभर कर आई कि जमीन का मुद्दा हो या विस्थापन तथा पलायन मनरेगा की समस्या हो या फिर वन अधिकार के तहत आदिवासियों और अन्य गरीबों को जमीन का पट्टा आवंटित किए जाने में आ रही बाधाएं और जमीन के रिकार्ड का डिजिटली करण के बाद बड़े पैमाने पर रिकार्ड में हुई गड़बड़ी इन सभी समस्याओं से राज्य की आदिवासी जनता जूझ रही है।
ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासनिक भ्रस्टाचार से भरा पड़ा है
चर्चा में यह भी उजागर हुआ कि उपर से नीचे तक प्रशासनिक भ्रस्टाचार का सबसे ज्यादा खामियाजा आदिवासियों को ही उठाना पड़ रहा है। रांची समेत राज्य के अधिकांश जिलों में बड़े पैमाने पर हर जगह जमीन के दलाल अंचल कार्यालय और स्थानीय पुलिस थाना को मैनेज कर काश्तकारी कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए आदिवासियों और गरीब रैयतों की जमीन की लूट का संगठित धंधा चला रहे हैं।
लूट के खिलाफ आंदोलन संगठित करना होगा
सम्मेलन मे यह सहमति बनी की जमीन की इस लूट के खिलाफ जूझारु आंदोलन संगठित करना होगा। तभी हम अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। सम्मेलन में आदिवासी भाषा, संस्कृति और साहित्य की स्थिति पर भी विचार – विमर्श किया गया और झारखंड में उपयोग में आने वाली आदिवासी भाषाओं के संरक्षण प्राथमिक कक्षाओं से उस भाषा की पढ़ाई, संताली भाषा की लिपि अलचिकी का प्रचार-प्रसार तथा सरकारी काम-काज मे संताली भाषा का उपयोग, आदिवासी भाषा-भाषी बहुल क्षेत्रों में उस भाषा के जानकार सरकारी कर्मचारियों को नियुक्ति में प्राथमिकता दिए जाने से संबधित प्रस्ताव पारित किया गया।
आदिवासी अधिकार मंच के अंतर्गत आदिम जनजाति के लिए एक उप समिति का गठन किया गया
सम्मेलन द्वारा 21 सदस्यीय राज्य समिति और 7 सदस्यीय पदाधिकारियों का चुनाव किया गया जिसमें प्रफुल्ल लिंडा, अध्यक्ष, सुभाष हेम्ब्रम, संयोजक और सुखनाथ लोहरा कोषाध्यक्ष चुने गये। सम्मेलन ने आदिवासी अधिकार मंच के अंतर्गत आदिम जनजाति के लिए एक उप समिति का गठन किया गया जिसके संयोजक देवी सिंह पहाड़िया चुने गए। सम्मेलन मे राज्य के सभी प्रमंडलों में आदिवासियों के पांच महत्वपूर्ण मुद्दे जंगल, जमीन, जल, शिक्षा और रोजगार पर कंवेंशन आयोजित कर एक मांग पत्र तैयार किया जाएगा और इस मांग पत्र के आधार पर आंदोलन शुरू किया जाएगा।
सम्मेलन का समापन बृंदा कारात के संबोधन से हुआ जिसमें उन्होंने आदिवासियों को आपस में बांटने वाली विभाजनकारी ताकतों जिसमें आरएसएस प्रमुख है से सावधान रहने और अपनी एकता को और मज़बूत किए जाने पर बल दिया