L19 DESK : समलैंगिक विवाह मामले में सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि लोकतंत्र को केवल चुनावी चश्मे से नहीं देखा जा सकता। अगर संसद और सरकार द्वारा लिये गये सारे फैसले लोकतांत्रिक ही हों, तो फिर अदालतों की क्या ही आवश्यकता है। ऐसा उन्होंने इसलिये कहा क्योंकि केस की सुनवाई के वक्त केंद्र सरकार के वकील ने कहा था कि अदालतें एलजीबीटी कपल्स के अधिकारों पर फैसला नहीं दे सकती। ऐसा करना लोकतंत्र के विरुद्ध होगा। इसी का जवाब देते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने ये बातें कहीं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने सेम सेक्स मैरिज पर फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर चुनी हुई सरकार के सभी फैसले पूरी तरह लोकतांत्रिक ही हों और मूल अधिकारों के उद्देश्य को पूरा करते हों तो फिर अदालतों की क्या जरूरत है, जिनका काम ही कानून की व्याख्या करना है। अदालत का तो काम ही यही है कि जब सरकार संवैधानिक मसलों पर गलती करे तो उसके फैसलों की समीक्षा करे।’
उन्होंने अपने फैसले में कहा कि हमारे संविधान में ही ऐसे लोकतंत्र की बात कही गई है, जिसमें सभी की जरूरत है। हमारा संविधान यह नहीं कहता कि संवैधानिक लोकतंत्र का अर्थ सिर्फ चुनावी डेमोक्रेसी है। दूसरे संस्थानों की भी अपनी भूमिका है और वे सरकार के फैसलों की समीक्षा कर सकते हैं। संविधान में लोकतंत्र की कोई संकीर्ण परिभाषा तय नहीं की गई है। यही नहीं उन्होंने समलैंगिक विवाह के मामले में केंद्र सरकार की राय को भी संकीर्ण बताया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को लेकर आपकी परिभाषा ठीक नहीं है और यह संकीर्ण मानसिकता है। उन्होंने कहा कि देश में शिक्षा का अधिकार कानून अदालत के दखल के बाद ही बना था और फिर इसे मूल अधिकार के तौर पर लागू किया जा सका।
बता दें, काफी लंबे समय से यह मामला कोर्ट में लंबित था, जिसकी सुनवाई करते हुए मंगलवार को अदालत ने समलैंगिक शादियों की मान्यता को लेकर फैसला दिया था। कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज की मान्यता की मांग रखने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि यह काम अदालत का नहीं है। हम संसद की तरह कानून नहीं बना सकते और ना ही संसद पर इसके लिए दबाव डाल सकते। हालांकि, कोर्ट ने समलैंगिक शादियों की मान्यता को लेकर सरकार को कमेटी बनाने का सुझाव दिया है।