L19/DESK : 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती मनायी जाती है। भारत के उत्थान में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। आज उनकी 161वी जयंती है। आज जानते हैं उनके जीवन परिचय के बारे में।
स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन
विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के वकील थे और मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थी। नरेंद्रनाथ 1871 में आठ साल की उम्र में स्कूल गए। 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया था। पिता की मौत साल 1884 में हो गयी जिसके कारण पूरे परिवार की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर आ गई। स्वामी विवेकानंद ने बेहद कम उम्र में ही वेद और दर्शन शास्त्र का ज्ञान हासिल किया।
ऐसे बने नरेंद्रनाथ दत्त से विवेकानंद
विवेकानंद बड़े अतिथि-सेवी थे। खुद भूखे रहते, पर अतिथियों को खाना खिलाते और बाहर ही ठंड में सो जाते थे। 25 साल की उम्र में अपने गुरु से प्रेरित होकर उन्होंने सांसारिक मोह-माया त्याग दी और संन्यासी बन गए। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद पड़ा। स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे। 1881 में कलकत्ता के दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में दोनों की मुलाकात हुई। परमहंस ने उन्हें शिक्षा दी कि सेवा कभी दान नहीं, बल्कि सारी मानवता में निहित ईश्वर की सचेतन आराधना होनी चाहिए।
देश के साथ साथ विदेशों में भी लहराया अपना परचम
अमेरिका के धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ के संबोधन से भाषण शुरू किया, जिसके बाद पूरे दो मिनट तक आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में तालियां बजती रहीं। जो 11 सितंबर 1893 का दिन हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया।
बीमारियों के कारण कम उम्र में ही हो गयी विवेकानंद की मौत
उन्होंने 1 मई 1897 को कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। स्वामी विवेकानंद को लगभग 31 बीमारी थी। उन्होंने कहा था कि ये बीमारिया तो मुझे 40 साल तक भी जीने नहीं देगी। उनकी ये बात सच हो गयी 39 बरस की बेहद कम उम्र में 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित रामकृष्ण मठ में ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। स्वामी विवेकानंद का अंतिम संस्कार बेलूर में गंगा तट पर किया गया। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का अन्तिम संस्कार हुआ था।
स्वामी विवेकानंद के जन्म दिन के शुभ अवसर पर 12 जनवरी को भारत सरकार के द्वारा 1984 में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने की घोषणा की गयी। इसकी शुरुआत 1985 से हुई और आज तक 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। जैसा कि हम जानते है स्वामी विवेकानंद ने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया। उनका एक मूल मंत्र है ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’। आज कि युवा पीढ़ी को उनके विचारों से प्रेरणा लेनी चाहिए।