L19 DESK : देश भर में 30 जून को हूल क्रांति दिवस मनाया जाता है और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले आदिवासियों की शौर्य गाथा और बलिदान को याद किया जाता है। संथाली भाषा में हूल का अर्थ क्रांति होता है। 30 जून, 1855 को संथाल आदिवासियों ने अंग्रेजी शासन के दमन एवं अत्याचार के खिलाफ पहली बार विद्रोह का बिगुल फूंका. इस दिन 400 से अधिक गांवों के 50 हजार से अधिक लोगों ने साहिबगंज के भोगनाडीह गांव पहुंचकर अंग्रेजों से जंग करने का एलान किया था। सिद्धो-कान्हो, चांद-भैरव और फूलो-झानो के नेतृत्व में संथालों ने मालगुजारी नहीं देने और “करो या मरो, अंग्रेज़ों हमारी माटी छोड़ो” “अबुवा दिशुम, अबुवा राज” के नारों के साथ अंग्रेज़ो के खिलाफ युद्ध करने का एलान किया। संथाल विद्रोहियों के आक्रामक रवैये से घबराकर अंग्रेज़ों ने उनका दमन प्रारंभ करना शुरू कर दिया।
400 गाँव तथा 50 हजार लोगो का 131 वर्षो तक भारतीय इतिहास में बंद था
जब अंग्रेज़ों का दमन बढ़ने लगा तो इसकी प्रतिक्रिया में आदिवासियों ने अंग्रेजी सरकार की ओर से आए जमींदारों और सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। तब विद्रोहियों को सबक सिखाने के लिए अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं। उस समय चांद और भैरव को अंग्रेजों ने मार डाला। इसके बाद सिदो और कांहू को साहिबगंज के भोगनाडीह में ही पेड़ से लटकाकर 26 जुलाई 1855 को फांसी दे दी गई। बता दे उस लड़ाई मेन शामिल होने वाले 400 गाँव तथा 50 हजार लोगो का 131 वर्षो तक भारतीय इतिहास के पन्नों में बंद थे। 131 वर्ष के बाद ही लोगों के पास हूल क्रांति के प्रमुख नायक की तस्वीर सामने आया।
सीआर हेम्ब्रोम ने बनाया था सिदों- कांहू की पहली तस्वीर
हूल क्रांति के प्रमुख नायकों की तस्वीर पहली बार 1986 में बनाई गई थी। बता दे इस तस्वीर को उस समय पटना स्थित आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स कॉलेज में सीआर हेम्ब्रोम ने बनाया था। हेम्ब्रोम के प्रयास से ही सिदो-कांहू की तस्वीरे लोगो के सामने आई। काफी रिसर्च के बाद आखिरकार साल 1855 के एक अंग्रेजी अखबारो में बने स्केच के आधार पर उन्होने यह तस्वीर बनाई। बता दे हूल क्रांति एक राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर आधारित आंदोलन थी। आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन पर अंग्रेजों द्वारा जबरन किए जाने वाले क़ब्ज़े के खिलाफ आंदोलन था।
भारत की स्वतंत्रता एवं स्वाधीनता की लड़ाई के लिए ऐतिहासिक पल था
आदिवासी समुदायों के पास सदियों से जीविका के लिए जंगलों का अधिकार था, जो उनकी सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा था। हूल क्रांति एक संगठित रूप में तैयार की गई थी और इसमें अनेक आदिवासी समुदायों का समर्थन मिला था। यह भारत की स्वतंत्रता एवं स्वाधीनता की लड़ाई के लिए ऐतिहासिक पल था, जब पहली बार भारतीय आदिवासियों ने संगठनबद्ध रूप से अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन चलाया। यह आंदोलन न केवल उनके आर्थिक और सामाजिक हक़ों की मांग कर रहा था, बल्कि उनके स्वतंत्रता और अस्मिता के मुद्दे पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा था। संथाल की माटी के हज़ारों हज़ार आदिवासी शहीदों की याद में हर साल 30 जून को हूल दिवस मानते है