l19/DESK : 15 अगस्त को देश में आजादी का 78 वर्षगांठ बड़ी धूमधाम से मनाया गया, लेकिन देश में आज एक वर्ग ऐसा भी है, जो खुशियां नहीं, बल्कि शोक मना रहा है। देशभर में कल रात 11 बजकर 55 मिनट पर ‘रिक्लेम द नाइट’ नाम का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। इसका मतलब है- रात पर अपना अधिकार हासिल करना। इस प्रदर्शन को आजादी की आधी रात में महिलाओं की आजादी की खातिर प्रदर्शन का नाम दिया गया है। साल 2012 में निर्भया कांड के बाद भी देशभर में कई जगहों पर ‘रिक्लेम द नाइट’ प्रदर्शन किया गया था। ये प्रदर्शन दरअसल, कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल में बीते दिनों एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई रेप और मर्डर की घटना के विरोध में किया जा रहा है। इसका असर अपने राज्य झारखंड में भी पड़ रहा है। रिम्स के जूनियर डॉक्टर्स भी हड़ताल पर उतर आय़े।
आज के दिन साल 1947 को हमारा देश भारत अंग्रेजों से तो आजाद हो गया था, लेकिन क्या वाकई में भारत के अलग अलग वर्गों को आजादी मिल पायी है ? देशभर की महिलाओं के आंखों में स्वतंत्रता दिवस के दिन बस एक ही सवाल है, हमें कब मिल रही है आजादी, गुलामी से, समाज की घिनौनी मानसिकता से, अत्याचार से, पाबंदियों से, हिंसा से, समाज की बेड़ियों से. अगर मेडिकल कॉलेज जैसी जगहों पर भी महिलायें सेफ नहीं है, तो पेरेंट्स किस भरोसे अपनी बेटियों को पढ़ने के लिये बाहर भेजें ?
दरअसल, कोलकाता के राधा गोबिंद कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल में बीते 8-9 अगस्त की रात को 31 वर्षीय ट्रेनी डॉक्टर के साथ जो रेप और हत्या की घटना सामने आयी, उसने दरिंदगी और हैवानियत की सारी सीमायें लांघ दी। इसका खुलासा तब हुआ जब कॉलेज के सेमिनार हॉल से उसकी लाश बरामद की गयी। वारदात की रात को वह तीन और डॉक्टर्स के साथ नाइट ड्यूटी पर थी। इनमें से दो डॉक्टर दूसरे विभाग में थे, और एक ट्रेनी थी। सभी डॉक्टर्स और कर्मचारियों ने साथ में रात का खाना खाया था। इसके बाद महिला डॉक्टर रात को करीब दो बजे सोने के लिये अस्पताल के सेमिनार हॉल में चली गयी। इसके बाद संजय रॉय नाम का आरोपी पीछे के रास्ते से इस सेमिनार हॉल में आय़ा। उसने पहले ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप किया, इससे भी उसका जी नहीं भरा तो उसने निर्ममता से डॉक्टर की हत्या भी कर दी। आरोपी को सुबह करीब पौने पांच बजे सेमिनार हॉल से बाहर निकलते हुए देखा गया. बताया जा रहा है कि वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी ने सबूतों से छेड़छाड़ करने की कोशिश भी की थी। पुलिस को ऐसे सबूत मिले हैं जिनसे पता चलता है कि आरोपी ने घटनास्थल से खून के धब्बे धोने की कोशिश की थी. वापस घर जाने के बाद उसने अपने कपड़े भी धोए थे।
हैरानी की बात ये है कि ये आऱोपी न तो अस्पताल का स्टाफ था, न ही किसी मरीज का कोई रिश्तेदार। वह कोलकाता पुलिस के लिये सिविक वॉलिंटियर का काम करता था। इस मेडिकल कॉलेज में जब कोई पुलिसकर्मी भर्ती होता, तो संजय रॉय उसकी दवाइयां लाने के लिए और उसकी दूसरी मदद के लिए असिस्टेंट के तौर पर मौजूद रहता था,लेकिन जिस दिन ये घटना हुई, उस दिन आरोपी किसी काम से अस्पताल नहीं आया था। उस दिन ये अस्पताल के पीछे वाले हिस्से में शराब पीने के लिए आया और शराब पीने के बाद अपने मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देखे थे। उसके बाद आरोपी ने वारदात को अंजाम दिया. इस घटना के सामने आने के बाद संजय रॉय 10 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोपी के खिलाफ बलात्कार के लिये BNS की धारा 64 और हत्या के लिए BNS की धारा 103 के तहत केस दर्ज किया गया है। वहीं, कल कोलकाता हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान ममता सरकार की कार्यवाही पर सवाल उठाए। अदालत ने ममता बनर्जी की सरकार को फटकार लगाते हुए मामले को CBI को सौंप दिया। एक बात यहां गौर करने वाली थी कि सीबीआई को केस सौंपते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ‘इस बात की पूरी संभावना है कि पुलिस की जांच में सबूत मिटा दिए जाएंगे।
ऐसा इसलिये क्योंकि, इस घटना के बाद कोलकाता पुलिस का जो रुख था, उसने पुलिस प्रशासन को संदेह के घेरे में ला दिया। आरोप लग रहे हैं कि कोलकाता पुलिस ने जांच नहीं बल्कि लीपा-पोती की है। पहले डॉक्टर के घरवालों को बताया गया था कि बेटी ने सुसाइड कर लिया, फिर अस्पताल बुलाया और तीन घंटे तक बैठाकर रखा, जबकि पीड़िता की हालत देखकर साफ अंदाजा लगाया जा सकता था कि उसके साथ हत्या ही नहीं, बल्कि दरिंदगी को भी अंजाम दिया गया है।
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में महिला डॉक्टर के प्राइवेट पार्ट पर गहरा घाव मिला था। गला घोंटने से थायराइड कॉर्टिलेज टूट गया. इतनी तेजी से हमला किया गया था कि चश्मे के शीशे के टुकड़े आंखों में धंस गए। उसकी दोनों आंखों और मुंह से खून बह रहा था। चेहरे पर आरोपी के नाखून के निशान भी मिले। सिर को दीवार पर पटका गया, ताकि वह चिल्ला ना सके. मतलब जिस हैवानियत से डॉक्टर को मारा गया, दावा किया जा रहा है कि आरोपी केवल एक नहीं, बल्कि कुछ और लोग भी हो सकते हैं। दावा है कि महिला डॉक्टर से रेप नहीं, बल्कि गैंगरेप हुआ है। ऐसे मे सवाल उठ रहे हैं क्या कोलकाता पुलिस बाकि आरोपियों को बचाने की कोशिश कर रही है ? क्या केस की शुरुआती जांच में पुलिस ने केस के सबूतों से छेड़छाड़ कर दी है, जिससे सीबीआई को आगे परेशानी होगी? क्या और भी गुनहगारों को बचाने के लिए पश्चिम बंगाल में सबूतों से खिलवाड़ हुआ है?
सवालों के घेरे में कॉलेज प्रबंधन से लेकर ममता बनर्जी की सरकार भी है। दरअसल, डॉक्टर्स के आंदोलन के बाद मे़डिकल कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष ने 12 अगस्त को इस्तीफा दिया। इसके कुछ ही घंटे बाद ममता सरकार ने प्रिंसिपल संदीप घोष का ट्रांसफर, नेशनल मेडिकल कॉलेज कर दिया। ऐसे में ममता सरकार से पूछा जाने लगा कि प्रिंसिपल पर आखिर इतनी मेहरबानी क्यों ? पहले तो इतनी विभत्स घटना के बावजूद उन्हें हटाया नहीं गया, फिर जब प्रिंसिपल अपने पद से इस्तीफा दे देते हैं, तो तुरंत नयी नियुक्ति क्यों ? हालांकि, डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन के बाद नयी नियुक्ति को रोकना पड़ गया।
लेकिन सवाल अब भी यही है कि क्या तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष इस मामले में वो कड़ी हैं, जिसका लिंक कहीं और है? क्या संदीप घोष के पास कोई राज़ तो नहीं ? सवाल इसलिये भी उठ रहे हैं क्योंकि कल सीबीआई को जांच की जिम्मेवारी सौंपे जाने के तुरंत बाद ही कॉलेज के उस सेमिनार हॉल के पास निर्माण का काम शुरु हो गया, क्या ये सब इसलिये ताकि रेप और कत्ल से जुड़े सबूत मिटाये जा सकें?
हालांकि, जब तक जांच की प्रक्रिया चल रही है, तब तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता, लेकिन इतना तो जरूर समझ में आ रहा है कि इतनी भयावह घटना के बावजूद एक महिला को न्याय दिलाने से ज्यादा हैवानियत को छिपाने की कोशिश की जा रही है, हर वो प्रयास किये जा रहे हैं, ताकि ये बर्बरता जिंदा रह सके। औऱ आखिर में महिलाओं को ही ये सुनने को मिल जाये कि उन्हें नाइट शिफ्ट में ड्यूटी नहीं करना चाहिये, वे 21वीं सदी में भी डर के साये में जीती रहें।