L19 DESK : झारखंड में दो दर्जन से ज्यादा अस्पताल सीइए लाइसेंस के बिना ही संचालित हो रहे हैं। सीइए लाइसेंस यानि कि क्लिनिकल प्रतिष्ठान अधिनियम (Clinical Establishment Act) के तहत सरकारी व निजी अस्पतालों, क्लीनिक्स, स्वास्थ्य केंद्रों और लैब को जारी किया जाने वाला लाइसेंस।
क्लिनिकल प्रतिष्ठान अधिनियम दरअसल, इस उद्देश्य के साथ लाया गया था ताकि देशभर में झोलाछाप डॉक्टरों पर लगाम लगाया जा सके। ये फर्जी डॉक्टर अक्सर लोगों के इलाज के दौरान उनके रोगों को दूर करने के बजाय उन्हें गंभीर रुप से रोगी बना देते हैं।वहीं, इलाज के नाम पर अस्पताल और निजी क्लीनिक्स मरीजों से मनचाहा रकम वसूलते हैं। इन सभी पर लगाम कसने के लिये सीइए अधिनियम लाया गया। इसके तहत अस्पतालों में दी जाने वाली सुविधाओं और सेवाओं पर सरकार की ओर से एक मिनिमम रेट निर्धारित किया जाता है।
इस लाइसेंस के बगैर कोई भी कंपनी अस्पताल या क्लीनिक नहीं चला सकता। अगर कोई ऐसा करता है तो अस्पताल या क्लीनिक पर जुर्माना लगाने या बंद करने का भी प्रावधान है। मगर इन सब के बावजूद राज्य भर में दो दर्जन से ज्यादा अस्पताल सीइए लाइसेंस के बगैर ही चल रहे हैं। इसका खुलासा राज्य के प्रतिष्ठित दैनिक अखबार प्रभात खबर ने की है।
इनमें से 8 ऐसे अस्पताल हैं जो बिना लाइसेंस के चल रहे हैं जिसमें कोडरमा का एक, पलामू का 3, रांची का 2 और सरायकेला का 2 अस्पताल शामिल है। वहीं 6 अस्पताल ऐसे हैं जिनके लाइसेंस की अवधि को समाप्त हुए 7,8 महीने से ज्यादा हो चुके हैं। इनमें चतरा का एक अस्पताल, पूर्वी सिंहभूम का 4 अस्पताल, और हजारीबाग का एक अस्पताल शामिल है। इसके अलावा, 8 अस्पताल ऐसे भी हैं जो नाम बदलकर अस्पताल चला रहे हैं और सिविल सर्जन कार्यालय ने इन्हें राहत भी दे दी है। इनमें प. सिंहभूम के 3, धनबाद के 3 और साहिबगंज के 2 अस्पताल शामिल हैं।
इसी में एक नाम रांची के दृष्टि नेत्रालय का भी है। दृष्टि नेत्रालय नाम के आई हॉस्पिटल को सीइए के तहत लाइसेंस जारी किया गया था। लेकिन पता चलता है कि ये हास्पिटल दृष्टि नेत्रालय के नाम से नहीं बल्कि दृष्टि आई हॉस्पिटल के नाम से अस्पताल चला रहा था। जब मामला पकड़ में आया तब सिविल सर्जन ऑफिस ने अस्पताल से स्पष्टीकरण की मांग की। अस्पताल ने जवाब नहीं दिया।
इसके बाद सिविल सर्जन ने पत्र के माध्यम से अस्पताल प्रबंधन को कहा कि प्रबंधन ने बिना सूचना दिये ही अस्पताल का नाम बदल दिया। ये नियम के विरुद्ध है। इसके लिये तत्काल प्रभाव से सीइए लाइसेंस रद्द किया जाता है। इसके साथ ही अस्पताल संचालक को एक हफ्ते के अंदर 50 हजार रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया। मगर एक हफ्ते के अंदर खेला बिल्कुल पलट गया। अस्पताल प्रबंधन की ओर से दृष्टि नेत्रालय के नाम से लाइसेंस जारी करने का आवेदन दिया गया, जिसे सिविल सर्जन कार्यालय ने स्वीकार कर लिया।
इससे पता चलता है कि राज्य के अस्पताल ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था भी भ्रष्टाचार के नक्शे कदम पर चल रही है। और तो और राज्य सरकार की ओर से ऐसे मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। राज्य सरकार केवल बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था देने की बात करती है, पर जब अस्पतालों में मरीजों से मनचाहा रकम वसूला जाता है, या अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही की वजह से मरीज की मौत हो जाती है, तब ये मौन हो जाती है।