· पंजी-2 और आजादी के पहले के वसीयतनामा में किया जाता है छेड़छाड़
· हल्का कर्मचारी, सीओ, जमीन ब्रोकरों का है राज्य स्तरीय गैंग
L19/Ranchi : राजधानी रांची के विभिन्न अंचलों में जमीन के मूल दस्तावेजों में छेड़छाड़ करना, फरजी हुकुमनामा और अन्य जाली कागजातों के आधार पर हजारों एकड़ जमीन बेच दी गयी है। यह खेल झारखंड अलग राज्य बनने के बाद तेजी से बढ़ा है, क्योंकि सभी लोगों को रांची में जमीन चाहिए। चाहे वह अफसर हों, कर्मचारी हों या सरकार का कोई नुमाईंदा। जमीन के दस्तावेजों में छेड़छाड़ की घटना का इजाद 2005 के बाद से ही शुरू हो गया था।
इसमें वैसे हल्का कर्मचारियों अब राजस्व उप निरीक्षक शामिल हैं, जो शुरू से ही नावल्द, गैर मजरुआ मालिक, वैसी जमीन जो आजादी के पहले वसीयतनामा अथवा हुक्मनामा के जरिये बेची गयी है की तलाश में रहते थे। इसके सबसे बड़े मास्टर माइंड चुरचू अंचल के प्रभारी सीओ शशि भूषण सिंह रहे हैं। ये शख्स पहले हल्का कर्मचारी थे। इन्होंने अपने लिए एक गैंग बनायी, जिसमें पैसे वाले फायनांसर, जमीन दलाल, पत्रकार और दागी अधिकारी शामिल थे।
इनके यहां अंचल निरीक्षक, अंचल अधिकारी, अपर समाहर्ता, भूमि सुधार उप समाहर्ता समेत कई उपायुक्तों के फरजी मोहर हैं। इस शख्स को ही बड़गाई अंचल के हल्का कर्मचारी भानू प्रताप अपना गुरू मानते थे। यह शख्स झारखंड राजस्व उप निरीक्षक संघ का महासचिव भी रहा है। इसलिए राज्य भर में जमीन के फरजीवाड़ा करने में इसने अपना गैंग बना कर रखा है। इसके पास फरजी हस्ताक्षर करनेवालों की टीम है, जो किसी का सिग्नेचर हु-ब-हू उतार सकते हैं।
इनसे ही अब्सू खान ऊर्फ अफसर अली, तल्हा खान, इम्तियाज अहमद और अन्य ने गुर सीखे और फरजी डीड बनाने का चोखा धंधा अपनाया। वैसे फरजी डीड बनानेवाले अधिकतर जमीन ब्रोकरों में एक खास जमात के लोग अधिक शामिल हैं, जो कोलकाता डीड के आधार पर कोई भी काम करा सकने की ताकत रखते थे। इन्होंने सेना के कब्जेवाली जमीन ही नहीं, बल्कि बूटी मोड़ रांची के मेदिका अस्पताल के सामनेवाली जमीन, होटवार, नामकुम, मांडर, मोरहाबादी, एदलहातू, कांके तथा अन्य जगहों की प्राइम लोकेशन की जमीन बेच डाली।
कैसे होता है पूरा खेल
फरजी दस्तावेज अथवा डीड का खेल निबंधन से शुरू होता है। किसी भी प्राइम लोकेशन की जमीन का निबंधन पहले कराया जाता है। उसमें लगाये जानेवाले दस्तावेजों को ऐसा तैयार किया जाता है कि अवर निबंधन कार्यालय भी उसे एक झटके में नहीं पकड़ सकता है। इसके लिए अवर निबंधक कार्यालय में पहले से ही सेटिंग कर दी जाती है। एनआइसी जिसके तहत जमीनों की ऑनलाइन वस्तुस्थिति जानने का अधिकार है, वहां के कर्मी से सेटिंग कर निबंधन के समय जमीन का फरजी रसीद कुछ देर के लिए दिखा दिया जाता है, ताकि अवर निबंधक अपना हस्ताक्षर कर दें।
इसके बाद संबंधित अंचल कार्यालय में सीओ और हल्का कर्मचारी से सेटिंग कर जमाबंदी खुलवा दी जाती है। ऐसे सेना के कब्जेवाली बरियातू रोड की जमीन, सिरमटोली की जमीन, चेशायर होम रोड की जमीन, बरियातू मौजा में भुंईहरी नेचर की पांच एकड़ से अधिक जमीन जिसमें पल्स अस्पताल से लेकर अन्य अस्पताल बने हुए हैं शामिल हैं। इसके अलावा पंजी-2 में गड़बड़ी कर खाता 192 की नामकुम रिंग रोड की 6.75 एकड़ जमीन भी शामिल है।
इसमें शशिभूषण सिंह का सारा रचा हुआ खेल है। रिंग रोड की इस जमीन को 102 लोगों को भारी रकम में बेचा गया। अब यह सारा मामला रांची के प्रवर्तन निदेशालय के कार्यालय में भेजा गया है। ईडी ने सेना के कब्जेवाली भूमि को अटैच करते हुए अब तक पूर्व उपायुक्त छवि रंजन समेत 10 लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया है।
जानकारी के अनुसार यह गिरोह पंजी-2 में गलत तरीके से लगान निर्धारण मुकदमा संख्या दर्ज कर देता है। फिर उसकी साफगोई से नयी पेज बनायी जाती है और पंजी-2 में उसे जोड़ दिया जाता है, ताकि सत्यापन में किसी तरह की परेशानी न हो। उदाहरण के तौर पर डुंगरी मौजा की यह जमीन जो मूल रूप से अनुसूचित जाति संवर्ग की थी, उसकी जगह पर लाल भानू नाथ शाहदेव, लाल रंधीर नाथ शाहदेव, लाल हरिहर नाथ शाहदेव और अन्य लिख दिया। इनके पिता का नाम स्वर्गीय हलधर नाथ शाहदेव अंकित कर दिया।
पंजी-2 के सभी पन्नों नें 64-65, 66-67 अंकित है, जबकि 192 नंबर खाता में 77 -78 अंकित किया गया है। इसके बाद का खाता फिर से 66-65 और 66-67 से शुरू हुआ है. साजिशकर्ता ने तुपुदाना के रहनेवाले पप्पू लाल शाहदेव और अन्य को फरजी तरीके से खड़ा कर नायक लोगों की जमीन की गलत रजिस्ट्री फेक कागजातों पर की। इसके लिए उसने न सिर्फ पंजी-2 में छेड़छाड़ की. बल्कि जमाबंदी से लेकर लगान तक का निर्धारण खुद किया।
इतना ही नहीं अंचल कार्यालय से जमाबंदी नहीं खुलने की स्थिति में भूमि सुधार उप समाहर्ता कार्यालय अथवा उपायुक्त क न्यायालय में फरजी मुकदमा कर जमाबंदी कायम करा दी जाती है। सेना के कब्जेवाली जमीन के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ। सारा कुछ उपायुक्त के इशारे पर किया गया।
नगर निगम तक की फरजी रसीद निबंधन के समय कारोबारी विष्णु अग्रवाल को जमीन बेचनेवाले प्रदीप बागची, दिलीप घोष और अन्य ने लगाये। इसका सारा कागजात हल्का कर्मचारी भानू प्रताप ने तैयार किया था। भानू प्रताप को इसके बदले में बड़गाई अंचल में ही सेना के कब्जेवाली जमीन के बगल में चार डिसमील जमीन दी गयी थी, जिसकी कीमत एक करोड़ से अधिक बतायी जाती है। यानी जिस अंचल में सरकारी कर्मचारी कार्यरत हैं, उसी अंचल में वह जमीन भी ले रहा है।
इससे पहले शशिभूषण सिंह ने नामकुम अंचल में रहते हुए रामपुर हाट, ओबरिया रोड, सिंहमोड़ के हेसाग स्थित गैरमजरूआ जमीन जिसका खाता संख्या 210 और प्लाट संख्या 1079 है को अपने परिजनों के नाम से जमाबंदी खुलवाया। इसकी जांच के लिए इडी में शिकायत की गयी है।