L19 DESK : राजधानी रांची में जमीन के गोरखधंधे में सिर्फ अंचल कार्यालय ही नहीं, बल्कि रजिस्ट्री दफ्तर (अवर निबंधक कार्यालय शहरी और ग्रामीण), रांची जिले के रिकार्ड रूम के दो कर्मी और बिचौलिये शामिल हैं। अब तक सिर्फ अंचल कार्यालय के अंचल अधिकारी, हल्का कर्मचारी, अंचल निरीक्षक और अवर निबंधक स्तर के अधिकारियों के साथ जमीन बिचौलियों का नाम सामने आ रहा था। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मोहरा यानी रिकार्ड रूम के कर्मी सामने नहीं आ रहे थे।
दोनों हैं फरजी दस्तावेज बनाने और पंजी-2 में दस्तावेजों को संलग्न करने में माहिर
इन पर ईडी की नजरें इनायत है। रिकार्ड रूम के दो कर्मी विजय कुमार और प्रभात कुमार ही सबसे बड़े खिलाड़ी हैं। ये दोनों पैसे लेकर रिकार्ड रूम में पंजी-2, खतियान, कंटीन्यूअस खतियान, पुराने हुकुमनामा, रजिस्टर्ड डीड तथा अन्य दस्तावेजों में छेड़ छाड़ कर उसे नया रूप दे देते हैं। इन लोगों का कॉकस इतना जबरदस्त है कि हरेक जमीन बिचौलिया इन्हें जानता है। सिर्फ रिकार्ड निकालने का ही ये तीन से पांच हजार रुपये लेते हैं।
मूल रैयतों की जगह फरजी रैयतों का नाम जोड़ने का काम करते थे
इसके अलावा पंजी-2 से पेज फाड़ना, मूल रैयतों की जगह फरजी रैयतों का नाम जोड़ने, पुराने डीड अथवा परचे पर उसी तरह की हैंडराइटिंग से नये पेज जोड़ देने की कला में ये माहिर हैं। प्रवर्तन निदेशालय की जांच में इस बात का खुलासा हुआ है। दोनों रिकार्ड रूम के कर्मी पिछले एक दशक स अधिक समय से जमे हैं। राजधानी रांची के बरियातू रोड में सेना के कब्जे वाली 4.55 एकड़ और चेशायर होम रोड में एक एकड़ जमीन की खरीद-बिक्री के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच में बड़ा इसका खुलासा हुआ।
भूमि माफिया ने वर्ष 1932, 1933 और 1948 के दस्तावेजों में हेरफेर की है
ईडी ने कोलकाता स्थित रजिस्ट्री कार्यालय के दस्तावेजों की फारेंसिक जांच करवाई है। इसमें जमीन माफिया की करतूत और फर्जीवाड़े का राज दीमकों ने खोल दिया है। पता चला है कि भूमि माफिया ने वर्ष 1932, 1933 और 1948 के दस्तावेजों में हेरफेर की है। जमीन के स्वामित्व में भी छेड़छाड़ की गई है। फॉरेंसिक जांच में पाया गया है कि 88 साल पुराने लैंड रिकार्ड के लगभग सभी पन्नों में दीमकों ने सूक्ष्म छेद कर दिए हैं। कुछ शब्द ऐसे मिट चुके हैं कि पढ़ पाना भी मुश्किल है। लेकिन, असली दस्तावेजों के बीच-बीच में कुछ पेज बैक डेट से जोड़े गए हैं, जो सही सलामत हैं। उनमें छेद भी नहीं हैं और लिखावट भी ठीक है। यह सिलसिला पिछले एक दशक से अनवरत जारी है।
जमीन का फरजी दस्तावेज बना कर किया करोड़ों का गेम
क्योंकि किसी भी तरह का फरजी दस्तावेज बनाने में माहिर अफसर अली को पुलिस-प्रशासन का जबरदस्त शह मिला हुआ था। उसका कनेक्शन बिट्टू सिंह और मो सद्दाम जैसे अपराधी से भी था। इतना ही नहीं इसका फायदा उठा कर ही अफसर अली ने कई तरह के गोरखधंधे किये। वह रिम्स के रेडियोलाजी डिप्राटमेंट में रेडियोग्राफर था, पर उसके शातिर दिमाग ने राजधानी में कई सौ एकड़ जमीन का फरजी दस्तावेज बना कर करोड़ों का गेम कर दिया।
स्याही- लिखावट में भी अंतर, बैक डेट से पेज जोड़े
ईडी ने कोलकाता रजिस्ट्री ऑफिस के दस्तावेजों को देखा तो कई पन्नों में छेड़छाड़ की आशंका हुई। अधिकांश पेज डैमेज थे, पर कुछ पेज एकदम ठीक थे। इसके बाद ईडी ने लैंड रिकॉर्ड की फारेंसिक जांच कराई। जांच में यह साबित हो गया कि कुछ पेज बैक डेट से जोड़े गए हैं। इन पन्नों की स्याही और लिखावट भी पुराने से भिन्न है