Article:आदिवासी के किस्मत में इस देश और राज्य के अन्दर सिर्फ और सिर्फ जिल्लत भरी मौत के अलावा कुछ भी नहीं लिखा है।
आदिवासी घट रहें हैं के नाम पर राजनीति करने वालों नेताओं की संख्या बढती गई। यहाँ तक की राजनीति करनें वाले नेताओं का कद, शोहरत और पद सब बढ़ गया लेकिन इसके बावजूद आदिवासी घट रहें हैं। आदिवासी घटने का कारण सिर्फ धर्मांतरण नहीं है बल्कि आदिवासियों को इस भ्रष्ट व्यवस्था नें अपने मोटे बूट- जूते से कुचला है।
आज आदिवासी बच्चे गन्दा पानी पीने की वजह से हैजा, डाइरिया जैसे बीमारी का शिकार हो रहें हैं, उलटी करते-करते तड़प कर मर जाते हैं और अगर कोई आदिवासी बच्चा इस बीमारी से बच गया तो वो मलेरिया जैसी बीमारी का शिकार होकर किसी सरकारी अस्पताल में तड़प तड़प कर दम तोड़ देते हैं।
जहाँ साहिबगंज के सदर अस्पताल में सोमबार को इलाज के अभाव मे एक 6 साल की मलेरिया से पीड़ित बच्ची ने अपने पिता के गोद में ही दम तोड़ दिया , बता दें इस बच्ची को बचाने के लिए पिता डॉक्टरों की तलाश में करीब एक घंटे तक अस्पताल के इमरजेंसी से लेकर ओपीडी तक भटकते रह गये। लेकीन उस बच्ची को इलाज के लिए एक डॉक्टर तक नसीब नहीं हो पाया,, बाद में पता चलता है की डॉक्टर पोस्टमार्टम कर रहे हैं,, जानकारी के लिए बता दें मंडरो के सिमरिया गाँव निवासी मथियस मालतो की 6 साल की बेटी गोमदी पहाड़ीन मलेरिया से पीड़ित थी ,पिता उसे बेहतर इलाज के लिए साहिबगंज सदर अस्पताल पहुंचे थे, जहाँ इलाज न होने के कारण उसकी बेटी की मौत हो गई। पिता का कहना है की अगर समय पर उनकी बेटी का इलाज शुरू हो जाता तो शायद उसकी जान बच सकती थी।
यह घटना तब की है जब सत्यानायरण भोक्ता, इरफ़ान अंसारी, राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ये तमाम लोग हेलिकोप्टर में बैठ कर छिलका रोटी कहा रहे थे।
माननीय मंत्री इरफ़ान अंसारी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म में कल ही एक वीडियो को पोस्ट किया है जिसमें उन्होंने कल्पना सोरेन को भाभी हो तो ऐसी…ज़मीन पर खिलाए धुस्का, हवा में खिलाए चिल्ला, और परिवार का हरदम ख्याल रखने वाली बात कहीं हैं। अब ये सवाल माननीय मंत्री इरफ़ान अंसारी से है की क्या कल्पना सोरेन जैसी भाभी इस बच्ची की भी होती तो बच्ची बच जाती?
एक तरफ जब आप सब हेलिकोप्टर में घूम –घूम कर अपना प्रचार-प्रसार कर रहे थे उसी वक्त एक आदिवासी बच्ची अस्पताल में इलाज के अभाव से तड़प –तड़प कर अपनी सांसे गिन रही थी। जिसकी उम्र महज अभी 6 साल ही थी।
सरकार एक तरफ बहन बेटी के लिए एक योजना लाती है हर महीने 1000 रूपये देने की बात करती है। जो 1000 हजार रुपुए इस बच्ची को 18 साल में मिलता लेकिन उसी हजार रूपये का इलाज भी नहीं हो पाया। इलाज हो जाता तो शायद इस बच्ची की जान बचाई जा सकती थी।
इस घटना पर घिन करें ? गुस्सा करें? या दुःख व्यक्त करे ? कोई शब्द ही नहीं है हमारे पास…