Artical: एक चश्मा, एक बंडी, दो कुर्ता, दो पैजामा, दो जोड़ी टायर की बनी चप्पलें और एक घड़ी जो चोरी हो गयी। अब तक एक चित्र आपके जहन में बन चुका होगा, एक शख्सियत का आपको पता चल गया होगा। ये कोई औऱ नहीं बल्कि झारखंड राज्य की नींव रखने वाले और इसे अस्तित्व में लाने वाले मजदूरों के मसीहा कहे जाने वाले कॉमरेड एके राय हैं। एके राय, जिनके रग रग में क्रांति की लहू प्रवाहित होती थी, जिनकी जिंदगी का बस एक ही मकसद था गरीब, मजदूर, किसान के हित के लिए जीवन अर्पण हो, जिनके लिये कमरे में एक तख्त, कुछ किताबें, अखबार, अखबारों में छपी कुछ खबरों की कटिंग और कमरे के एक कोने में रखा लाल झंडा ही जमा पूंजी रही। जिन्होंने सांसद बनने के बावजूद अपनी जिंदगी के आखिरी समय तक एक रूपया पेंशन नहीं लिया। जो अपनी विचारधारा के प्रति इतने ईमानदार थे कि कोयले की नगरी धनबाद में सांसद और सिंदरी में विधायक रहने के बावजूद मजाल है कि आज तक कोयले की एक कालीख भी उनके सफेद कुर्ते पर दाग लगा सके। सादा कुर्ता, सादा जीवन यही एके राय की पहचान बनी रही।
आज हम इनके बारे में आपको इसलिये रूबरू करा रहे हैं, क्योंकि आज इस महान शख्सियत की 5वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। आज भले ही वह इस दुनिया में न हों, लेकिन उनके विचार सदा के लिये अमर हो गये। अगर आप झारखंड के किसी भी कोने में रहते हैं, या इससे बाहर भी रहते हों, लेकिन आपको एक बार एके राय की क्रांतिकारी विचारधारा, उनकी सादगी, उनकी विनम्रता, उनके संवेदनशीलता का स्वाद एक बार तो जरूर चखना चाहिये।
आपको उनकी जीवनी जरूर पढ़नी चाहिये, जानना चाहिये कि आखिर हम और आप जैसा ही एक आम सा शख्स बांग्लादेश से आकर आदिवासियों मूलनिवासियों के लिये एक अलग राज्य की कल्पना को कैसे साकार बना गया, कैसे वह मजदूरों का देवता बन गया। ऐसा क्या था उनके विचारों में जो आज भी गरीब, मजदूर, वंचित, शोषित उनकी विचारधारा को सर्वोपरि मानते हैं। आपके साथ अंशु। सबसे पहले उनकी जीवनी को एक टाइमलाइन के जरिये जानते हैं, उसके बाद उनके विचारों पर बात करेंगे। उनसे संबंधित कुछ किस्से भी हैं, जो आपको हम आज बतायेंगे।
एके राय का पूरा नाम अरूण कुमार राय था। उनका जन्म 15 जून 1935 में पूर्वी बंगाल के राजशाही जिले के सापुरा नामक गांव में हुआ था। यह स्थान अब बांग्लादेश में है। सन् 1951 में नवगांव विलेज स्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की। साल 1953 में वेल्लूर के रामकृष्ण मिशन स्कूल से I.Sc की। 1955 में कोलकाता के सुरेंद्रनाथ कालेज आए। यहां से बीएससी की डिग्री हासिल की। 1959 में कोलकाता विवि से केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। ये थी उनकी शैक्षणिक योग्यता। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने साल 1961 में सिंदरी PDIL में नौकरी भी की। 1966 में उनके जीवन ने करवट ली जब कोयलांचल के कामगारों की दशा देख उनके दिल में एक गहरी चोट ने घर कर लिया। ये चोट उन्हें बार बार टीस देता रहा, जिससे आहत होकर उन्होंने फौरन नौकरी छोड़ने का निर्णय किया। और इसी चोट ने उन्हें वामपंथी विचारधारा से जोड़ने का भी काम किया। एके राय ने वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होकर किसान संग्राम समिति और मार्क्सवादी समन्वय समिति का गठन किया। इसी विचारधारा के साथ उन्होंने राजनीति में कदम भी रखा। साल 1977, 1980 और 1989 में धनबाद के सांसद रहे। साल 1967, 1969, 1972 में तीन बार सिंदरी के विधायक भी बने।
झारखंड अलग राज्य की कल्पना तो बहुत से आदिवासी मूलवासी नेताओं ने की थी। लेकिन एके राय ने झारखंड का न होते हुए भी इस सपने को साकार करने में महती भूमिका निभाई। वही झारखंड आंदोलन के सूत्रधार बने। एके राय शिबू सोरेन और विनोद बाबू को एक मैदान में लेकर आये, और साथ मिलकर झारखंड के लिये संघर्ष किया। जेपी आंदोलन में भी उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था।
मजदूरों के लिए एके राय ने कई लड़ाइयां लड़ी। सुदामडीह वाशरी के स्लरी मजदूरों के लिए 18 वर्षों तक लड़ाई लड़कर कोयला कंपनी में मजदूरों को स्थाई नौकरी दिलाई। इस वजह से उनके राजनीति विरोधी भी उनके सादगी के कायल थे। राय साहब ने मानव सेवा को ही अपने जीवन का मकसद बना लिया। कभी खुद के जीवन की परवाह नहीं की। खुद का परिवार नहीं बसाया। उन्होंने तो शादी तक नहीं की। उनके तीन भाई और एक बहन हैं, जो कोलकाता में रहते हैं। एक बार की बात है, एके राय बीमार पड़ गये थे, तो उनके भाई तापस राय उन्हें देखने धनबाद आए थे। लेकिन तब भी राय साहब ने उनके साथ न जाकर कार्यकर्ता के साथ ही रहने की जिद की थी। उनके बारे में एक किस्सा बड़ा चर्चित है, जिससे आप एके राय का मजदूरों के साथ लगाव उनकी सादगी बेहतर रूप से समझ पायेंगे। उनके एक कमरे वाले मकान में एक बार एक चोर घुस आया। उसने पूरा कमरा छान मारा लेकिन चोरी करने के लिये उसे कुछ भी नहीं मिल सका। इस बीच राय साहब की नींद खुली और उन्होंने चोर को रंगे हाथ पकड़ लिया। दीवार की खूंटी पर टंगे एक कुर्ते की तरफ इशारा करते हुए बड़े ही विनम्रता के साथ कहा कि उसमें 2 हजार रूपये पड़े हैं, वह ले जाओ। जब लोगों को इस बारे में पता चला तो उन्होने राय साहब से पूछा कि उन्होंने चोर को चोरी करने क्यों दिया। तब एके राय ने जवाब दिया कि चोरी करना तो उसकी मजबूरी है, आखिर है तो वह भी एक मजदूर ही, जब वह अपना पेट पालने के लिये इतनी मेहनत कर रहा है, तो उसका मेहनताना तो बनता है। राय साहब की नजर में चोर भी मजदूर था।
मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़ते ही उन्होंने ऐश व आराम की जिंदगी को सदा के लिये अलविदा कह दिया था। एके राय का न कोई बैंक बैलेंस, न अपना मकान न ही गाड़ी थी। मासस का कार्यालय ही सालों तक इनका बसेरा बना रहा। बाद में नुनूडीह निवासी मासस कार्यकर्ता सबुर गोराई के साथ वह एक कमरे वाले मकान में रहने लगे। एक चौकी पर ही हमेशा उनका बिस्तर सजा। सोते वक्त घर के कमरे में लगे पंखे को कभी नहीं चलाया। संगठन के कार्यकर्ता, मजदूर ही उनके परिवार थे। जब वे सांसद थे। तब भी जेनरल बोगी में सफर करते थे। सांसद बनने के बाद उन्होंने कभी एक रूपया भी पेंशन नहीं लिया। सांसदों का वेतन बढ़ने का मामला जब सदन में उठा, तब एके राय ही एकमात्र ऐसे सांसद थे, जिन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया था। उनका विचार था कि देश के मजदूर और गरीबों को जब दरी तक नसीब नहीं है, तो हम कैसे शानदार पलंग पर सो सकते हैं।
झारखंड आंदोलन और राजनीति पर वे आजीवन लिखते रहे। इनकी एक फेमस बुक भी है- झारखंड और लालखंड, योजना और क्रांति के नाम से. अंग्रेजी में बिरसा से लेनिन और दलित क्रांति के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इन्होंने कई आलेख भी लिखे। राजनीति के संत कहे जाने वाले राय साहब आज भी अपने आंदोलन और स्वभाव के कारण लोगों के दिलों में जिंदा हैं। कोयलांचल की आन-बान व शान राय साहब को आज भी धनबाद ही नहीं, बल्कि पूरा झारखंड याद करता है।
ये थी एके राय की पूरी जीवनी, उम्मीद है आपको हमारी ये प्रस्तुती पसंद आयी होगी। वैसे अगर आपको ये वीडियो पसंद आय़ा हो, तो इसे जरूर से लाइक और शेयर करें,