L19 Desk : एक तरफ पूरी दुनिया गांव छोड़कर शहरों का रुख कर रही है, वहीं दूसरी तरफ झारखंड के पुलिस अफसर उलटी चाल चल रहे हैं। अफसरों का रुख गांव की ओर बढ़ गया है। इनकी पहली पसंद ही ग्रामीण इलाके हैं। पुलिस अधिकारियों को गांव इतना ज्यादा भा रहा है कि अगर उन्हें ग्रामीण इलाकों में पोस्टिंग नहीं मिलती, तो वे नाना प्रकार के जुगाड़ लगाते हैं, सेटिंग लगाते हैं, सीनियर पुलिस अधिकारियों तक पैरवी लगाने से पीछे नहीं हटते।
गांव में भी वैसे ही इलाके, और वही थाने जहां पर इंट भट्ठी हो, बालू घाट हो, अफीम की खेती हो, स्टोन क्रशर प्लांट हो, कोयला खदानें हों, उसका कारोबार चलता हो, इत्यादि। शहर उन्हें बिल्कुल रास नहीं आता। केवल वही लोग शहरी थानों में ड्यूटी करते हैं जिनका जुगाड़ नहीं लग पाता।
ये सारे तथ्य एक रिपोर्ट में सामने आये हैं। दरअसल, राजधानी रांची के विभिन्न थानों में काम करने वाले पुलिस पदाधिकारियों की संख्या की जब रिपोर्ट खंगाली गयी, तो ऐसे कई तथ्यों का खुलासा हुआ। रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में कई ऐसे थाने हैं, जहां स्वीकृत पद से भी ज्यादा पदाधिकारी तैनात हैं। जबकि शहर के थानों में कई पद खाली पड़े हैं। शहरी इलाकों में एक भी ऐसा थाना नहीं है, जहां जितनी संख्या में स्वीकृत पद हैं, उसके अनुसार पुलिस पदाधिकारियों की पोस्टिंग हुई हो।
क्या है वजह ?
शहरी इलाकों में पोस्टिंग की कमी की वजह वर्क लोड को माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि चूंकि, राजधानी रांची के शहरी थानों में वर्क लोड ज्यादा हो जाता है, काफी संख्या में लोग आवेदन लेकर आ जाते हैं, जिससे दारोगा और एएसआई केस तले ही दबे रह जाते हैं। उनसे इतनी ज्यादा संख्या में केस हैंडल नहीं हो पाता, और तो और प्रेशर भी बहुत होता है, इसलिये वे शहरों में ड्यूटी नहीं करना चाहते। लिहाज़ा, ज्यादातर पदाधिकारी ग्रामीण इलाकों की ओर रुख करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, एक-एक पदाधिकारी के ऊपर 25 से ज्यादा केस के अनुसंधान की जिम्मेदारी होती है। समय की कमी के कारण अनुसंधान के स्टैंडर्ड और क्वालिटी में अभाव देखने को मिल रहा है। सही तरीके से सबूत इकट्ठा नहीं हो पा रहे, क्योंकि उसके लिये पर्याप्त समय चाहिये। इस वजह से आरोपी की गिरफ्तारी में भी देरी होती है, और तो और कई बार सज़ा दिलाने में कामयाबी भी हाथ नहीं लगती। ज्यादातर आरोपी जेल जाने के कुछ दिन बाद ही छूट जाते हैं।
घटना दुर्घटना के बाद क्विक रिस्पॉन्स भी नहीं आ पाता, पासपोर्ट और कैरेक्टर वेरिफिकेशन में भी समय लग जा रहा है। शहरों में इतने सारे मामले हैं कि उन्हें सब कुछ कंट्रोल करना है। लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन करना है, वीआईपी और वीवीआईपी के यहां पर जब कभी ड्यूटी लग जाती है और उसके बाद तो पता नहीं चलना कि कब दिन हुई, कब शाम, वहीं, धरना या विरोध प्रदर्शन को भी कंट्रोल करना है, मतलब बहुत समस्या है, क्योंकि शहरों के लोग जागरूक जो होते हैं।
वहीं, क्योंकि गांव के लोगों तक उतनी शिक्षा आज भी नहीं पहुंची है, उतनी जागरूकता नहीं होती, इसलिये पुलिस पदाधिकारी गांव में ही शांति से पोस्टिंग चाहते हैं। यहां तक तो ठीक है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर गांवों में भी चुनकर ऐसे ही इलाके क्यों जहां पर इंट भट्ठी हो, कोयला खदान या बालू घाट हो, अफीम की खेती होती हो ? क्या ये किसी बड़े भ्रष्टाचार की तरफ इशारा तो नहीं ?