
L19 DESK : खाद्य आपूर्ति मंत्री रहते सरयू राय और उनके कुछ निकटस्थ लोगों पर प्रार्थी विनय कुमार सिंह ने आहार पत्रिका के प्रकाशन के नाम पर बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता के आरोप लगाये थे जिसे लेकर उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट में सरयू राय के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी। इस पर पिछले दिनों सुनवाई के बाद कोर्ट ने मामले को निष्पादित कर दिया। कोर्ट ने इसे भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला बताया। साथ ही प्रार्थी को यह छूट दी कि वह संबंधित जगह पर इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं। प्राथमिकी दर्ज न होने पर कोर्ट में फिर से याचिका दाखिल करने की भी अनुमति दी गयी थी।
इसी संदर्भ में बीते 3 अगस्त को प्रार्थी विनय कुमार सिंह ने रांची के धुर्वा थाना में अपने अधिवक्ता के साथ जाकर प्राथमिकी दर्ज कराने के लिये आवेदन दिया। अब इस मामले पर जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय का जवाब सामने आया है। विधायक ने पत्र के माध्यम से अपना पक्ष सबके समक्ष रखा है और प्रार्थी को जवाब दिया है।
सरयू राय ने पत्र के माध्यम से क्या कहा?
सरयू राय ने पत्र के माध्यम से प्रार्थी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि यह मामला कार्यालय की गोपनीयता को भंग करने तथा सरकारी दस्तावेजों को अनधिकृत रूप से प्राप्त करने, गलत नीयत से उसका उपयोग करने, धोखाधड़ी व सरकार की प्रतिष्ठा पर आघात का मामला है। इसकी गहराई से जांच कर दोषी का पता लगाकर उसके खिलाफ कानूनू कार्रवाई जरुरी है। यह पत्र उन्होंने डोरंडा थाना के पु.अ.नि सह अनुसंधानकर्ता सिद्धेश्वर मेहता के नाम लिखा है।
बकौल सरयू राय, “श्री वर्मा ने यह पत्र आपको दिनांक 02.05.2022 को भेजा और उसी दिन आपने विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कर लिया। धारा-41A के तहत उपर्युक्त विषयक नोटिस आपने मुझे 26.07.2023 को भेजा है। इस एक वर्ष से अधिक के अंतराल में इस कांड के अनुसंधान के दौरान आपको अवश्य ही ऐसे प्रमाण मिले होंगे, जिससे आप इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि प्रासंगिक दस्तावेज मैंने संबंधित कार्यालय के किसी कर्मी से गुप्त रूप से प्राप्त किया है और तद्नुसार धारा-41A के तहत नोटिस देकर आप मुझसे उस कार्यालय कर्मी का नाम जानना चाहते हैं और अनुसंधान के दौरान प्राप्त सूचना को संपुष्ट करना चाहते हैं। यदि ऐसा नहीं है तो धारा-41A में मुझे भेजे गये नोटिस में आपके द्वारा इन वाक्यों का प्रयोग किया जाना सर्वथा अनुपयुक्त एवं आपत्तिजनक है और बिना किसी साक्ष्य के मुझ पर दोष आरोपित करने जैसा है। आश्चर्य है कि एक वर्ष से अधिक की अवधि में इस कांड का अनुसंधान करने के दौरान आपने इसके अतिरिक्त किसी अन्य विकल्प पर गौर नहीं किया, जिसके माध्यम से ये दस्तावेज मुझ तक पहुँच सकते थे। अन्यथा धारा-41A की नोटिस के माध्यम से मुझसे पूछे गए आपके प्रश्नों की शब्दावली ऐसी नहीं होती।
प्रासंगिक काग़ज़ात मेरे पास किस प्रकार पहुँचे इस बारे में आपको सूचित करना चाहता हूँ कि एक जनप्रतिनिधि होने के नाते जब कभी मेरे पास कोई भी ऐसा विषय आता है जिससे सरकारी तंत्र का भ्रष्ट आचरण उजागर होता है, तो मैं उसे अधिकृत जाँच एवं कार्रवाई की अपेक्षा से सत्ता तंत्र के सक्षम प्राधिकार के समक्ष उपस्थापित करता हूँ और इन्हें सार्वजनिक भी करता हूँ। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब शासन तंत्र में भ्रष्ट आचरण करने वालों के विरूद्ध ऐसे ही प्राप्त सूचनाओं के आधार पर की गई मेरी शिकायत के कारण दोषियों को दंडित होना पड़ा है।
इस कारण अन्याय, अनियमितता, भ्रष्टाचार से क्षुब्ध सर्वसाधारण के बीच मेरे प्रति भरोसा पैदा हुआ है कि यदि मुझे सरकारी तंत्र में उच्च पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्ट आचरण की सूचना उपलब्ध होगी तो मैं इसके विरूद्ध कार्रवाई हेतु यथाशक्ति प्रयत्न करूँगा। इस उम्मीद से लोग मेरे पास आकर, मुझसे मिलकर ऐसी सूचनाएँ देते हैं अथवा डाक या किसी अन्य तरीक़ा से प्रासंगिक सामग्रियाँ मुझ तक पहुँचाते हैं और आग्रह करते हैं कि मैं यह विषय विधानसभा में उठाऊं। इसे सरकार में सक्षम स्तर तक पहुँचाकर भ्रष्ट आचरण करने वालों के विरूद्ध कार्रवाई कराऊं।
राँची अथवा जमशेदपुर में मेरे आवास या कार्यालय पर मेरी अनुपस्थिति में भी लोग ऐसी सूचना सामग्रियाँ वहाँ उपस्थित मेरे सहायक अथवा प्रहरी को इस आग्रह के साथ सुपुर्द कर जाते हैं ताकि मेरे आने पर वे इसे मुझे उपलब्ध करा दें। मेरे सहायक तथा प्रहरी ऐसी सूचना सामग्रियों को मेरे कार्यालय में यथास्थान रख देते हैं, जिनका अवलोकन मैं कार्यालय पहुँचने पर करता हूँ और इनपर यथोचित कार्रवाई करता हूँ। जहाँ तक मुझे स्मरण है अप्रैल, 2022 के प्रथम सप्ताह में संभवतः 07 अप्रैल, 2022 को मैं राँची स्थित अपने आवासीय कार्यालय की मेज पर रखे कागजातों का अवलोकन कर रहा था, तो वहाँ पीला रंग का एक बंद लिफ़ाफ़ा रखा मिला, जिसे खोलने पर उसके भीतर झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग से संबंधित वे काग़ज़ात दिखाई पड़े, जिनके बारे में आपने उपर्युक्त विषयक नोटिस के माध्यम से मुझसे जानना चाहा है कि ये काग़ज़ात मेरे द्वारा किसी कार्यालय कर्मी से गुप्त रूप से क्यों प्राप्त किया गया। और किस कार्यालय कर्मी द्वारा संबंधित संचिका के विभिन्न टिप्पणी एवं विभिन्न अंशों की प्रति मुझे गुप्त रूप से दिया गया था। इन कागजातों का मैंने गहन अध्ययन एवं विश्लेषण किया।
अप्रैल, 2022 के प्रथम सप्ताह में मुझे लिफ़ाफ़ा में बंद मिले स्वास्थ्य विभाग से संबंधित प्रासंगिक काग़ज़ातों के अध्ययन एवं विश्लेषण से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि ये काग़ज़ात कोविड कर्मियों को प्रोत्साहन भत्ता देने के झारखंड सरकार के नीतिगत निर्णय की आड़ में झारखंड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री के संगीन भ्रष्ट आचरण के पुख्ता प्रमाण हैं। तदुपरांत दिनांक 13.04.2022 को मैंने इन कागजातों को अनुलग्नक के रूप में संलग्न करते हुए इस बारे में एक पत्र झारखंड सरकार के माननीय मुख्यमंत्री महोदय को ईमेल द्वारा भेजा और अनुरोध किया कि ‘‘स्वास्थ्य विभाग की प्रासंगिक संचिका मंगाकर घोर वित्तीय अनियमितता के लिए स्वास्थ्य मंत्री पर कार्रवाई करना चाहेंगे तथा स्वास्थ्य मंत्री सहित उनके कोषांग के अन्य कर्मियों द्वारा ली गई अनुचित एवं अवैध प्रोत्साहन राशि वापस करने का आदेश देने और इसके लिए दोषियों के विरूद्ध कार्रवाई करना चाहेंगे।’’
तदुपरांत इसकी हार्ड कॉपी हाथों-हाथ मुख्यमंत्री सचिवालय में प्राप्त कराया। इस तरह अनजान माध्यम से मेरे पास पहुँचे इन प्रासंगिक कागजातों का उपयोग मैंने स्वास्थ्य मंत्री एवं स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण और उनके द्वारा किये गए अमानत मंे खयानत के प्रयत्नों से मैंने सत्ता शीर्ष को अवगत कराने के लिए किया और जिस किसी ने भी एक उम्मीद के साथ ये काग़ज़ात मेरे पास पहुँचाया उसके भरोसा पर खरा उतरने का प्रयास किया। यहाँ यह उल्लेख अप्रासंगिक नहीं होगा कि दिनांक 27.07.2023 को देर शाम मैं जमशेदपुर से राँची पहुँचा तो मेरे कार्यालय की मेज पर एक लिफ़ाफ़ा पड़ा मिला जिसे खोलने पर मुझे आपके द्वारा भेजी गई धारा-41A की यह नोटिस मिली जिसका अपेक्षित जवाब मैं आपके द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर इस पत्र के माध्यम से आपको प्रेषित कर रहा हूँ।
उसी तरह वे काग़ज़ात भी मेरी मेज़ पर रखे मिले थे जिनके स्रोत के बारे में आप 41A की नोटिस देकर मुझसे जानना चाहते हैं। सरकार की विभागीय संचिकाएं गोपनीय प्रकृति की हों या सामान्य प्रकृति की, इनके संधारण का दायित्व संबंधित विभाग प्रमुख पर होता है। इस हेतु विभाग प्रमुख कार्यालय आदेश जारी कर विहित प्रक्रिया निर्धारित करते हैं, समय-समय पर इसमें संशोधन/परिवर्द्धन करते हैं तथा ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट के प्रासंगिक प्रावधानों के मुताबिक़ किसी संचिका को गोपनीय श्रेणी में वर्गीकृत करते हैं। आपने मुझसे अनुसंधान में सहयोग करने की अपेक्षा की है। मैं इसका आश्वासन देता हूँ। साथ ही सुझाव देता हूँ कि ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट के प्रावधानों के अनुरूप प्रासंगिक संचिका को स्वास्थ्य विभाग ने गोपनीय श्रेणी में वर्गीकृत किया है या नहीं, यह जानकारी अनुसंधान के क्रम में आप स्वास्थ्य विभाग से अवश्य लेना चाहेंगे।
साथ ही सरकारी संचिकाओं के दस्तावेजों के सार्वजनिक होने पर ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट के प्रावधान लागू होने के संदर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कतिपय न्याय निर्णय भी अनुसंधान के क्रम में आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं। आपके ध्यान में लाना चाहता हूँ कि धारा- 41A द.प.स. के अधीन आपने जो नोटिस मुझे दिया है, उसके साथ संलग्न प्राथमिकी में कई अन्य धाराओं के साथ ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट-1923 की धारा-05(1)(A)/5(2) भी अंकित है। मैंने ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट- 1923 की धारा-05(1)(A)/5(2) के प्रावधान को पुनः पढ़ा और अपनी सामान्य समझ के आधार पर इस निष्कर्ष पर पंहुचा कि प्रासंगिक कांड में यह धारा प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में मुझपर लागू नहीं होती।
अपराध अनुसंधान की जानकारी रखने वाला हर व्यक्ति इसी निष्कर्ष पर पंहुचेगा कि ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट की धारा-05(1)(A)/5(2) इस कांड में दूर-दूर तक मुझ पर लागू नहीं होती। इस धारा का हू-ब-हू उल्लेख यहाँ करना मैं प्रासंगिक नहीं समझता हूँ, क्योंकि जिम्मेदार अनुसंधानकर्ता पुलिस अधिकारी इस बारे में पूरी तरह अवगत रहते हैं। प्राथमिकी दर्ज करते समय इस धारा का उपयोग इस प्रासंगिक कांड में करना कहीं से भी उचित प्रतीत नहीं होता है। इसके अतिरिक्त भारतीय दंड संहिता की कतिपय अन्य धाराओं का उल्लेख भी प्राथमिकी में है। इन धाराओं के प्रावधान भी प्रासंगिक कांड में आकर्षित नहीं होते हैं। अनुसंधान एवं पर्यवेक्षण के दौरान इसकी वस्तुपरक विवेचना की अपेक्षा रखता हूँ।”
प्रार्थी ने विधायक पर क्या आरोप लगाये थे?
आरोप के अनुसार, मंत्री पद पर रहते सरयू राय ने अपने विभागीय पत्रिका आहार के प्रकाशन के लिए। मनोनयन के आधार पर झारखंड प्रिंटर्स का चयन करवाया। झारखंड सरकार की वित्तीय एवं कार्यपालिका नियमावली कहती हैं कि 15 लाख से अधिक की राशि से होनेवाले कार्य के लिए निविदा जरूरी है। इसके बाजवूद सरयू राय ने मंत्री रहते मनोनयन पर झारखंड प्रिंटर्स को काम दिलवाया। मनोनयन पर काम देने के लिए वित्तीय नियमावली के नियम 235 को शिथिल करने के लिए नियम 245 का सहारा लेना पड़ता है। साथ ही वित्त विभाग और कैबिनेट की सहमति जरूरी होती है। सरयू राय ने न तो वित्त विभाग से सहमति ली, औऱ कैबिनेट से अपने स्तर से ही झारखंड प्रिंटर्स को काम देने का निर्णय ले लिया।
जनसंपर्क विभाग राज्य सरकार के हर विभाग के प्रचार प्रसार का काम करता है लेकिन सरयू राय ने मंत्री रहते अपने विभाग के लिए अलग से पत्रिका का प्रकाशन कराया। इसके पीछे एकमात्र उद्देश्य सरकारी राशि का गबन करना था। झारखंड प्रिंटर्स के चयन का आधार सिर्फ वार्तालाप था। यह बात फाइल में भी दर्ज है। मगर पत्रिका में विभाग की योजनाओं के प्रचार से अधिक ज्यादतर पूर्व मंत्री का गुणगान होता था। इस पत्रिका के प्रकाशन से न तो सरकार को लाभ हुआ, न जनता को।
आरोपों के अनुसार, कैसे दिया गया घोटाले को अंजाम?
बिना टेंडर के आहार पत्रिका का प्रकाशन कराया गया। वित्तीय अनियमितता के उद्देश्य से तत्कालीन विभागीय मंत्री सरयू राय ने अपने ही निजी सहायक आनंद कुमार को विशेषज्ञ कार्यकारी संपादक नियुक्त कर दिया। आनंद कुमार से टेलीफोनिक बातचीत के आधार पर झारखंड प्रिंटर्स को हर माह 2,61.793 कॉपी आहार पत्रिका छापने का ऑर्डर दे दिया गया। जब इस गड़बड़ी की सूचना बाहर आने लगी तो पत्रिका के प्रकाशन के लिए अप्रैल 2018 में टेंडर किया गया और काम पुनः उसी झारखंड प्रिंटर्स को दे दिया गया, जो टेंडर होने के पहले से आहार पत्रिका का प्रकाशन कर रहा था। टेंडर में भाग लेनेवाली दूसरी कंपनियों के पास झारखंड में और राज्य के लिए काम करने का काफी ज्यादा अनुभव था, जबकि झारखंड प्रिंटर्स को सिर्फ 3 साल के काम का अनुभव था। मगर झारखंड प्रिंटर्स ने अपने काम के अनुभव के बारे में बताया कि उसने युगांतर प्रकृति नामक पत्रिका का प्रकाशन किया है।
मालूम हो कि युगांतर प्रकृति के मुख्य संरक्षक सरयू राय और संपादक उनके ही निजी सहायक आनंद कुमार हैं। ऐसे में इस गड़बड़ी के बारे में समझना कोई मुश्किल भरा काम नहीं है। झारखंड प्रिंटर्स युगांतर प्रकृति का केवल 5000 कॉपी छापता था। वितरण के नाम पर उसका अनुभव सिर्फ युगांतर प्रकृति पत्रिका को संस्था के कार्यालय तक पहुंचाना था। राज्य में पत्रिका के वितरण का उसका कोई अनुभव नहीं था। उसके बावजूद 5000 कॉपी छापने का अनुभव रखनेवाले झारखंड प्रिंटर्स को 2,61,793 कॉपी हर माह छापने का काम दे दिया गया। इतना ही नहीं वितरण के नाम पर शून्य अनुभव रखनेवाले को पूरे झारखंड में पत्रिका वितरण का काम दिया गया।
इस संबंध में 10 अगस्त 2019 को प्रभात खबर में समाचार प्रकाशित हुआ कि आहार पत्रिका राशन डीलरों तक नहीं पहुंच रही है। इस खबर के आधार पर विभाग ने सभी जिला आपूर्ति पदाधिकारियों एवं बाबा कंप्यूटर से 7 दिनों के अंदर रिपोर्ट मंगवायी। 15 सितंबर 2019 को बाबा कंप्यूटर ने दूरभाष पर विभाग को जानकारी दी कि उसकी 298 डीलरों से बातचीत हुई है, जिसमें 115 ने स्वीकार किया कि उसे पत्रिका मिल रही। जबकि 183 लोगों ने कहा कि उसे नियमित रूप से पत्रिका नहीं मिल रही है। कुछ का कहना था कि फरवरी से ही उन्हें पत्रिका नहीं मिल रही है। एक तरफ डीलर कह रहे थे कि उन्हें पत्रिका नहीं मिल रही है और दूसरी तरफ प्रिंटर्स को नियमित भुगतान किया जा रहा था । अनियमितता और शिकायत की सूचना मिलने के बावजूद झारखंड प्रिंटर्स के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी बल्कि उसे अवधि विस्तार दे दिया गया।
