L19 DESK : 1 अगस्त को हर साल पूरे विश्व भर में फेफड़े के कैंसर दिवस यानि वर्ल्ड लंग कैंसर डे के रुप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य फेफड़े के कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक किया जाना और फेफड़ों के कैंसर की घटनाओं को कम करना है। अगर लंग्स को सही से ना रखा जाए तो ये डैमेज हो सकते हैं और फेफड़ों के कैंसर का खतरा रहता है। फेफड़ों के कैंसर का एक प्रमुख कारण तंबाकू खाना और ध्रूमपान है। लंग कैंसर दुनिया में सबसे आम कैंसरों में से एक है।
लंग कैंसर को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े?
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, साल 2020 में फेफड़ों के कैंसर से लगभग 1.8 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। पहली बार लंग्स कैंसर को लेकर साल 2012 में फोरम ऑफ इंटरनेशनल रेस्पिरेटरी सोसाइटीज ने इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग्स कैंसर और अमेरिकन कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजिशियन की सहायता से यह कार्यक्रम आयोजित किया था। दुनिया भर में कैंसर के कारणों, लक्षणों, रोकथाम और निदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल ‘वर्ल्ड लंग्स कैंसर डे’ मनाया जाता है। यह खास दिन लोगों से इस जानलेवा रोग के शीघ्र निदान और उपचार के लिए अपनी जांच समय से करवाने का भी आग्रह करता है।
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के जर्नल ग्लोबल ऑन्कोलोजी में प्रकाशित एक आंकड़े के अनुसार साल 2000 से लेकर 2019 के बीच भारत में कैंसर से 1 करोड़ 28 लाख से भी ज्यादा लोग मर चुके हैं। भारत की बात करें तो भारत सरकार के नेशनल कैंसर रेजिस्ट्री प्रोग्राम द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि साल 2020 से लेकर 2022 के दौरान देशभर में कुल 23 लाख 67 हजार 990 लोगों की मौत कैंसर के कारण हुई। अगर हम फेफड़ों में कैंसर की वजहों की बात करें तो इनमें धूम्रपान, नशीले पदार्थों का सेवन, प्रदूषण वाली हवा, तापमान का उतार-चढाव, सांस संबंधित बीमारी मुख्य कारण हो सकते हैं।
क्या है भारत में लंग कैंसर के इलाज का हाल?
वहीं, अगर हम भारत की प्रति व्यक्ति आय के मद्दनेजर इसके दवाइयों के खरीद तक एक आम भारतीय के पहुंच की बात करें तो देश के प्रसिद्ध टाटा मेमोरियल हास्पिटल, मुंबई के डाक्टरों के एक शोध आलेख के मुताबिक ऐसी दवाओं को 2% से भी कम मरीज खरीद पाते हैं। वहीं, एक दूसरे आंकड़े के मुताबिक, भारत की सिर्फ 10% आबादी ने हेल्थ इंश्योरेंस ले रखा है। इनमें से भी अधिकतर का औसतन कवरेज सिर्फ 4 लाख है। यही नहीं, टारगेटेड और इम्यूनोथेरेपी तो दूर की बात है, कीमोथेरेपी की भी कुछ दवाओं की कवरेज आयुष्मान योजना के तहत नहीं है। सभी सरकारी अस्पतालों में कैंसर के विशेषज्ञ डॉक्टर तक नहीं हैं।