L19 DESK : क्या झारखंड में भाजपा, झारखंड मुक्ति मोर्चा से इतनी डर गई है कि वो विधायक दल का नेता तक नहीं चुन पा रही है. या भाजपा को डर उनके ही विधायकों और नेताओं से है. पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा चुनाव हार चुके हैं, रघुवर दास, राज्यपाल के पद से इस्तीफा देकर भाजपा में वापसी कर चुके हैं, बाबूलाल मरांडी भी राज्य के बड़े नेता हैं और फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी हैं. वहीं, जेएमएम छोड़कर आने वाले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन पर भी भाजपा नजर बनाए हुए है. ऐसे में इन चारों बड़े नेताओं के अलावा भी भाजपा के लिए कई नेता परेशानी बन सकते हैं. नीरा यादव, सीपी सिंह भी विधायक दल के नेता बनने के रेस में हैं. वहीं, इन सब के बीच बीते कल हुए बजट सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक से भाजपा ने दूरी बनाई. और अब 23 फरवरी को भाजपा अपने विधायकों के साथ बैठक करेगी. लेकिन, मुख्य विपक्षी दल, के विधायक दल, का नेता, नहीं होने के कारण कई नियुक्तियां अटकी हुई है. भाजपा में यह असमंजस की स्थिति क्यों बनी है, भाजपा विधायक दल का नेता चुनने में इतनी देर क्यों कर रही है.
शुरुआत, भाजपा में विधायक दल के नेता के चयन में हो रहे देर से ही करते हैं. ऐसा माना जा रहा था कि झारखंड विधानसभा के बजट सत्र से पहले ही भाजपा अपने विधायक दल के नेता का चयन कर लेगी लेकिन अब बजट सत्र को शुरू होने में मजह कुछ घंटे ही बचे हैं लेकिन अभी तक भाजपा की ओर से नाम का ऐलान नहीं हुआ है. ऐसे में संभत अब सत्र शुरु से पहले नाम सामने नहीं आएगा लेकिन झारखंड में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को छोड़ दिया जाए तो फिलहाल प्रदेश भाजपा का कोई भी नेता सरकार को और खासकर हेमंत सोरेन पर उतना हमलावर नहीं है जितना बाबूलाल मरांडी हैं. ऐसे में यह लगभग तय माना जा रहा है कि पार्टी बाबूलाल के नाम ही सहमति बनाएगी, लेकिन पार्टी के लिए मुश्किलें अन्य नेता बन रहे हैं. भाजपा की चिंता है कि प्रदेश के अन्य बड़े नेताओं को कहां शिफ्ट किया जाए.
मसलन, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, चंपाई सोरेन जैसे नेता. अब भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व यही तय नहीं कर पा रही है कि किसे कहां शिफ्ट किया जाए. क्योंकि भाजपा झारखंड में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. बुरे दौर से इसलिए नहीं कि वो सत्ता में नहीं है बल्कि बुरे दौर से इसलिए क्योंकि राज्य के आदिवासियों का भरोसा भाजपा से उठ चुका है. भाजपा से उठता भरोसा और जेएमएम पर लगातार आदिवासियों का बढ़ता भरोसा भाजपा के लिए परेशानी बनी हुई है.
ऐसे में भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व, झारखंड में हर एक कदम पार्टी भविष्य की बेहतरी को सोचते हुए लेना चाहती है. ऐसा माना जाता है कि भाजपा नेता रघुवर दास से आदिवासी समाज नाराज है. वहीं, अर्जुन मुंडा से कुड़मी समाज, में ऐसे में पार्टी इन दोनों ही नेताओं को झारखंड में कोई प्रभार देने की फिराख में नहीं है. लेकिन मूल सवाल यही है कि फिर उन्हें भेजा कहां जाएगा. विधायक दल के नेता और प्रदेश अध्यक्ष, दो ऐसे बड़े पद हैं जहां पार्टी वैसे नेता को बिठाना चाहती है, जहां से झारखंड के आदिवासी, मूलवासी, ओबीसी समाज को अपने पाले में लाया जा सके. खैर, महिला नेता को भी भाजपा अब लगातार आगे कर रही है.
दिल्ली की नई सरकार में भाजपा ने रेखा गुप्ता को कमान सौंपी है. ऐसे में पार्टी नीरा यादव को भी सचेतक जैसे पद पर स्थापित कर करती है. खैर, अब इस पर राजनीति भी शुरु हो गई है, लेकिन मुख्य विपक्षी दल के विधायक दल का नेता नहीं होने के कारण कई नियुक्तियां अटकी हुई हैं. जैसे मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाएगी. मानवधिकार आयोग का गठन नहीं हो पाएगा. सदन के अंदर भाजपा के कार्य संचालन पर असर पड़ेगा. ऐसे में उम्मीद यही की जा रही है कि भाजपा, पार्टी हित के साथ-साथ राज्यहित को सोचते हुए कल यानी 23 तारीख को होने वाले बैठक में विधायक दल का नेता का चयन कर ले, जो फिलहाल होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है.