L19/Sahibganj : लगभग 200 वर्षो के इतिहास को अपने गर्भ में छुपाए राजमहल प्रखंड के मंडई ग्राम स्थित मां पगली दुर्गा अपने भक्तों को कभी भी निराश नहीं करती हैं। दिनों दिन इनके प्रति आस्था में वृद्धि ही देखी जा रही है। मंडई ग्राम को प्लेग जैसी महामारी से बचाने वाली मां के समक्ष संकट में पड़े सरकारी महकमे के पदाधिकारी हो या फिर उनके आशीर्वाद से अपने कार्यो में सफलता हासिल कर चुके परिवार, प्रत्येक वर्ष मां की चरणों में अपनी श्रद्धासुमन अर्पित करने हेतु देश के किसी भी कोने से निश्चित समय पर पहुंच जाते हैं। यूं तो राजमहल के प्राचीनतम दुर्गा मंदिरों में जामनगर स्थित दुर्गा मंदिर सबसे प्राचीन माना जाता है पर प्रसिद्धि के मामले में मां पगली दुर्गा की महत्ता सबसे अतुलनीय है।
राजमहल अनुमंडल मुख्यालय से लगभग 5 किमी. दक्षिण दिशा में राजमहल-तीनपहाड़ मार्ग से थोड़ा हटकर मंडई ग्राम में प्रत्येक वर्ष हजारों श्रद्धालुजन अपनी मनौती पूरी होने पर जाग्रत मां पगली दुर्गा को चढ़ावा चढ़ाने पहुंचते हैं। वर्तमान में यहां की जनसंख्या काफी घनी नहीं है, पर बड़े बुजुर्गों की मानें तो लगभग 200 वर्ष पूर्व मंडी के नाम से विख्यात यह स्थल काफी घनी जनसंख्या वाला क्षेत्र था। व्यवसाय का एक प्रमुख केंद्र कोने की चलते इसे मंडी के नाम से जाना जाता था। प्रमुख व्यवसाय स्थल होने के चलते यहां सभी समुदायों के लोग रहते थे।
माना जाता है कि उस समय मंडी में मां पगली दुर्गा को स्थान प्राप्त नहीं हुआ था तथा उक्त क्षेत्र में उस समय की लाइलाज बीमारी प्लेग का संक्रमण तेजी से फैला। उक्त बीमारी का कोई ईलाज ना होने के चलते गांव छोड़ने के सिवा ग्रामीणों के समक्ष कोई विकल्प नहीं था। किवदंती के अनुसार तेजी से पलायन के क्रम एक ब्राह्मण परिवार भी ग्राम छोड़कर जा रहा था। तभी रास्ते में एक देवी स्वरूप महिला ने साक्षात प्रकट होकर कहा था कि वह पगली मां है, तथा कोई उस स्थान को छोड़कर नहीं भागे। उनके निर्देश पर निश्चित स्थल पर जिस दिन से माता की पूजा प्रारंभ हुई, तभी से लोगों का मरना तो दूर रोग भी जड़ से समाप्त हो गया और अभी तक वह क्षेत्र उस रोग या किसी अन्य महामारी से ग्रसित नहीं हुआ है।
जहां प्रति स्थलों में माता दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जन के पूर्व काफी धूमधाम से बैंड बाजे व डीजे के साथ शोभायात्रा निकालकर भ्रमण कराया जाता है, वहीं मां पगली दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन बिना किसी गाजे-बाजे व शोभायात्रा के मंदिर परिसर में ही स्थित पवित्र तालाब में भक्तों द्वारा कर दिया जाता है। किवदंती के मुताबिक, एक बार शोभायात्रा निकाले जाने पर वाद्य यंत्र बार-बार बिगड़ जा रहा था, तो भक्तों को यह आभास हुआ कि मां अधिक शोर शराबा पसंद नहीं कर रही हैं। तभी से शोभायात्रा निकालने की परंपरा बंद हो गई।
पहले जंजीरों से बांध कर रखी जाती थी मां की प्रतिमा
किवदंती के मुताबिक, मनौती पूरी होने पर पाठा बलि दिए जाने के समय मां की प्रतिमा थोड़ी झुक जाती थी। इसे रोकने के लिए प्रतिमा पीछे की तरफ उसकी चाली से जंजीरों द्वारा बांध दिया जाता था। विगत आठ-दस वर्षों जंजीर बांधने की प्रक्रिया बंद कर मजबूत चाली बनाकर मां की प्रतिमा स्थापित की जाने लगी।
प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में पड़ती है पाठा बलि
कहते है मां के समक्ष सच्चे मन से यदि कोई फरियादी कामना करता है तो मां पगली उसकी कामना अवश्य पूरा करती है। मनौती पूरी होने पर भक्तों द्वारा नवमी के दिन मूलत: पाठा बलि देकर मां को श्रद्धासुमन अर्पित किया जाता है।