L19/Gumla : झारखंड के सुदूरवर्ती इलाकों में अभी भी कोई मूल रूप सुविधा नही मिल पाती है। बता दे, गुमला जिला स्थित रायडीह प्रखंड अंतर्गत सुदूरवर्ती नक्सल प्रभावित कोब्ज़ा पंचायत के नगेशिया आदिवासी बहुल गांव नटकी झरिया में शुक्रवार 14 जुलाई का दृश्य न केवल विकास की पोल खोल रही है तथा यह भी बता रही थी कि आज भी गांव के लोग किस युग में जी रहे हैं। गांव में सड़क नहीं रहने के कारण यहां के ग्रामीण आदिम युग की तरह जीवन-यापन करने को विवश हैं। पगडंडी में पैदल ही एकमात्र सहारा है। चुनाव के वक्त बड़े-बड़े दावे करने वाले इस क्षेत्र के सांसद, विधायक और पंचायत के जनप्रतिनिधि गांव में सबसे बुनियादी सुविधा सड़क तक उपलब्ध नहीं करा सके हैं।
शुक्रवार को नकटी झरिया में एक बीमार वृद्धा फुलमैत देवी को इलाज के लिए उसके घर वालों को बहंगी में लादकर अस्पताल पहुंचाना पड़ा। वह भी अपने पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के जशपुर जिला स्थित अस्पताल। बताया गया कि गुरुवार को महिला आंगन में बैठी थी। अचानक उसके शरीर पर फोड़ा उठ गया। चमड़ी में फटने जैसा दाग आने लगा। देखने में जला हुआ जैसा जख्म लग रहा था। वृद्ध महिला के चार बेटे सोनू किसान, पन्नू किसान, सुकरू किसान और छटकु किसान और पुत्र वधुओं ने मिलकर इलाज के लिए महिला को चादर में उठाया और बारी-बारी से पांच किलोमीटर दूर पैदल बहंगी में ढोकर कोब्जा पोखरा डीपा पहुंचाया। फिर ऑटो से मांझा टोली पहुंचे।
वहां से अन्य वाहन से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लोदाम छत्तीसगढ़ में भर्ती कराया गया, जहां चिकित्सकों ने गंभीर स्थिति को देखते हुए सदर अस्पताल जशपुर रेफर कर दिया। वहां आईसीयू में इलाज चल रहा है। उनके पुत्रों से यह पूछने पर कि मां का इलाज गुमला या रांची में क्यों नहीं करवाया, तो उनका कहना था कि जशपुर और इसके आस-पास कै गांवों में उनके अनेक रिश्तेदार हैं और यहां इलाज भी बढ़िया होता है। यह दृश्य देखकर सिहरन होती है कि आखिर केंद्र और राज्य सरकार चाहे लाख दावा करे, लेकिन आज भी गांव का जीवन कष्टमय है। कोई देखने वाला नहीं हैं। राज्य डिजिटल इंडिया का दावा ठोकता है। हालांकि, सचाई यह है कि सड़क के अभाव में न जाने कितनी जिंदगियां समय से पूर्व चली गई होंगी।