l 19/DESK : जितनी तेजी से भारत में आदिवासियों की संख्या घट रही है उतनी ही तेजी से उनकी भाषा संस्कृति भी विलुप्ति की कगार पर है। ऐसा मैं इसलीय कह रही है क्यूंकि हाल में ही साहित्य अकादमी के कार्यक्रम में भाग लेने रांची आए छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति के केशरी लाल वर्मा ने एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि पूरी दुनिया में 6000 भाषाएं विलुप्ति की अवस्था में है इनमें से 3000 भाषाएं बहुत जल्द विलुप्त हो जाएंगे। जहां एक ओर भारत की लगभग 207 भाषाएं विलुप्ति की स्थिति में हैं,ज्यादातर आदिवासी समुदायों की हैं। झारखंड जितने भी अति संवेदनशील जनजाति समूह यानी आदिम जनजाति हैं उन सभी की भाषाएं विलुप्तिकरण के कगार पर है यहां तक कि खड़ीया भाषा भी लुप्त होती भाषायों की श्रेणी में रखा गया है।
आदिवासी लेखिका वंदना टेटे कहना है कि जनसंख्या कम होने और अस्तित्व के सवाल से जूझ रहे इन समुदायों के लोगों की भाषा भी विलुप्तिकरण के कगार पर है। कुछ साल पहले अंडमान मे एक आदिवासी महिला की मौत के साथ उस समुदाय की भाषा भी लुप्त हो गई थी क्योंकि वह अपने समुदाय की एकमात्र महिला थी। झारखंड में कई ऐसे जिले हैं जहां आदिम जनजातियों के कुछ परिवार ही बचे हैं। ऐसे में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि उनकी भाषा भी समाप्त हो जाएगी।
यूनाइटेड नेशन की ओर से 2022 से लेकर 2032 की अवधि को पूरे विश्व में आदिवासी भाषा के दशक के रूप में घोषित किया गया है। भाषाओं को बचाने की पहल की जा रही है पर भाषाओं को बचाना है उसके लिए सबसे पहले समुदाय को ही पहल करनी होगी,इन्हे ही अपनी भाषा बोलनी होगी साथ ही उसे दिनचर्या का हिस्सा बनाना होगा।
बताते चले कि झारखंड में आदिम जनजातियों की जनसंख्या कम है। TRI की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में इनकी जनसंख्या 2 लाख 92 हजार 359 है।। झारखंड में कुल अनुसूचित जनजातियों के मुकाबले आदिम जनजातियों की जनसंख्या प्रतिशत सिर्फ 3.8 प्रतिशत है। असुर आदिम जनजातियों की कुल जनसंख्या 22 हजार 459 है। बिरजिया समुदाय की कुल जनसंख्या महज 6276 है। बिरहोरो की कुल जनसंख्या 10726 है। सबर समुदाय की जनसंख्या 9688 है। यही हालत कोरवा,माल पहड़िया,परहैया,सौरिया पहाड़िया जैसे आदिम जनजातियों की भी हैं।