Jharkhand:वर्तमान में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते क्राइम को देखकर लगता है कि राज्य में महिलाओं का पैदा होना ही अपराध है। न तो वे पैदा होंगी, और न ही उनके खिलाफ क्राइम होंगे। और इसके लिये जिम्मेवार हमारी राज्य सरकार ही है। ऐसा हम इसलिये कह रहे हैं, क्योंकि हेमंत सोरेन की सरकार को 5 साल होने को हैं, लेकिन अब तक राज्य में महिला अपराध के मामले में न्याय दिलाने वाली कमिटी – महिला आय़ोग का गठन हुआ ही नहीं. महिलाओं से जुड़े अपराध का ग्राफ बड़ी-बड़ी ऊंचाइयां छू रहा है, लेकिन हेमंत सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी।
सरकार ने कितना किया अपना वादा पूरा
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ऐसे तो दिसंबर महीने में विधानसभा का चुनाव होना है, लेकिन खबरें आ रही हैं कि अक्टूबर में ही चुनाव हो सकता है। यानि अब झारखंड की जनता की बारी है ये तय करने की कि अगले 5 सालों के लिये आप किसे अपना प्रतिनिधि बनते देखना चाहते हैं। लेकिन इससे पहले आपको वर्तमान सरकार के रिपोर्ट कार्ड को भी खंगालना उतना ही जरूरी है, जानना जरूरी है कि सरकार जिन वायदों के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी, अब क्या है उन वायदों का हाल, 5 साल मौका मिलने पर वह जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतर पायी, और अब उन्हें दोबारा मौका मिलना चाहिये या फिर तख्तापलट होना चाहिये। ये तय करने का काम आप जनता का ही है, लेकिन हम बनेंगे जरिया, हम दिखायेंगे सरकार, मंत्रियों, विधायकों का असली चेहरा, अपने इस नये सेग्मेंट रिपोर्ट कार्ड में।
राज्य में दो बार नेतृत्व का परिवर्तन हुआ, हेमंत की सरकार, चंपई की सरकार फिर से हेमंत सोरेन की सरकार, और इस पूरे घटनाक्रम के बीच महिलाओं को लेकर खूब प़ॉलिटिक्स भी हुई। मंत्रीमंडल में कम से कम मुंह दिखाने के लिये ही सही, लेकिन एक महिला का होना आवश्यक होता है। अमूमन उन्हें महिला एवं बाल कल्याण विभाग की ही जिम्मेदारी सौंपी जाती है। लेकिन ये कहने में कोई शंका नहीं होनी चाहिये कि महिला मंत्री भी अपनी जिम्मेदारियों पर खरा नहीं उतर पायीं। जोबा मांझी से लेकर बेबी देवी, कोई भी 4 सालों के दौरान महिला आयोग का गठन नहीं करा सकीं। राज्य में जब से हेमंत सोरेन की सरकार बनी है, तब से ही महिला आयोग ठप्प पड़ा है। साल 2017 से लेकर 2020 तक के लिये कल्याणी शरण को महिला आयोग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गयी। 2020 में जैसे ही उनका कार्यकाल खत्म हुआ, उसके बाद शायद हेमंत सोरेन आधी आबादी को भूल ही गये। महिलाओं के साथ होने वाले अपराध को कंट्रोल करने के लिये महिला आयोग एक बहुत ही अहम भूमिका निभाता है, लेकिन हेमंत सोरेन की सरकार इस आयोग को नजरअंदाज करती चली गयी। महिलाओं से जुड़े अपराध बढ़ रहे हैं, या घट रहे हैं, कोई फर्क ही नहीं पड़ता। न ही उनके मुख्यमंत्री के काल में महिला कल्याण के मामले में मंत्री रहीं जोबा मांझी ने अपना दायित्व निभाया। बेबी देवी भी कम समय के लिये ही सही, लेकिन चंपई सोरेन के कार्यकाल में उन्हें भी महिला मामलों में मंत्री की जिम्मेदारी मिली थी, और इस बार फिर से उन्हें यह जिम्मेदारी दी गयी, लेकिन कोई फर्क नहीं आय़ा।
राज्य में पिछले 4 सालों में 6000 से अधिक महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटना सामने आय़ी। खास कर संथाल परगना क्षेत्र में हाल के कुछ सालों में दुष्कर्म की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। और केवल बढ़ोतरी ही नहीं हुई, दरिंदगी अपने चरम पर दिखायी दी, उदाहरण चाहे हम स्पेनिश दंपत्ति के साथ होने वाले दुष्कर्म की घटना का लें, या फिर मालोती सोरेन हत्याकांड का। इस तरह की घटनाओं ने देश ही नहीं विदेशी मीडिया का भी ध्यान अपनी ओर खींचा। एक आंकड़े के मुताबिक, साल 2023 में 10 महीने में संथाल के 6 जिलों से 181 मामले सामने आय़े।
वहीं, डायन बिसाही के नाम पर हर साल औसतन 30- 40 महिलाओं की हत्या होती है। सरकार चाहती तो ये घटनाएं आज राज्य में शायद होती ही नहीं या शायद इसमें बहुत हद तक कमी आती। अगर झारखंड महिला आयोग में अध्यक्ष और बाकी के कर्मचारी होते तो शायद ऐसी स्थिति नहीं होती. महिलाओं के विरुद्ध आपराधिक मामले आने पर आयोग के सदस्य और कर्मचारी अपने स्तर से पड़ताल करते हैं. जिससे महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार और दुराचार का खुलासा हो पाता है। जब राज्य का पुलिस प्रशासन न्याय दिला पाने में विफल होता है, तब महिला आयोग सीधे अपने स्तर से संज्ञान ले सकता हैं. और बड़े और गंभीर अपराधों के मामले में अपराधियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलाने में भी अहम भूमिका निभाता हैं। झारखंड में आज भी आधी से अधिक महिलाएं पिछड़ेपन और अशिक्षा की शिकार हैं. कई बार महिलाएं अपनी समस्या को खुलकर नहीं बता पाती हैं. ऐसे में महिला आयोग का काम होता है ऐसी महिलाओं को जागरूक कर उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करना। इसलिये बड़ी संख्या में महिलाएं इनके पास आवेदन लेकर आती हैं, लेकिन राज्य का आलम ऐसा है कि न्याय के बदले उन्हें केवल निराशा हाथ लगती है।
आयोग के पास 7 जून 2020 से लेकर अब तक करीब 5000 से ज्यादा आवेदन जमा हो चुके हैं, लेकिन इन आवेदनों पर सुनवाई करने वाला कोई नहीं है. ग्रामीण इलाकों में रहनेवाली महिलाओं के लिए अपने गांव से शहर तक आना चुनौतीपूर्ण होता है. आर्थिक तंगी के कारण दूसरों से कर्ज लेकर भी महिलाएं शिकायत लेकर महिला आय़ोग पहुंचती हैं, लेकिन अध्यक्ष के नहीं होने के कारण इन्हें खाली हाथ अपने गांव लौटना पड़ता है।
यानि कुल मिलाकर देखा जाये तो 2019 में बनी झामुमो कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार महिलाओं से जुड़े अपराध को रोक पाने में नाकामयाब रही। राज्य की आधी आबादी के लिये महिला आयोग, जो कि एक वैधानिक निकाय है, इसके गठन को नजरअंदाज किया जाता रहा। हेमंत सोरेन के पूरे कार्यकाल के दौरान महिला आय़ोग का तो नामो निशान ही खत्म कर दिया गया। अब इस बार के चुनाव में फैसला आपको करना है कि महिला अपराध के मामलों में इस सरकार को दोबारा मौका देना चाहिये, या नहीं। लेकिन आप अपने विचार कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमसे जरूर साझा करें। और अगर आपको ये वीडियो और हमारी ये नयी पेशकश पसंद आ रही हो.