l 19/DESK : 70,80 के दशक में एक फिल्म आई थी राम तेरी गंगा मैली…इस फिल्म की कहानी भले कुछ और हो इसके टाइटल से स्पष्ट था कि गंगा नदी मैली हो गई। ऐसा ही उदाहरण इन दिनों हमारे झारखंड में भी देखने को मिल रहा है जहां राजधानी रांची की प्रमुख नदी अब पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है। हम बात कर रहे हैं झारखंड की सोना उगलने वाली नदी के नाम से मशहूर स्वर्णरेखा नदी की जो अब पूरी तरह से मैली हो चुकी है। मैली तो हो ही चुकी है साथ ही साथ नाले में भी तब्दील हो गई है आसपास के क्षेत्र और कल कारखानों का कचरा नदी में गिर रहा है इससे पानी के बजाय चारों ओर झाग और कचरा फैला है इससे उठने वाली दुर्गंध की वजह से लोगों का सांस लेना मुश्किल है।
कभी स्वर्णरेखा नदी का महत्व ऐसा था कि सावन माह में पहाड़ी मंदिर पर स्थापित शिवलिंग पर इसी नदी का जल चढ़ता था। भक्त स्वर्णरेखा के चुटिया नामकुम घाट से जल उठाकर पैदल चलते हुए पहाड़ी मंदिर तक पहुंचाने थे और बाबा भोले का अभिषेक करते थे।अब नदी की दुर्दर्शा ऐसी है कि जल अभिषेक तो दूर श्रद्धालुओं का स्नान करना भी मुश्किल हो गया है।वैसे प्रदूषण आज की समस्या नहीं है आज से 50 साल पहले जब पूरा विश्व ग्लोबलाइजेशन और आधुनिकता के दौड़ में शामिल हुआ, तब से लगातार प्रदूषण की समस्या पूरे विश्व में देखने को मिलने लगी। यह प्रदूषण चाहे जल के रूप में हो, वायु के रूप में हो, मिट्टी के रूप में हो या अन्य प्रकार के रूप में….कहीं ना कहीं इसका नकारात्मक रूप वर्तमान में हमको आपको देखने को मिल रही है। जिस नदी में कभी बालू जमा करके उसमें से सोना निकाला जाता था पानी इतना स्वच्छ था की नदी के अंदर जमा बालू भी चमकता था।इस वजह से कई दशक से सावन में हजारों भक्तों का जुटान यहां होता था।
सावन माह में हर सप्ताह रविवार की रात स्वर्ण रेखा घाट पर मेला जैसा दृश्य होता था, लेकिन जैसे-जैसे नदी प्रदूषित होती गई भक्तों का मोह भंग होता चला गया अब नाम मात्र की महिलाएं ही यहां पहुंचती है पुरुष कांवरियों की संख्या भी बहुत कम हो गई है। नदी के गंदा होने से आसपास के इलाकों की व्यापार पर भी असर पड़ रहा है नदी में चारों ओर नाला का काला और बदबूदार पानी दिख रहा है पानी में झाग भी भरा हुआ है इसलिए भक्तों की संख्या लगातार कम होती जा रही है।