L19/BOKARO : नावाडीह प्रखंड के जंगलों पहाडों में रहने वाले किसानों के लिए इन दिनों सखुआ पेड़ का बीज आर्थिक आय का प्रमुख स्त्रोत बना हुआ है। जंगलों में सखुआ के पेड़ फलों से लदकर प्राकृतिक सुदरंता तो बढ़ती है, और जब ये पककर गरीबों के लिए आय का प्रमुख साधन बनकर धरती पर गिरते लगता है। इन दिनों जंगलों में रहने वाले किसान महिला, पुरूष, बच्चे-बुढ़े सुबह से ही जलपान लेकर जंगलों में पहुंच रहें है। जमीन में गिरें सखुआ पेड़ की फृल को चुनकर जमा करते है। फिर उसके उपरी छीलके को काफी मेहनत कर हटाते है। छीलके को हटाने के बाद उसे बाजार में बेचने के लिए ले जाते है। ग्रामीणों ने बताया कि बाजार में सखुआ का फल 50 से लेकर 80 रूपए प्रति किलो की दर से बिकता है। सखुआ का बीज की मांग हर वर्ष मई-जून में काफी बढ़ जाती है। हालांकि सरकार द्वारा सखुआ बीज की खरीददरारी के लिए कोई पहल नहीं होने पर किसान बाजार में औने-पौने दाम पर बेचने को विवश है।
कई उपयोगी है सखुआ का बीजः ग्रामीण चिकित्सक डॉ. दिलचंद ठाकुर की मानें तो सखुआ का बीज कई चीजों में उपयोग किया जाता है। पहले जब क्षेत्र में आकाल पड़ता था तब वे लोग बीज को भोजन के रूप में उपयोग करते थे। इसके अलावे साबून और तेल निकालने के लिए भी उपयेग किया जाता है। जंगल के राजा पेड़ के रूप में है पहचान : सखुआ के पेड़ की पहचान जंगल के राजा पेड़ के रूप में बनी है। क्योंकि यह अपने अगल-बगल के पौधों को प्राकृतिक रूप से जैविक विविधता सहयोग करता है। इसकी लकड़ी सबसे कीमती और मजबूत होती है। पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी यह काफी बेहतर है। अन्य बड़े पेड़ पीपल, बरगद की तरह नहीं कि अपने नीचे पलने वाले पौधों को ये कभी पनपने नहीं देते।
वनों के विस्तार से राज्य को होगा फायदा : रेंजर
बेरमो वन प्रक्षेत्र के रेंजर बिनय कुमार ने कहा कि एक बड़े क्षेत्र में सखुआ का पौधरोपण प्रयोगात्मक रूप से किया गया है। सखुआ का महत्व पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी काफी अधिक है। लेकिन प्राकृतिक रूप से होने के कारण इसका विस्तार करने में परेशानी हो रही थी। जहां सखुआ के वन हैं, वहीं पौधरोपण हो पाता था। लेकिन बीज के माध्यम से पौधे उगाने का प्रयोग सफल रहा है। आगामी वर्षों में दूसरे जिलों में भी इसका विस्तार किया जाएगा।
पत्रकार – रामचंद्र अंजाना ( बोकारो थर्मल )