L19 Desk : झारखंड की राजधानी रांची बस कहने के लिये राजधानी है, क्योंकि राजधानी जैसी यहां कोई व्यवस्था ही नहीं है। ये बात हम कल हुई घटना के संदर्भ में कह रहे हैं। दरअसल, बीते कल 5 फरवरी को राजधानी रांची के मांडर थाना के मुरगू पुल स्थित मालटोटी डायवर्जन पर से एक बड़ी एक्सीडेंट की खबर सामने आती है, कोयला लदे ट्रक की चपेट में आने से सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड के दो स्टूडेंट्स की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो जाती है।
अब उनकी मौत के बाद जो प्रदर्शन हुआ, लाठीचार्ज हुआ, इन सबको एक बार के लिये साइड कर दें, और फोकस करें सड़क दुर्घटना और मौत की वजह पर, तो आपको बड़ी हैरानी होगी। जैसा कि हमने आपको बताया एक्सीडेंट की ये घटना मुरगू पुल में हुई है। और ये पुल सालों से जर्जर अवस्था में है, जो बारिश आने पर बार बार बह जाता है। ये पुल एनएच 75 के तहत मुरगू नदी के लगभग 30 फीट ऊपर स्थित है। कहने के लिये तो पुल है, और एनएच 75 का हिस्सा है, लेकिन असल में ये केवल ये जर्जर और खतरनाक कच्चा सड़क है, जो एक्सिडेंट ज़ोन में तब्दील हो चुका है। इस मुरगू पुल को आप “मौत का पुल” जो सीधे आपको ऊपरवाले से कनेक्ट करता है।
5-6 सालों से चल रहा है मुरगू पुल का निर्माण, बारिश में हर बार बह जाता है ब्रिज
इस पुल का निर्माण पिछले करीब 5-6 सालों से अब तक हो ही रहा है। ट्रैफिक मूवमेंट के लिये केवल अस्थायी रूप से डायवर्सन बना दिया गया है। क्योंकि ये जर्जर मुरगू पुल नेशनल हाईवे का हिस्सा है, इसलिये लोहरदगा, पलामू, गढ़वा, लातेहार जैसे दूसरे जिलों को भी कनेक्ट करता है। पुल के साथ-साथ मुरगू से लेकर मालटोटी तक लगभग 2 किलोमीटर सड़क की स्थिति भी भयावह है। सड़क पर बड़े-बड़े गढ्ढे हो गए हैं, जहां आए दिन दुर्घटनाएं होती रहतीं हैं। इसी पुल से होकर कई बड़ी और भारी भरकम मालवाहक गाड़ियां गुज़रती हैं, लेकिन सड़क इतनी ज्यादा जर्जर अवस्था में है, कि एक्सीडेंट होना तय है। पिछले दिनों भी कुछ ऐसा ही हुआ।
क्या थी पूरी घटना ?
हुआ यूं कि सीयूजे के ब्रांबे वाले कैंपस के होस्टल में रहने वाले दो स्टूडेंट्स बाइक पर सवार होकर मनातू वाले कैंपस जा रहे थे। जब वे एनएच 75 के तहत मुरगू नदी पर निर्माणाधीन पुल के पास बने डायवर्सन को क्रॉस कर रहे थे, उस दौरान उनके पीछे चल रहे कोयला लदे ट्रक जिसका गाड़ी नंबर JH01DF0384 था, उसने उनकी बाइक को धक्का मार दिया. इससे असंतुलित होकर दोनों सड़क पर गिर गये और ट्रक के नीचे ही कुचलाकर दोनों की मौके पर ही मौत हो गयी। जबकि हादसे के वक्त दोनों विद्यार्थियों ने हेलमेट पहन रखा था, मगर फिर भी जान से हाथ धो बैठे।
निर्माणाधीन पुल पर कोई वार्निंग नहीं
हैरानी की बात ये है कि राजधानी रांची के इस पुल में बने डायवर्सन पर कोई साइनबोर्ड तक नहीं है, न ही पुल पर चल रहे निर्माण कार्य को लेकर ही कोई साइन बोर्ड लगा है, जो आपको सावधान करे। पुल के दोनों तरफ कोई रेलिंग भी नहीं लगी है, यानि पुल से गुज़रते वक्त कब आपका पांव या आपकी गाड़ी फिसल जायेगा, और कब ऊंचाई से गिरकर आपकी मौत हो जायेगी, इसकी गारंटी नहीं ली जा सकत
अंधेरे के समयपुल की स्थिति होती है सबसे भयावह
पुल के लिये खोदे गये गड्ढे में छड़ और बोल्डर डालकर वैसे ही छोड़ दिया गया है, गड्ढे के दोनों तरफ 500 मीटर के दायरे में सड़क भी जर्जर हालत में है। रेलिंग न होने के कारण कभी भी इनकी चपेट में आकर लोग मौत का शिकार हो सकते हैं। सबसे ज्यादा खतरनाक स्थिति रात के समय की होती है, जब पूरी तरह अंधेरा छा जाता है, और आपको दिशा देने के लिये कोई स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था नहीं होती।
बीते दिनों जब दोनों छात्रों की मौत की खबर आने के बाद लोकतंत्र 19 की टीम घटनास्थल पर रिपोर्टिंग करने गयेी थी, उस दौरान हमारा कैमरा ओपन ही था, और उसी वक्त एक शख्स पुल से फिसलकर दूसरी तरफ गिर जाता है, गणिमत थी कि उसका हाथ पकड़कर उसे बचा लिया गया, वरना शायद यहां से गिरकर बच पाना नामुमकिन जैसा ही है। गिरने से उसके सिर में गंभीर चोट भी आयी। इतना ज्यादा खतरनाक है ये पुल।
15 महीने में 10 लोग मर चुके हैं पुल में
दुर्घटना की ये खबर कोई पहली बार नहीं आय़ी है, बल्कि आये दिन यहां पर मौतें होती रहती हैं। रिपोर्ट्स की मानें, तो 15 महीने के अंदर 10 लोगों की मौत हो चुकी है इस पुल पर, जबकि 18 लोग गंभीर रूप से घायल हुए, उनके हाथ पैर टूट गये। पिछले साल 2 अगस्त 2024 की देर रात को ही पुल पर बना डायवर्सन तेज पानी के बहाव में शुक्रवार की देर रात बह गया। उससे पहले अक्टूबर 2023 में भी डायवर्सन बह गया था, जिससे आवाजाही कई दिनों तक बाधित हो गयी थी।
कौन है मौत का ज़िम्मेदार ?
इसकी पूरी जिम्मेदारी नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) की है, जो लगातार अपनी लापरवाही, और गैर ज़िम्मेदाराना हरकतों के कारण छात्रों की जान ले ली। पहले तो पुल निर्माण का काम भूमि अधिग्रहण न हो पाने के कारण अटका रहा, लेकिन भूमि अधिग्रहित हो जाने के बावजूद निर्माण कार्य लटकाया जाता रहा। कभी पुल का ठेका लेने वाले ठेकेदार काम छोड़कर चले गये, कभी हाईवे अथॉरिटी दुबारा टेंडर जारी करने में ही सालभर का समय ले लेता है। और तो और चालाकी देखिये हाईवे अथॉरिटी की, डायवर्सन पुल बार बार बह जाता है, लेकिन टोल टैक्स की वसूली में कोई कंजूसी नहीं की जाती है।
इस पूरे मामले में जवाबदेही स्थानीय विधायक और सांसद की भी है, जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया। सवाल ये है कि आखिर कब तक इस पुल पर निर्माण का काम चलता रहेगा, कब तक मात्र एक जर्जर पुल के कारण लोग अपनी जानें गंवाते रहेंगे, सोंचिये जरा कि इस पुल के निर्माण और बेहतर सुरक्षा व्यवस्था से ही कितने लोगों की जान जाने से बच सकती है।