Article:60-40 नाइ चलतो,नाइ चलतो.. कुछ याद आया, यह वही नारा है जो बीते 1 साल से झारखण्ड का क्रन्तिकारी शब्द बन गया है। साल 2023 में यह शब्द हर झारखंडी युवा के जुबान पर हुआ करता था। इस शब्द को लेकर राज्य के युवाओं ने 60-40 नाइ चलतो का आन्दोलन भी शुरू किया था 60-40 का मतलब है कि यहाँ कि नौकरियों में 60 फीसदी सीट झारखण्ड के लोगों के लिए आरक्षित होगी बाकी 40 फीसदी सीटों के लिए भारत के किसी भी हिस्से का कोई भी व्यक्ति आवेदन कर सकता है। इसमें झारखण्ड के अभ्यर्थी भी शामिल हो सकते हैं। हालांकि विद्यार्थियों ने इस नीति का पुरजोर विरोध किया था,लेकिन झारखण्ड सरकार को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ा, जिसका नतीजा अब शामने आ रहा है।
राज्य के सबसे बड़े सरकारी नौकरी देने वाली संस्थान JPSC द्वारा हाल ही में आयोजित नगर विकास एवम आवास विभाग के अंतर्गत सहायक नगर निवेशक के पद पर सीधी नियुक्ति परीक्षा में 28 अभ्यर्थियों में से 17 पदों पर गैर झरखण्डियों की नियक्ति हुई है। अगर प्रतिशत के रूप में देखे तो 60% गैर झारखंडी जबकि 40% झारखंडी अभ्यर्थी हैं मतलब सरकार 60-40 खुद की नीति पर भी स्थिर नहीं रह पाई,नियुक्ति बाटने के बाद 60-40, 40-60 में बदल गया और उस 40% में भी कई अभ्यर्थी गैर झारखंडी हैं। ऐसे में झारखंड जैसे घोर पिछड़े राज्य के आदिवासियों और मूलवासियों के लिए दुर्भाग्य की बात है कि उन्हें 40% हिस्से में भी अपना हिस्सा बांटना पड़ रहा हैं वहीं 60% हिस्सा गैर झारखंडियों के लिए दे दिया गया है।
ऐसे में राज्य में एक बार फिर से नौकरियों में बाहरी भितरी का मुद्दा गरमा गया है। बताते चले बीते 2, 3 सालों से राज्य में स्थानीय नियोजन नीति को लेकर सड़क से लेकर सदन तक काफी हो-हल्ला होता रहा है, जिसके तहत राज्य के युवाओं को नौकरियों में अधिक से अधिक अवसर मिल सके इस पर वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार द्वारा भी बड़ी बड़ी बातें कही गई थी। लेकिन JPSC के इस रिजल्ट ने एक बार फिर से सरकार के उन दावों का पोल खोल दिया जिसमें राज्य के युवाओं को नौकरियों में अधिक से अधिक अवसर देने की बात काही जाती रही है। ऐसे में एक बार फिर से झारखंडी युवाओं के साथ धोखा हुआ है।
वैसे भी झारखंड बाहरियों के लिए चारागाह बन गया है। झारखंड ही एक ऐसा राज्य है जहां बाहरी व्यक्ति भी मुख्यमंत्री बन सकता है, यूपी बिहार MP जैसे अन्य राज्यों का व्यक्ति भी सांसद विधायक बन सकता है तो यह जगजाहिर है कि यहां स्थानीयों की अनदेखा की जाएगी, यही कारण है कि झारखंड की नौकरियों में स्थानीय से ज्यादा गैर झारखड़ियो का बोलबाला चलता है।
झारखंड में ऐसे भी नौकरी लेना एक बड़ी चुनौती बन गई है क्योंकि यहां कोई भी वैकेंसी पुरे निष्पक्ष रूप से संपन्न ही नहीं हो पाती है। चाहे वह JSSC द्वारा आयोजित CGL का EXAM हो, चाहे वह PGT शिक्षक नियुक्ति हो, चाहे वह नगरपालिका सहायक की नियुक्ति हो,चाहे जूनियर इंजीनियर की परीक्षा हो.. राज्य की कोई भी परीक्षा पारदर्शी रूपसे संपन्न नही होती है। वही राज्य में सबसे बड़े प्रशासनिक पदों पर आधिकारी देने वाला संस्थान JPSC तो विवादों का दूसरा नाम ही है। राज्य में नौकरी ऐसे बिकती है जैसे खुले में कोई सब्जी बिक रही है यही कारण है कि बाजार में झारखंड के प्रतियोगिता परीक्षाओं की खरीद बिक्री का आरोप लगता रहा है जहां खुले तौर पर लाखों रुपए में नौकरियां बेची और खरीदी जाती है। कोई एग्जाम का पेपर लीक हो जाता है तो किसी एग्जाम को कंडक्ट करने वाली एजेंसी ही बिकी हुई रहती है ऐसे में नौकरी तो मिल ही नहीं रही है इसके विपरीत जो भी नौकरी मिल रही है उसमें भी बहरियों का कब्जा हो रहा है तो ऐसे में सवाल उठता है कि झारखंडियों के लिए बचा क्या है?
दूसरी ओर राज्य में अब तक स्थानीय आधारित नियोजित नीति लागू नहीं हो पाई है साल 2014 में बनी रघुवर सरकार ने 1985 आधारित स्थानीय नीति लाकर बाहरियों के लिए नौकरियों में द्वार खोल दिया था, हालांकि 2019 में गठबंधन की सरकार आते ही इस कानून को रद्द कर दिया था। लेकिन हेमंत सरकार भी अभी तक झारखंड में स्थानीय आधारित नियजन नीति लागू नहीं कर पाई है जो कि दुर्भाग्य की बात है।
यहां के छात्र वर्षों से 60:40 को लेकर आंदोलन करते रहे हैं जिसके तहत उनकी मांग है कि राज्य के नौकरियों मे 60 से 80% अवसर स्थानीयों को दिए जाएं लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसके विपरीत 60, 40 का जिस मुद्दे को लेकर युवा आंदोलन करते रहे हैं वह इसके उलट देखने को मिल रही है जिसमें 40% से भी कम यहां के मूल निवासी नौकरी कर पा रहे है जबकि 60% से अधिक बाहरी अभ्यर्थी कब्जा कर रहे हैं ऐसे में एक बार फिर से 60:40 का मुद्दा राज्य में गरमाता हुआ दिख रहा है।
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