पर्यावरण दिवस पर खास
L19 DESK: आज हम भले ही पर्यावरण दिवस बना रहे हो, पर जिनके हाथो में सौपा था झारखंड आज उन्ही हाथों ने पूर्वजो के संगी बुजुगों की फिर एक बार हत्या कर दी। आज हम किसी इन्सान रूपी क्रांतिकारी की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि हमारे पूर्वजो वीरो के संग अंग्रेजो से, जातिवाद पंखडो से लोहा लेने और आजादी तक के सफर में हर कदम पर साथ देने वाले कभी सुरक्षा कवच बन, कभी बानो के तीर बन, तो कभी प्रकृति के कहर से बचाने वाले वर्षों पुराने पेड़ की बात कर रहे हैं।
जिस झारखंड की पहचान उसके नाम पर छुपे अस्तिव को पूरी दुनिया ने माना और देखा। आज उसे ही विकास की होड़ में हमने झोक दिया । कभी स्मार्ट सिटी के नाम तो कभी स्मार्ट हाइवे के नाम पर।
राँची के अन्दर अगर आप निवास कर रहे हैं, तो आपने देखा होगा फालई ओवर ब्रिज के नाम पर सैकड़ो वर्ष पुराने विलुप्त प्रजाति के पेड़ हजारों की संख्या में काट दी गई हैं। हाल्कि सरकार चाहती तो इन पेड़ों को पुनः रोपण क्रिया कर इन पेड़ों कि महत्वा और पूर्वजों के इस विरासत को सँजो सकती थी,पर शायद हर बार सरकार को नए चीजों का दिखावा ही पसंद आता हो। आज के दिन में सभी स्कूल कॉलेज, राज्य, राष्ट्रीय, वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग, मृदा अपरदन, भूस्खंलन, वन्यमूलन पर बात करते हैं, पर आज सब देख कर भी मौन हैं। ऐसे में विकास के नाम पर पेड़ों को काटना किस हद तक सही है वो भी तब जब हमें पता हो कि राँची में बस1% पेड़ बचे हैं और 2023 के मई माह में राँची के 50% भूजल खत्म हो गया है । पर इस पर एकमत होना अभी बाकी है।
क्या आप जानते हैं ?
भारत सरकार ने पेड़ों की कटाई को लेकर संसद में एक आंकड़ा पेश किया था, जो कि काफी चौंकाने वाला है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने लोकसभा में बताया है कि सिर्फ वर्ष 2020-21 में ही देश के विभिन्न हिस्सों में 30 लाख 97 हजार 721 पेड़ काटे गए थे. लगभग 31 लाख. मंत्रालय ने वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के तहत इसकी मंजूरी दी थी।
जिसमें झारखंड के आँकड़े भी हैरान कर देने वाले हैं,
अनुबंध
“विकास परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई” के संबंध में डॉ. (प्रो.) किरिट प्रेमजीभाई सोलंकी द्वारा दिनांक 21.03.2022 को उत्तर के लिए पूछे गए लोक सभा तारांकित प्रश्न सं. 258 के भाग (क) और (ख) के उत्तर में उल्लिखित अनुबंध
वर्ष 2020-2021 के दौरान
राज्य /संघ राज्य क्षेत्र | एफसीए 1980 के तहत अनुमोदित प्रस्ताव में शामिल पेड़ों कि संख्या | प्रतिपूरक वनीकरण (सीए ) कि तुलना में लगाए गए पौधे | प्रतिपूरक वनीकरण के लिए धनराशि (करोड़ रुपए में ) |
झारखंड | 1,04,750 | 45,01,353.00 | 8.50 |
क्या आपको पता है? एक वयस्क पेड़ बनने में लगभग 10 वर्ष लग जाते हैं और सरकार जिन पौधों को लगाई थी उनकी जीवनकाल अधिकतम 10 वर्षों तक ही होती हैं, पर जिन वर्षों पुराने पेड़ों को कटा गया है, वे सभी पेड़ों का जीवनकाल 1000 वर्षों से अधिक का होता है, ये पेड़ प्रतिदिन 7 लोगों को जीवित रखते हैं लेकिन 10 वर्ष जीवित रहने वाले पौधों में इतनी क्षमता नहीं होती। एक पौधे को स्वस्थ पौधे बनाने के लिए 5 वर्ष लग जाते हैं।
हरियाली की जिम्मेवारी पूरे समाज की
सेंटर फॉर ग्लोबल डेलपमेंट के अध्ययन के अनुसार अगर पेड़-पौधे इसी आकड़ों के दर से खत्म होते रहे, तो 2050 तक भारत के क्षेत्रफल के बराबर जंगल नष्ट हो जाएंगे। अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि, रांची में 1% सतक पुराने पेड़ बचे हैं ,तो समझ लीजिए आपसभों की जीवनकाल कितनों दिनों कि हो सकती है। अगर इन खौफनाक आकड़ों को पर्यावरण के साथ समन्वय नहीं किया गया, तो रांची को KGF 2 फिल्म कि बस्ती बनने में देर नहीं लगेगी। इस वर्ष 2023 में सरकार के सूत्रों के अनुसार 26 करोड़ रुपए GO GREEN RANCHI के नाम पर खर्च किए जायेंगे पर ये बातें भी कहीं दस्तावेजों में सिमट कर किसी कोने में न रह जाए। रांची हो या पूरा झारखंड ये जिम्मेवारी सिर्फ सरकार के कामगारों कि नहीं अपितु पूरे समाज का दयित्वा है कि हम हर उस जगह को हरियाली से भर दे जहां इसकी सख्त जरूरत है।
आओ मिल के बचाएं रांची कि हरियाली ।
आओ मिलकर बचाएं झारखंड कि खुशहाली ।