L19 Desk : महाकुंभ यानि धार्मिक आस्था का महासंगम, करोड़ों श्रद्धालुओं की उमड़ती भीड़ और गंगा तट पर भक्ति का ज्वार। लेकिन जब आस्था की यह लहर बेकाबू हो जाये, तो भयंकर भगदड़ में बदलकर त्रासदी का रूप धारण कर लेती है। महाकुंभ में जब श्रद्धालु मोक्ष की आस लिये संगम में डुबकी लगाने आते हैं, तब कभी कभी अव्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही एक दर्दनाक हादसे को जन्म दे देती है। श्रद्धा से भरी आंखें अचानक भय और चीख पुकार से भर उठती हैं। और पवित्र स्नान स्थल एक अराजकता का मंज़र पेश करने लगता है।
हम फिलहाल बात कर रहे हैं महाकुंभ जाने के लिये नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में मची भगदड़ की, जहां हादसे ने, या यूं कहें इंसानों ने ही इंसानों की जान ले ली। घटना दरअसल,15 फरवरी की देर रात की है, जब नई दिल्ली स्टेशन पर महाकुंभ जाने वाली भीड़ अनियंत्रित हो गयी, नतीजतन स्टेशन में भगदड़ मच गई। हादसे में अब तक 10 महिलाओं, 3 बच्चों समेत 18 लोगों की मौत की खबर सामने आयी है। यह हादसा प्लेटफार्म 13 और 14 पर रात करीब 10 बजे हुआ, जब हजारों श्रद्धालु महाकुंभ जाने के लिए स्टेशन पर एकत्रित हुए थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, अचानक ट्रेन का प्लेटफार्म बदलने से यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई और भीड़ ने भगदड़ का रूप ले लिया।
भगदड़ में घायल हुए यात्री काफी समय तक मदद के लिए इधर-उधर भटकते रहे, अपनों को अस्पताल पहुंचाने के लिए परिजन मददगार ढूंढते रहे। लेकिन, आलम यह था कि उन्हें न तो मदद के लिए जवान मिल रहे थे, और न ही कहीं एंबुलेंस मिली। ऐसे में कोई पैदल, तो कोई निजी वाहनों से अपनों को अस्पताल पहुंचाने की कोशिश में जुटा हुआ था। ये हालात तब थे, जबकि प्रयागराज जाने वाली ट्रेनों को लेकर स्टेशन पर पिछले कुछ दिनों से लगातार भीड़ बढ़ रही थी।
लापरवाही का आलम यहां तक था कि भगदड़ से घायल हुए लोगों को अस्पताल ले जाने के लिए भी कोई इंतजाम नहीं थे, रेलवे स्टेशन पर केवल एक ही एंबुलेंस उपलब्ध थी, इस माहौल में भी घटनास्थल पर एंबुलेंस की संख्या नहीं बढ़ाई गई। हैरानी की बात तो यह है कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी प्रशासन को कोई खबर तक नहीं थी। प्रशासन की भी नींद तब खुली जब अस्पताल पहुंचे घायलों में 18 लोगों की मौत की पुष्टि हुई। इसके बाद आनन-फानन में रेलवे स्टेशन पर 50 के करीब एंबुलेंस भेजी गईं।
एनडीआरएफ, आरपीएफ, पुलिस और अन्य एजेंसियां रेलवे स्टेशन पर पहुंचीं। इससे पहले तक रेलवे पुलिस की तरफ से सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किये गये थे। बताया जा रहा है कि रेलवे के अधिकारी न तो भीड़ का अंदाजा लगा पाए और न ही आरपीएफ के अधिकारी ही जान पाए। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि नई दिल्ली संवेदनशील रेलवे स्टेशनों में से एक है, जहां हर रोज़ पांच लाख से अधिक लोगों की आवाजाही होती है। पिछले कुछ दिनों से स्टेशन पर से प्रयागराज जाने वालों की भीड़ में लगातार बढ़ोतरी भी हो रही है। ऐसे संवेदनशील जगह पर कभी भी भीड़ बेकाबू हो सकती है, लेकिन इसके बावजूद रेलवे अधिकारियों को भीड़ का अंदाज़ा कैसे नहीं लग पाया। भीड़ की हालत देखते हुए अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वहां कम से 30 से 40 पुलिस जवानों की तैनाती होनी चाहिये थी।
वहीं, संवेदनशील रेलवे स्टेशन होने की वजह से यहां खुफिया इनपुट जुटाने के लिए आरपीएफ की ओर से विशेष कर्मी तैनात रहते हैं, और कड़ी निगरानी करते हैं। इसके बावजूद उनकी ओर से भी भीड़ को लेकर कोई इनपुट क्यों नहीं दिया गया ? इसके अलावा, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरों से 24 घंटे मॉनिटरिंग की जाती है। डीआरएम अपने ऑफिस स्टेशन के हर प्लेटफार्म को लाइव देखते हैं। इसके बावजूद अधिकारियों की नज़र स्टेशन पर बढ़ती भीड़ और फिर भगदड़ पर कैसे नहीं पड़ी ? वहीं, रेलवे की ओर से हर घंटे 1,500 जेनरल टिकट लगातार बेचे जा रहे थे, जिसके कारण स्टेशन पर भीड़ बढ़ गई और स्थिति बेकाबू हो गई। प्लेटफार्म नंबर 14 और प्लेटफार्म नंबर 16 के पास एस्केलेटर के पास भगदड़ मच गई। टिकट बिक्री से भी बढ़ती भीड़ का अंदाज़ा लग सकता था।
लेकिन इसके बावजूद प्रशासन सोती रही। इसके अलावा, भगदड़ का एक मुख्य कारण दो ट्रेनों का कैंसल होना भी है। प्रयागराज जाने वाली दो ट्रेनों को कैंसल कर दिया गया था, जिसकी वजह से भीड़ प्लेटफॉर्म पर बढ़ गई. हालांकि, रेलवे ने ट्रेन रद्द होने की बात को सिरे से खारिज कर दिया है। रेलवे ने कहना है कि महाकुंभ के लिये चार स्पेशल ट्रेनें चलाई गई। फिलहाल, मामले की जांच के लिए हाईलेवल जांच टीम का गठन किया गया है। लेकिन अब भी सवाल वही है, कि जब इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिये वाकई तैयारी पर्याप्त थी ? क्या प्रशासनों ने सुरक्षा इंतज़ामों को काग़ज़ों से निकालकर ज़मीन पर उसे उतारा भी था ? और सबसे अहम सवाल, अगर सही वक्त पर भीड़ को नियंत्रित किया जाता, तो क्या ये त्रासदी टाली नहीं जा सकती थी ?