L19 DESK : बीते दिनों छत्तीसगढ़ में हुए भीषण नक्सली हमले ने एक बार फिर से देश में लोगों को नक्सलियों की ओर आकर्षित किया। एक ओर देश के गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं कि उनकी सरकार जब से केंद्र में बनी है तब से लेकर अब तक में देश से नक्सलियों का अस्तित्व 50% तक कम हो गया है। अमित शाह का दावा है कि आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड,बंगाल, ओडिसा जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों से नक्सलियों का लगभग सफ़ाया हो चुका है। परंतु बीते दिनों हुए छत्तीसगढ़ नक्सली हमले ने केंद्र सरकार के इस दावे की पोल खोल रखकर दी है।
छत्तीसगढ़ हमले के बाद भारत की कम्युनिस्ट पार्टी- भाकपा माओवादी ने गुरुवार, 27 अप्रैल को एक बयान जारी कर कहा कि छत्तीसगढ़ के अरनपुर में हुए नक्सली हमले के पीछे उसी का हाथ है। माविस्ट संगठन की दरभा डिविजन ने अपने लेटर में इस हमले को ‘वीरतापूर्ण’ काम बताया, साथ ही इसे छत्तीसगढ़ के आदिवासी नागरिकों पर ‘सरकारों और सुरक्षाबलों के अत्याचार का बदला’ करार दिया। जब नक्सली ये बयान लिख रहे थे, उसी वक्त दंतेवाड़ा जिले के अलग-अलग हिस्सों में उन जवानों को अंतिम विदाई दी जा रही थी जो बुधवार के नक्सली हमले में शहीद हो गए,उन्हीं में से एक जवान के अंतिम संस्कार की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है,जिसमे नक्सली हमले में शहीद की पत्नी अपने पति के चिता पर लेटी हुई है।
इस तस्वीर को बस्तर के एक पत्रकार अविनाश प्रसाद ने ट्विटर पर शेयर कर बताया है कि ये महिला हमले में शहीद हुए DRG के जवान लखमू राम मरकाम की पत्नी हैं।अविनाश ने लिखा कि लखमू मरकाम की पत्नी में पति का शव जलते देखने की हिम्मत नहीं बची थी, इसलिए उनसे पहले खुद ही चिता पर लेट गईं ताकि पति के शव को उस पर ना रखा जाए। अविनाश ने लिखा, ये मार्मिक तस्वीर दंतेवाड़ा जिले के कासोली गांव की है जहां नक्सल हमले में शहीद जवान लखमू मरकाम की पत्नी चिता की लकड़ी पर लेटी हुई हैं।अपने जीवनसाथी का शव जलता हुआ देखने की हिम्मत नहीं है उनमें,शहीद की
अंतिम यात्रा में उमड़े लोग अमर जवान के नारे लगाते रहे
शहीद लखमू राम मड़कामी छत्तीसगढ़ के बीजापुर के रहने वाले थे। थाना तहसील भैरमगढ़ स्थित निराम गांव में उनका घर है। 5 जून, 1984 को जन्मे लखमू राम ने 29 जनवरी, 2016 को DRG जॉइन की थी।पिछले साढ़े 6 सालों से वो नक्सल विरोधी अभियान में अपनी भूमिका निभा रहे थे। 26 अप्रैल, 2023 को हुए नक्सली हमले में उनकी मौत हो गई।
केंद्र सरकार की दावे ने कि देश से नक्सलियों का अस्तित्व लगभग अंतिम दौर में है, लोगों को सोचने पर मजबूर करती है। आखिर कहां चूक हो रही है कि समय दर समय कहीं ना कहीं ऐसी अप्रिय घटनाएं होती रहती हैं और इन घटनाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित समाज के निम्न वर्ग के लोग होते हैं। अकसर पुलिस कार्रवाई हो या नक्सलियों की कार्रवाई हो दोनों ही घटनाओं ममें आम नागरिकों के साथ-साथ समाज के निम्न तबके के लोगों को ही नुकसान झेलना पड़ता है।