L19 Desk : झारखंड में इनदिनों आपको पोस्ते से जुड़ी खबर, सोशल मिडिया या न्यूज़ पेपर के माध्यम से हर दूसरे दिन देखने को मिल रही होगी, जिसमें कभी पुलिस के द्वारा 62 एकड़ में फैली पोस्ते की खेती को उजाड़ दिया जाता है, तो कभी इससे भी अधिक 612 एकड़ में लगी पोस्ते की फसल को नष्ट कर दिया जाता है। आखिर क्यों ? यह भी तो फसल ही है, तो फिर क्यूँ पोस्ते की ही फसल को चुन चुनकर खत्म किया जा रहा है? रहा सवाल पोस्ते का, तो इसकी खेती पर आखिर बैन क्यों लगा है? और इससे भी बड़ा सवाल तो यह है कि जब झारखंड समेत अन्य राज्यों में पोस्ते की खेती करना मना है, तो फिर क्यूँ लोग अपनी जान को जोखिम में डालकर घने जंगलों में छुप-छुपाकर इसकी खेती करने को मजबूर हैं?
दरअसल, झारखंड में अफीम, जिसे लोग पोस्ते के रूप में जानते हैं, इसकी खेती को लेकर हर किसी के मन में बहुत से सवाल होते हैं. क्यूंकि बहुत से लोग यह नहीं जानते की पोस्ते से अफीम का क्या लेना-देना हैं। तो पहले हम यह क्लियर कर दें, कि आमतौर पर आप जिस पोस्ते को सब्जी या चटनी बनाकर खाते हैं, असल में इस पौधे के फल से एक तरल पदार्थ निकलता है, जिसको सूखाकर अफीम तैयार किया जाता है, और इसे बेचने पर अच्छी–खासी कीमत मिलती है।
हालांकि, अफीम का उपयोग कई तरह की दवाइयां बनाने के लिए भी किया जाता है. लेकिन इसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा नशा करने के लिए ड्रग्स के रूप में भी किया जाता है. इस वजह से इसकी खेती को अवैध माना गया है.
अगर कोई भी इसकी खेती करता है, तो उसे दण्डित करने के साथ-साथ उसके द्वारा किये गये अफीम की खेती को भी नष्ट कर दिया जाता है, जैसा कि इस वक्त तमाड़, बुंडू, खूंटी जैसे राज्य के कुछ हिस्सों में हो रहा है। रांची जिले के कई इलाकों में अवैध तरीके से अफीम की खेती के खिलाफ रांची पुलिस के द्वारा चल रहे अभियान के तहत अब तक करीब हजारों एकड़ में लगी फसलों को नष्ट कर दिया गया है।
वहीं, जब सरकार ने पोस्ते यानि अफीम की खेती पर पूरी तरह बैन लगा दिया है, फिर भी लोग इतना जोखिम लेकर भी इसकी खेती करने पर विवश क्योँ हो गये हैं? दरअसल, इसका कारण है, गरीबी,बेरोजगारी, जागरूकता की कमी। इससे भी बड़ा कारण है कम लागत में ज्यादा मुनाफा। क्यूंकि पोस्ते की खेती में अधिक निवेश की आवश्यकता नहीं होती और यह अच्छी तरह से उगने पर अधिक मुनाफा देता है. इस वजह से किसान इसकी खेती करने पर विवश हो गये हैं ताकि उन्हें उचित मुनाफा हो सके। इसलिये, अक्सर पोस्ते की खेती ज्यादातर वैसे जगहों पर की जाती है, जहाँ की जमीन पर अन्य फसलें ठीक से नहीं उग पाती हैं।
सरकार को इस विषय पर विचार-विमर्श करने की अधिक आवश्यकता है. हालांकि, अफीम की खेती के लिए वित्त मंत्रालय की ओर से लाइसेंस लेना पड़ता है, लेकिन यह लाइसेंस भी हर जगह के लिए नहीं मिल पाती है, क्योंकि इसकी खेती चुनिंदा जगहों पर ही हो सकती है। किसान कितनी जमीन पर इसकी खेती कर सकते हैं, यह भी सरकार ही तय करती है। यही कारण है कि इतने सारे ताम-झाम से बचने के कारण आज लोग लाइसेंस लेने के लिए नहीं सोंचते, और गुपचुप तरीके से खेती करने पर मजबूर हो गये हैं। यह बहुत ही गंभीर मामला है जिसे जल्द से जल्द सुलझाने की जरुरत है।