l19/DESK : पाकुड़ में आदिवासी छात्रों के साथ हुए मारपीट ने ये फिर से एकबार सवाल खड़े करने पर मजबूर कर दिया है। आदिवासी हॉस्टल में पुलिस द्वारा मारपीट कांड अब धीरे धीरे राजनीति में तब्दील होने लगा है। भाजपा इस मुद्दे को पूरी तरह चुनाव मोड में भुनाने में लग गई है,यही कारण है असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा से लेकर अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य आशा लकड़ा और भाजपा के तमाम बड़े नेताओं द्वारा पाकुड़ का दौरा किया जा चुका है। वहीं दूसरी ओर सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा इस मामले पर उदासीन होना कहीं ना कहीं राज्य की आम जनता के लिए कई सवाल खड़े कर रहे हैं, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल रहा है।
एक ओर भाजपा इस मुद्दे को एक बड़े राजनीतिक प्रयोग के रूप में देख रही है।यही कारण है कि झारखंड भाजपा प्रभारी सह असम के मुख्यमंत्री हेमंता विश्व सरमा पाकुड़ दौरे पर हैं, जहां मीडिया से बात करते हुए हेमंत सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा.. “एक आदिवासी राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री के रहते आदिवासियों को पीटा जा रहा है।“ भले यह कथन तंज से भरा हो लेकिन इसके पीछे कहीं ना कहीं राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री बनने को टारगेट किया जा रहा है,क्यूंकि राज्य में रघुवर दास को छोड़कर सभी के सभी आदिवासी चेहरे ही मुख्यमंत्री बने हैं। ऐसे में भाजपा दबे जुबान ही सही लेकिन गैर आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में हमेशा से ही आवाज उठाती रही है।
भाजपा का यह सवाल बेशक सही है, लेकिन भाजपा भी कोई दूध की धुली नहीं है क्योंकि भाजपा की नीति और नीयत दोनों को आदिवासियों ने छत्तीसगढ़ हसदेव जंगल के रूप में देख लिया है। माना कि हेमंत सोरेन सरकार आदिवासियों की रक्षा करने में असफल हो रही है, लेकिन आम जनता और खासकर आदिवासी समाज भाजपा से भी सवाल करना चाहती है..
क्या सिर्फ भाजपा ही आदिवासियों का असली हितैषी है? क्या भाजपा ही राज्य में अवैध जमीन की लूट से आदिवासियों को बचा सकती है?क्या भाजपा ही संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों से मुक्ति दिला सकती है?
ऐसे तमाम सवाल आदिवासी समाज इसलिए उठा रहे हैं क्यूंकि लोकसभा चुनाव 2024 में झारखंड की सभी पांच आदिवासी रिजर्व सीट हारने के बाद बीजेपी का आदिवासी प्रेम कुछ ज्यादा ही दिख रहा है। सुबह से लेकर शाम तक….. सदन से लेकर सड़क तक…. कोई ना कोई भाजपा नेता आदिवासी आदिवासी का राग अलापते दिख जाएगा। लेकिन कहीं भाजपा का यह आदिवासी प्रेम ढोंग तो नहीं….क्यूंकि यह वही भाजपा है जिसके कार्यकाल में मध्यप्रदेश में भाजपा के नेता द्वारा आदिवासी युवक के चेहरे पर पेशाब किया गया था, यह वही भाजपा है जिसकी सरकार में मणिपुर में आदिवासियों पर अत्याचार किया जा रहा है, बहन बेटिओ को नंगा रोड पर घुमाया जा रहा है,यह वही भाजपा है जहां असम जैसे राज्य में आज भी आदिवासियों को आदिवासी का दर्जा नही दिया गया है। ऐसे में सवाल तो भाजपा से बनता हैं और बन भी रहा हैं, क्योंकि आज की तारीख में आदिवासी राज्य ही नहीं.. केंद्र के लिए भी राजनीति के प्रमुख केंद्र बिंदु बन गए हैं।
वर्तमान में झारखंड की राजनीति आदिवासियों पर ही केंद्रित है। जहां राज्य और देश में आदिवासियों पर राजनीति सभी करते हैं लेकिन जब उनकी वास्तविक विकास की बात होती है तो आज भी आदिवासी समाज विकास के सबसे अंतिम पायदान पर पाए जाते हैं। कई राज्यों में आदिवासियों को केंद्र में रखकर सरकारें बनती हैं लेकिन जब आदिवासियों के मुद्दों की बात हो तो आज भी ये मुद्दे धरे के धरे रह जाते हैं।
ऐसे में भाजपा का आदिवासी प्रेम सिर्फ और सिर्फ राजनीति से प्रेरित लगता है क्यूंकि झारखंड अलग हुए 24 साल से भी अधिक होने जा रहा है। इन 24 सालों में 15 साल से अधिक समय भाजपा ने राज्य में शासन किया, तो आखिर इतने सालों से भाजपा आदिवासियों का उत्थान क्यों नहीं कर पाई? क्या संथाल में बांग्लादेशी घुसपैठ सिर्फ आज का मुद्दा है? क्या इसमें भाजपा का दोष नहीं है? क्या राजधानी रांची में जो गैर आदिवासियों द्वारा धड़ल्ले से आदिवासी जमीन की खरीद बिक्री की जा रही है, इसमें क्या सिर्फ वर्तमान सरकार दोषी है? ऐसे तमाम सवालों का उठना लाजिमी है और इसका जवाब भाजपा को देना चाहिए तब जाकर भाजपा का असली आदिवासी प्यार दिख पाएगा।