L19 Ranchi :आदिवासी अपने सभ्यता काल से भी पहले से सूर्य को देवता मानते आए हैं और सूर्य को भगवान के रूप में पूजा कर जल अर्पित करते रहे हैं । आज भी आदिवासियों की जो देवता हैं वे साक्षात देव हैं । उनका हर देवता साक्षात देखा जा सकता है। चाहे जल हो, हवा हो, या वृक्ष हो इनके ही आराध्य हैं । सूर्य को अभी भी डंडा काटा, में दीप जला कर सूर्य का प्रतीक मान विनती किया जाता है, अग्नि देव जो सूर्य का ही प्रतीक है देवता मान पूजते हैं । बुद्धि जीवियों ने इसे जूल्हा भूत कह उद्देश्य को मुद्दे से भटका दिया । आदिवासी समाज जल को ईश्वर प्रदत्त मान पुन्य समझा और जल को पवित्र मान हर चीजों में जल का प्रयोग किया । जैसे:-मेहमान को भगवान का रूप मान पवित्र जल से पैर धोना, सूर्य के निकलने पर सूर्य को जल अर्पित करना, किसी भी पूजा में जल से वस्तु स्थान को पवित्र करना, साथ स्वयं को जल से स्नान कर शुद्ध करना, ये आदिवासियों में सृष्टि काल से चलता आया है । पेड़-पौधे को भी भगवान मान पूजना, आज दूसरे समाज इनके गुण की खोज कर उसके महत्व को समझा फिर देव स्वीकार की ।
आज सूर्य में जो सात किरणे हैं उन किरणों से सभी समाज अवगत है और अवगत के बाद ही सूर्य को देव माना । सच्चाई भी है। सूर्य से खेती होती है, सूर्य के रोशनी से अनाज उत्पन्न होती है । सूर्य से ही दिन रात होता है, सूर्य के किरणों से कई तरह के जीवाणु विषाणु नष्ट हो जाते हैं । सूर्य को सुबह उगते समय या डुबते समय देखने से दृष्टि सही रहती है । भले आदिवासी सूर्य के किरणों की जानकारी नहीं रखते थे परन्तु इतना जरूर जानते थे कि सूर्य के रोशनी में अदृश्य शक्ति है जो बच्चों के लिए पौष्टिक आहार की भांति ताकत देता है । यही कारण है कि बच्चों को नहला कर धूप में खाली बदन सुला देते थे । साधुओं ने सूर्य की खूबियों को जाना और वे भी सूर्य की पूजा करने लगे वे भी नदियों में नहाने के बाद सूर्य को जल अर्पित करने लगे । धीरे-धीरे हिन्दू समाज में खूबियां उजागर हुई और फिर सभी समाज सूर्य को देवता मानने लगे ।
छठ के रूप में प्रचलित
साधु महात्मा के बाद आम लोगों ने सूर्य के महत्व को जाना और पूजना शुरू किया । धीरे-धीरे छठ पर्व के रूप में यह प्रचलित हो गई और लोग खुल कर सूर्य को देवता मान बैठे । परन्तु वे सिर्फ सूर्य को ही नहीं माना बल्कि उनकी बहन जो ब्रह्मा की पुत्री थी,को शामिल किया और उसे माता कहा, फिर सूर्य को उसमें सम्मिलित कर दिया । इसमे आदिवासी की तरह ही उद्देश्य है परन्तु ये वरदान में पुत्र पुत्री की प्राप्ति और उनके स्वास्थ्य की कामना की गयी है । आदिवासी अपने बच्चे को नहलाकर सूर्य की रोशनी में छोड़ देते थे कि बच्चे का शरीर हिष्ट पुष्ट रहे । भले सूर्य के किरणों के गुण मालूम नहीं था । परन्तु सूर्य किरणों का महत्व जाने अनजाने देते ही थे ।
छठ पर्व में भी सफाई और शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता है पानी को भले ये भगवान नहीं मानते परन्तु अर्घ्य देते समय जल अर्पित करते ही हैं । जिसे कि आदिवासी हजारों साल पहले से करते आ रहे हैं । मेहमानों को जल से परिछना, वस्तुओं को जल छिड़कर शुद्धि करना, देव स्थल को जल अर्पित कर साफ और शुद्धि करना, या आये मेहमानों का चरण जल से धोकर स्वागत करना आदिवासियों का हजारों वर्षों से परम्परा के रूप में चला आ रहा है । जल को आदिवासी समाज भगवान का दिया हुआ सबसे पुन्य चीज मानते हैं । यही कारण है कि जल का प्रयोग हर वस्तुओं की शुद्धिकरण के लिए छिड़का जाता है । आज लोग जल के महत्व को समझने लगे हैं ।
झारखंड में छठ का महत्व
झारखंड अलग राज्य होने के बाद इस पर्व की आस्था बढ़ने लगी ।पहले झारखंड में गिने चुने लोग इस पर्व को मानते थे । यह पर्व जितना पाक है उतना त्याग भी है साथ ही खर्चिला भी । झारखंड होने के बाद बाहर से काफी संख्या में लोग नौकरी पर आये तथा झारखंड में भी हर तरह के लोग थोड़ा सम्पन्न हुए नौकरी वाले बढ़े, बिजनेस वाले बढ़े और तब सूर्य के आस्था के प्रति झुकाव दिखने लगा । इस तरह पुरे झारखंड में आज फैलकर आस्था का शैलाब बन गया है । कई तरह के कथा बनने लगे हैं । पवित्रता फिर दिखावा होने लगा है । लोग जितनी आस्था से पूजा करते हैं उतने आस्था मानव समाज को नहीं देखते । पहले गरीब पर विशेष ध्यान दिया जाता था और परसाद के रूप में उन्हें खिलाया जाता था परन्तु अब अपने अपने लोगों को देखा जाने लगा है । यह पर्व वाकई पवित्रता का मिशाल है इस पर्व में जल, वातावरण और सूर्य का सामुहिक पूजा होता है । मन और तन और पूज्य सामग्री शुद्धता रहती है । जो भी व्यक्ति इस पूजा को श्रद्धा से करेंगे उनकी मनोकामना जरूर पूरा होगी ।