L19 DESK : झारखंड में अब मात्र 2 सप्ताह के भीतर भाजपा नेता प्रतिपक्ष की घोषणा कर देगी। भाजपा अपने विधायक दल के नेता का चयन न करके नियुक्तियों में अड़चन पैदा कर रही है। अगर भाजपा ने ऐसा नहीं किया, तो पार्टी पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। मतलब भाजपा को अब जल्द से जल्द अपने विधायक दल के नेता का चयन करना होगा, वरना पार्टी बड़ी मुसीबत में फंस सकती है।
दरअसल, झारखंड राज्य सूचना आयोग में रिक्त पदों को जल्द भरने के लिये एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी थी। शैलेश पोद्दार नामक झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता द्वारा दायर इस याचिका पर आज 7 जनवरी को सुनवाई हुई। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के मुख्य सचिव को तलब किया, साथ ही उन्हें अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, मतलब लिखित रूप में विवरण दें कि मामले में क्या कदम उठाये गये, कितना काम हुआ, इत्यादि। इससे पहले सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार के पूरक हलफनामे की जांच परख की और कहा कि जून 2024 को एक विज्ञापन जारी किया गया था। लेकिन क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद विपक्ष के नेता की घोषणा नहीं हुई, इसलिये चयन की प्रक्रिया शुरु नहीं हो पायी। दरअसल, नेता प्रतिपक्ष चयन समिति का सदस्य होता है, इसलिये बैठक भी नहीं बुलाई जा सकी, और चयन प्रक्रिया में रूकावट पैदा हो गयी। इन रूकावटों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि झारखंड विधानसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी जल्द से जल्द नेता प्रतिपक्ष के नाम की घोषणा करे, ताकि मुख्य सूचना आयुक्त यानि CIC और सूचना आयुक्त की नियुक्ति हो सके। इसके लिये सर्वोच्च न्यायालय ने 2 सप्ताह का समय दिया है। कोर्ट का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष का चयन 2 सप्ताह के भीतर हो जाये, जिसके तुरंत बाद चयन समिति चयन प्रक्रिया शुरु करेगी।
दरअसल, झारखंड में राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त सहित कई पद खाली हैं। इनकी नियुक्ति इसलिये जरूरी है, ताकि आम जनता जब किसी विभाग से जानकारी हासिल करने के लिये अपने मौलिक अधिकार right to information यानि RTI का इस्तेमाल कर सकें। ये वही आयोग है, जिसके तहत हमें सूचना मिलती है, जब हम या हमारे जैसा कोई आम आदमी सरकारी विभागों से जानकारी हासिल करने के लिये RTI दायर करते हैं। ऐसे में अगर इनकी नियुक्ति नहीं होगी, तो हम अपने मौलिक अधिकार से वंचित रह जायेंगे। आपको बता दें कि इनकी नियुक्ति संविधान के RTI एक्ट 2005 के तहत चयन समिति द्वारा की जाती है, जिसमें मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री और नेता प्रतिपक्ष की अहम भूमिका होती है। मुख्यमंत्री चयन समिति के अध्यक्ष होते हैं, जबकि कैबिनेट मंत्री और नेता प्रतिपक्ष इस समिति के सदस्य होते हैं। नियम के अनुसार, चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष का सदस्य होना आवश्यक है, ताकि नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी और संतुलित हो। उनकी उपस्थिति और सहमति के बगैर मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का चयन नहीं किया जा सकता है। अगर नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हो, या उनकी नियुक्ति में देरी हो, तो चयन की प्रक्रिया में रूकावट पैदा होती है, जो कि फिलहाल हो रहा है। इसलिये सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आदेश दिया है कि राज्य की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी यानि की भाजपा 2 सप्ताह के भीतर ही अपने विधायक दल के नेता का नाम कोर्ट को सौंपे, ताकि नियुक्ति में देरी न हो।
मामले में पिछली सुनवाई के दौरान झारखंड सरकार के वकील ने दलील दी थी कि चयन समिति में अपेक्षित कोरम का अभाव था और इस तरह झारखंड में सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां नहीं की जा सकीं है. वहीं प्रार्थी की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि झारखंड में वर्ष 2020 से राज्य सूचना आयोग निष्क्रिय है. मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त सहित कई पद रिक्त है।